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ऋग्वेद मण्डल - 3 के सूक्त 44 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 3/ सूक्त 44/ मन्त्र 4
    ऋषिः - गोपवन आत्रेयः सप्तवध्रिर्वा देवता - इन्द्र: छन्दः - स्वराडनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः

    ज॒ज्ञा॒नो हरि॑तो॒ वृषा॒ विश्व॒मा भा॑ति रोच॒नम्। हर्य॑श्वो॒ हरि॑तं धत्त॒ आयु॑ध॒मा वज्रं॑ बा॒ह्वोर्हरि॑म्॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ज॒ज्ञा॒नः । हरि॑तः । वृषा॑ । विश्व॑म् । आ । भा॒ति॒ । रो॒च॒नम् । हरि॑ऽअश्वः । हरि॑तम् । ध॒त्ते॒ । आयु॑धम् । आ । वज्र॑म् । बा॒ह्वोः । हरि॑म् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    जज्ञानो हरितो वृषा विश्वमा भाति रोचनम्। हर्यश्वो हरितं धत्त आयुधमा वज्रं बाह्वोर्हरिम्॥

    स्वर रहित पद पाठ

    जज्ञानः। हरितः। वृषा। विश्वम्। आ। भाति। रोचनम्। हरिऽअश्वः। हरितम्। धत्ते। आयुधम्। आ। वज्रम्। बाह्वोः। हरिम्॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 3; सूक्त » 44; मन्त्र » 4
    अष्टक » 3; अध्याय » 3; वर्ग » 8; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ विद्वद्विषयमाह।

    अन्वयः

    हे विद्वांसो ! यो जज्ञानो हरितो हर्यश्वो वृषा हरितरोचनं विश्वं बाह्वोर्हरितं वज्रमायुधमिवाऽऽधत्त आ भाति तं विज्ञायोपयुञ्जत ॥४॥

    पदार्थः

    (जज्ञानः) जायमानः (हरितः) हरितादिवर्णः (वृषा) वृष्टिकरः (विश्वम्) (आ) (भाति) (रोचनम्) रोचन्ते यस्मिँस्तत् (हर्यश्वः) हर्याः कामयमाना आशुगामिनो गुणा यस्य विद्युद्रूपस्य सः (हरितम्) कमनीयम् (धत्ते) धरति (आयुधम्) समन्तात् युध्यन्ति येन तत् (आ) (वज्रम्) शस्त्रमिव किरणसमूहम् (बाह्वोः) भुजयोः (हरिम्) हरणशीलम् ॥४॥

    भावार्थः

    विद्वांसो यथा प्रसिद्धः सूर्यः सर्वं जगत् प्रकाश्य रोचयति तथैव सद्विद्योपदेशेन धर्मं रोचयन्तु ॥४॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    अब विद्वान् के विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

    पदार्थ

    हे विद्वान् लोगो ! जो (जज्ञानः) उत्पन्न होता हुआ (हरितः) हरित आदि वर्णों से युक्त (हर्यश्वः) कामना करते हुए शीघ्र चलनेवाले गुण हैं जिस बिजुली रूप के वह (वृषा) वृष्टिकारक (हरितम्) कामना करने योग्य (रोचनम्) और सब ओर से जिसमें प्रीति करते हैं ऐसे (विश्वम्) संपूर्ण लोक को (बाह्वोः) भुजाओं के (हरितम्) हरनेवाले (वज्रम्) शस्त्रों के सदृश किरणों के समूह को (प्र, आ, धत्ते) धारण करता और (आ, भाति) प्रकाशित होता है, उसको जानकर उपयोग करो ॥४॥

    भावार्थ

    विद्वान् लोग जैसे प्रसिद्ध सूर्य्य संपूर्ण जगत् को प्रकाशित करके आप प्रकाशित होता है, वैसे ही सद्विद्या के उपदेश से धर्म का प्रकाश करावें ॥४॥

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    विषय

    जज्ञान: हरितो वृषा

    पदार्थ

    [१] (जज्ञानः) = सोमरक्षण द्वारा शक्तियों का विकास करता हुआ, (हरितः) = दीप्तियुक्त, वृषा शक्तिशाली यह इन्द्र [जितेन्द्रिय पुरुष] (विश्वं रोचनं याभाति) = सब दीप्त लोकों को प्रकाशित करता है। सब लोकों से अधिक दीप्तिवाला होता है, जहाँ जाता है, वहाँ दीप्ति को फैलानेवाला होता है । [२] (हर्यश्वः) = यह कान्त [चमकते हुए] इन्द्रियाश्वोंवाला इन्द्र (बाह्वो:) = अपनी भुजाओं में (आवज्रम्) = समन्तात् गतिरूप (हरितम्) = दीप्त (आयुधम्) = आयुध को-अस्त्र को (धत्ते) = धारण करता है। गति ही इसका वह आयुध बनती है, जिससे कि यह वासनारूप शत्रु को विनष्ट करनेवाला बनता है। यही इन्द्र का वज्र द्वारा वृत्र को विनष्ट करना है।

    भावार्थ

    भावार्थ – शक्तियों का विकास करके दीप्त व शक्तिशाली बनकर हम क्रियाशीलतारूप दीप्त वज्र से वासनारूप शत्रु का विनाश करनेवाले हों ।

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    विषय

    राजा तेजस्वी हो, सूर्य वायु की शक्तिवत् इन्द्र, और अर्जुन वज्र की व्याख्या।

    भावार्थ

    (हरितः वृषा) तेजस्वी, पीतवर्ण वा नीलवर्ण का, वर्षण करने चाला सूर्य जिस प्रकार (जज्ञानः) उत्पन्न या उदय होकर (रोचनं विश्वम् आभाति) समस्त रुचिकर विश्व को प्रकाशित करता है। उसी प्रकार (जज्ञानः) प्रकट होकर (हरितः) कान्तियुक्त, सबके मनों को हरने वाला, (वृषा) बलवान् और प्रबन्धकारी पुरुष (विश्वं रोचनम् आभाति) समस्त रुचिकर राष्ट्र में चमकता है। वह (हर्यश्वः) सूर्य की किरणों के समान तीव्र वेग से जाने वाले अश्वों का स्वामी (हरितम्) दीप्तियुक्त (हरिम्) शत्रुओं के प्राणों को हरण करने वाले (वज्रम्) शत्रुओं को दूर हटाने वाले, (आयुधं) उन पर सब ओर से प्रहार करने वाले शस्त्र बल और सैन्य को (बाह्वोः) बाहुओं में हथियार के समान और प्रजाजन को भी अपने हाथों में (धत्त) धारण करे।

    टिप्पणी

    हरयः इति मनुष्य नाम। निघ०॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    विश्वामित्र ऋषिः॥ इन्द्रो देवता॥ छन्द:- १, २ निचृद् बृहती। ३, ५ बृहती। ४ स्वराडनुष्टुप्॥ पञ्चर्चं सूक्तम्॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जसा सूर्य संपूर्ण जगाला प्रकाशित करून स्वतः प्रकाशित होतो तसेच विद्वानांनी सद्विद्येच्या उपदेशाने धर्माचा प्रकाश करावा. ॥ ४ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Rising and manifesting, the potent lord of light and showers of generosity illuminates the beautiful world of existence. The lord of sunrays in his arms wields the blazing weapon of thunder and lightning. And he holds and sustains the sun and shines self- refulgent.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The duties of enlightened persons are told.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O men ! you should utilize well the electricity in the form of the lighting. The sun (rays) bears green and other colors, and is the cause of rain. It (sun)possesses many rapid going attributes, and illuminates the world. It upholds a desirable weapon and in its arms there are the solar rays and in his arms is the thunderbolt.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    O learned persons ! as the sun illuminates the world and makes it shine, likewise you should create the inclination towards Dharma (righteousness) by giving good teachings.

    Foot Notes

    (हर्यश्व:) हर्याः कामयमाना आशुगामिनो गुणा यस्य विद्युद्र पस्य सः = Electricity which have many rapid going attributes. (वज्यम्) शस्त्रमिव किरणसमूहम् = The rays of the sun which are like a weapon.

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