ऋग्वेद - मण्डल 3/ सूक्त 5/ मन्त्र 1
ऋषिः - गाथिनो विश्वामित्रः
देवता - अग्निः
छन्दः - भुरिक्पङ्क्ति
स्वरः - पञ्चमः
प्रत्य॒ग्निरु॒षस॒श्चेकि॑ता॒नोऽबो॑धि॒ विप्रः॑ पद॒वीः क॑वी॒नाम्। पृ॒थु॒पाजा॑ देव॒यद्भिः॒ समि॒द्धोऽप॒ द्वारा॒ तम॑सो॒ वह्नि॑रावः॥
स्वर सहित पद पाठप्रति॑ । अ॒ग्निः । उ॒षसः॑ । चेकि॑तानः । अबो॑धि । विप्रः॑ । प॒द॒ऽवीः । क॒वी॒नाम् । पृ॒थु॒ऽपाजाः॑ । दे॒व॒यत्ऽभिः॑ । समि॑द्धः । अप॑ । द्वारा॑ । तम॑सः । वह्निः॑ । आ॒व॒रित्या॑वः ॥
स्वर रहित मन्त्र
प्रत्यग्निरुषसश्चेकितानोऽबोधि विप्रः पदवीः कवीनाम्। पृथुपाजा देवयद्भिः समिद्धोऽप द्वारा तमसो वह्निरावः॥
स्वर रहित पद पाठप्रति। अग्निः। उषसः। चेकितानः। अबोधि। विप्रः। पदऽवीः। कवीनाम्। पृथुऽपाजाः। देवयत्ऽभिः। समिद्धः। अप। द्वारा। तमसः। वह्निः। आवरित्यावः॥
ऋग्वेद - मण्डल » 3; सूक्त » 5; मन्त्र » 1
अष्टक » 2; अध्याय » 8; वर्ग » 24; मन्त्र » 1
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अष्टक » 2; अध्याय » 8; वर्ग » 24; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथ विद्वत्संबन्धेनाग्निगुणानाह।
अन्वयः
हे विद्वन् यथाऽग्निरुषसः प्रत्यबोधि तथा चेकितानः कवीनां पदवीः पृथुपाजा विप्रो देवयद्भिः सह प्रत्यबोधि। यथा समिद्धो वह्निस्तमस आवृतानि द्वारापावस्तथा विद्वान्भवेत् ॥१॥
पदार्थः
(प्रति) (अग्निः) (उषसः) प्रभातान् (चेकितानः) ज्ञापकः (अबोधि) (विप्रः) मेधावी (पदवीः) यः प्राप्तव्यानि पदानि व्येति व्याप्नोति सः (कवीनाम्) विदुषाम् (पृथुपाजाः) बृहद्बलः (देवयद्भिः) देवान् कामयद्भिः (समिद्धः) प्रदीप्तः (अप) (द्वारा) द्वाराणि (तमसः) अन्धकारात् (वह्निः) वोढा (आवः) आवृणोति ॥१॥
भावार्थः
अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथाऽग्निरुषःकाले सर्वान् प्राणिनो जागारयति अन्धकारं निवर्त्तयति तथा विद्वांसः अविद्यायां सुप्तान् जनान् प्रतिबोध्यैतेषामात्मनोऽज्ञानावरणात्पृथक् कुर्वन्ति ॥१॥
हिन्दी (3)
विषय
अब दश ऋचावाले पाँचवें सूक्त का प्रारम्भ है। उसके प्रथम मन्त्र में विद्वानों के संबन्ध से अग्नि के गुणों को कहते हैं।
पदार्थ
हे विद्वन् ! जैसे (अग्निः) अग्नि (उषसः) प्रभात समयों के (प्रति, अबोधि) प्रति जाना जाता है वैसे (चेकितानः) ज्ञान देनेवाला अर्थात् समझानेवाला (कवीनाम्) विद्वानों की (पदवीः) पदवियों को प्राप्त होता (पृथुपाजाः) महान् बलवाला (विप्रः) बुद्धिमान् विद्वान् जन (देवयद्भिः) विद्वानों की कामना करते हुओं के साथ जाना जाता है जैसे (समिद्धः) प्रदीप्त (वह्निः) और पदार्थों की गति करानेवाला अग्नि (तमसः) अन्धकार से ढपे हुए (द्वारा) द्वारों को (अप, आवः) खोलता है, वैसे विद्वान् हो ॥१॥
भावार्थ
इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे अग्नि प्रातःकाल में सब प्राणियों को जगाता और अन्धकार को निवृत्त करता है, वैसे विद्वान् जन अविद्या में सोते हुए मनुष्यों को जगाते हैं और इनके आत्माओं को अज्ञान के आवरण से अलग करते हैं ॥१॥
विषय
अन्धकार-ध्वंसक प्रभु
पदार्थ
[१] प्रति (उषसः) = प्रत्येक उषाकाल में (चेकितान:) = जाना जाता हुआ, (विप्रः) = हमारा विशेषरूप पूरण करनेवाला, (कवीनाम्) = ज्ञानियों का (पदवी:) = मार्ग, अर्थात् ज्ञानी लोग जिसका स्तवन करते हुए अपने जीवनमार्ग का निर्णय करते हैं वह (अग्निः) = अग्रणी प्रभु अबोधि जाना जाता है। प्रभु का दर्शन उषाकाल में होता है, यह वह समय है जब कि हम चेतना में आते हैं और अभी संसार की बातों में उलझे नहीं होते। ये प्रभु हमारी न्यूनताओं को दूर करने के लिये सतत प्रेरणा दे रहे हैं। ज्ञानी लोग प्रभु के अनुसार दयालु व न्यायकारी आदि बनने का प्रयत्न करते हैं । [२] ये (पृथुपाजा:) = अनन्त शक्तिवाले प्रभु (देवयद्भिः) = दिव्यगुणों की कामनावाले पुरुषों से अपने हृदयों में (समिद्धः) = दीप्त किए जाते हैं। यह (वह्निः) = हमें उन्नतिपथ पर प्राप्त करानेवाले प्रभु (तमसः) = द्वारा अन्धकार (द्वारा) = निर्गमन द्वारों को (अपाव:) = खोल डालते हैं। सारे अन्धकार को हमारे से दूर भगा देते हैं।
भावार्थ
भावार्थ- प्रभुदर्शन का उपयुक्त काल ब्राह्ममुहूर्त (उषाकाल) है, ये प्रभु अन्धकार को हमारे से दूर भगा देते हैं ।
विषय
अग्नि के दृष्टान्त से समर्थ योग्य विद्वान् अधिकारी के कर्त्तव्य।
भावार्थ
(अग्निः) दीप्तिमान् सूर्य जिस प्रकार (उषसः) प्रभात बेलाओं में (प्रति अबोधि) सब सोते हुए प्राणियों को जगाता है उसी प्रकार (अग्निः) ज्ञानवान् विद्वान् (चेकितानः) स्वयं ज्ञानवान् (विप्रः) मेधावी, सर्व विद्याओं में पूर्ण, (कवीनां पदवीः) विद्वान्, क्रान्तदर्शी पुरुषों के पदों, चरण चिन्हों पर चलने हारा होकर (प्रति अबोधि) सबको जगावे और स्वयं भी प्रत्येक ज्ञान का ज्ञाता हो। वह (पृथुपाजाः) विस्तृत ज्ञान और बल से युक्त होकर (देवमद्भिः) विद्वानों के प्रिय, उत्तम गुणों के इच्छुक पुरुषों द्वारा (समिद्धः) प्रदीप्त अग्नि के समान स्वयं प्रकाशित होकर (वन्हिः) कार्यों के भार को वहन करने में समर्थ विद्वान् (तमसः) अन्धकार के समान अज्ञान से दूर करके ज्ञान के द्वारा मार्गों को (अप आवः) खोले।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
विश्वामित्र ऋषिः॥ अग्निर्देवता ॥ छन्दः– १, २, ११ भुरिक् पंक्तिः। ३ पंक्तिः। ६ स्वराट् पंक्तिः। ४ त्रिष्टुप् । ५, ७, १० निचृत् त्रिष्टुप्। ८,९ विराट् त्रिष्टुप्॥ एकादशर्चं सूक्तम्॥
मराठी (1)
विषय
या सूक्तात विद्वान व अग्नीच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्तार्थाबरोबर मागच्या सूक्ताच्या अर्थाची संगती जाणावी.
भावार्थ
या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसा अग्नी प्रातःकाळी सर्व प्राण्यांना जागृत करतो व अंधार निवृत्त करतो तसे विद्वान लोक विद्येबाबत निद्रिस्त असलेल्या माणसांना जागृत करून त्यांच्या आत्म्यांना अज्ञानाच्या आवरणातून पृथक करतात. ॥ १ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Just as Agni, fire divine, light of the dawn, awakes, arises and awakens every morning, so does the man of knowledge, dynamic scholar, attaining to the positions of the men of light and vision, rise high and higher day by day and awaken the sleeping humanity.$Agni, mighty powerful, lighted and raised in the vedi by lovers of divinity, throws open the doors of light against darkness. So does the scholar, bearer and harbinger of the light of knowledge, dispel the darkness of ignorance and reveal the light of knowledge to a nation in slumber.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The attributes of the enlightened persons are compared with Agni.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O learned person! an enlightened leader who is the teacher of truth, wise, follower of the path of sages, mighty and strengthened by the those desirous of divine persons and attributes is awake like Agni kindled at the dawn. He is the bearer of noble virtues and throws open the gates covered by darkness (ignorance).
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
As the fire awakens all beings at the dawn and dispels darkness, in the same manner, the enlightened persons awaken the men sleeping under ignorance and remove their cover of conscience.
Foot Notes
(चेकितानः ) ज्ञापकः । = Teacher of truth. (विप्रः) मेधावी । = Wise, genius. (बह्नि:) वोढा: = The bearer of noble virtues.
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