ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 30/ मन्त्र 1
नकि॑रिन्द्र॒ त्वदुत्त॑रो॒ न ज्यायाँ॑ अस्ति वृत्रहन्। नकि॑रे॒वा यथा॒ त्वम् ॥१॥
स्वर सहित पद पाठनकिः॑ । इ॒न्द्र॒ । त्वत् । उत्ऽत॑रः । न । ज्याया॑न् । अ॒स्ति॒ । वृ॒त्र॒ऽह॒न् । नकिः॑ । ए॒व । यथा॑ । त्वम् ॥
स्वर रहित मन्त्र
नकिरिन्द्र त्वदुत्तरो न ज्यायाँ अस्ति वृत्रहन्। नकिरेवा यथा त्वम् ॥१॥
स्वर रहित पद पाठनकिः। इन्द्र। त्वत्। उत्ऽतरः। न। ज्यायान्। अस्ति। वृत्रऽहन्। नकिः। एव। यथा। त्वम् ॥१॥
ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 30; मन्त्र » 1
अष्टक » 3; अध्याय » 6; वर्ग » 19; मन्त्र » 1
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अष्टक » 3; अध्याय » 6; वर्ग » 19; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथ सूर्य्यदृष्टान्तेन राजविषयमाह ॥
अन्वयः
हे वृत्रहन्निन्द्र ! यथा त्वमसि तथैव त्वदुत्तरो नकिरस्ति न ज्यायानस्ति नकिरुत्तमश्चैव ॥१॥
पदार्थः
(नकिः) निषेधे (इन्द्र) राजन् (त्वत्) (उत्तरः) पश्चात् (न) निषेधे (ज्यायान्) ज्येष्ठः (अस्ति) (वृत्रहन्) यो वृत्रं हन्ति स सूर्य्यस्तद्वद्वर्त्तमान (नकिः) (एव) अत्र निपातस्य चेति दीर्घः। (यथा) (त्वम्) ॥१॥
भावार्थः
हे मनुष्या ! यः सर्वेभ्यः श्रेष्ठो भवेत्तमेव राजानं कुरुत ॥१॥
हिन्दी (3)
विषय
अब चौबीस ऋचावाले तीसवें सूक्त का आरम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में सूर्यदृष्टान्त से राजविषय को कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (वृत्रहन्) मेघ को नाश करनेवाले सूर्य के सदृश वर्त्तमान (इन्द्र) राजन् ! (यथा) जैसे (त्वम्) आप हो, वैसे ही (त्वत्) आप से (उत्तरः) पीछे (नकिः) नहीं (अस्ति) है (न) नहीं (ज्यायान्) बड़ा है और (नकिः, एव) न उत्तम ही है ॥१॥
भावार्थ
हे मनुष्यो ! जो सबसे श्रेष्ठ होवे, उसी का राजा करो ॥१॥
विषय
'अनुपम' प्रभु
पदार्थ
[१] हे (इन्द्र) = सब शक्ति के कर्मों को करनेवाले परमैश्वर्यशालिन् प्रभो ! [सर्वाणि बलकर्माणि इन्द्रस्य, इदि परमैश्वर्ये] (त्वद्) = आप से (उत्तर:) = उत्कृष्टतर (नकि:) = कोई भी नहीं है। आपकी शक्ति व ऐश्वर्य को कोई भी अभिभूत नहीं कर सकता। [२] हे (वृत्रहन्) = सब ज्ञान की आवरणभूत वासनाओं को विनष्ट करनेवाले प्रभो! आप से (ज्यायान्) = अधिक प्रशस्यतर न कोई भी नहीं है । आप ही उपासक को वासना शून्य जीवनवाला बनाकर उत्कृष्ट स्थिति प्राप्त कराते हैं । परन्तु एक उपासक कितना भी उत्कृष्टतर व प्रशस्यतर जीवनवाला बनता जाए, तो भी वह (यथा त्वम्) = जैसे आप हैं, वैसा (नकिः एव) = नहीं ही बन सकता 'न मुक्तानामपि हरेः साम्यम्' । प्रभु अनुपम हैं 'न = तस्य प्रतिमा अस्ति' ।
भावार्थ
भावार्थ- प्रभु से न कोई उत्कृष्टतर है, न प्रशस्यतर । प्रभुं जैसा भी कोई नहीं ।
विषय
राजा की सर्वोक्तम स्थिति । सर्वोपरि परमेश्वर का वर्णन ।
भावार्थ
हे (इन्द्र) ऐश्वर्यवन् ! हे (वृत्रहन्) बढ़ते शत्रु और बाधक विघ्नों के नाश करने वाले राजन् ! हे प्रभो ! (त्वत् उत्तरः नकिः) तुझ से बढ़कर, तेरा प्रतिपक्षी कोई नहीं (त्वत् ज्यायान् नकिः अस्ति) तुझ से बड़ा भी कोई नहीं । (यथा त्वम्) जैसा तू है वैसा तेरे सदृश भी (नकिः एव) कोई नहीं है ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वामदेव ऋषिः ॥ १–८, १२–२४ इन्द्रः । ९-११ इन्द्र उषाश्च देवते ॥ छन्द:- १, ३, ५, ९, ११, १२, १६, १८, १९, २३ निचृद्गायत्री । २, १०, ७, १३, १४, १५, १७, २१, २२ गायत्री । ४, ६ विराड् गायत्री ।२० पिपीलिकामध्या गायत्री । ८, २४ विराडनुष्टुप् ॥ चतुर्विंशत्पृचं सूक्तम्॥
मराठी (1)
विषय
या सूक्तात सूर्य, मेघ, मनुष्य, विद्वान व राजाच्या गुणांचे वर्णन केल्याने या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.
भावार्थ
हे माणसांनो! जो सर्वांत श्रेष्ठ असतो त्यालाच राजा करा. ॥ १ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Indra, lord ruler of the world, destroyer of evil and breaker of the cloud like the sun, there is none higher than you, none beyond, none greater, none even equal to you as you are.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The attributes of an ideal ruler are told.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O king ! like the sun destroying the clouds there is no one superior to the clouds, there is no one superior to you, shining because of your virtues. There is no one more excellent than you. There is no one comparable as you are.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
O men ! you should elect such a king who is the best and the noblest among you.
Foot Notes
(वृत्तहन्) यो वृत्र हन्ति स सूर्य्यस्तद्वद्वर्त्तंमान। = Who is like the sun destroyer of the clouds. (ज्यायान्) ज्येष्ठः = Superior.
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