ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 31/ मन्त्र 1
कया॑ नश्चि॒त्र आ भु॑वदू॒ती स॒दावृ॑धः॒ सखा॑। कया॒ शचि॑ष्ठया वृ॒ता ॥१॥
स्वर सहित पद पाठकया॑ । नः॒ । चि॒त्रः । आ । भु॒व॒त् । ऊ॒ती । स॒दाऽवृ॑धः । सखा॑ । कया॑ । शचि॑ष्ठया । वृ॒ता ॥
स्वर रहित मन्त्र
कया नश्चित्र आ भुवदूती सदावृधः सखा। कया शचिष्ठया वृता ॥१॥
स्वर रहित पद पाठकया। नः। चित्रः। आ। भुवत्। ऊती। सदाऽवृधः। सखा। कया। शचिष्ठया। वृता ॥१॥
ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 31; मन्त्र » 1
अष्टक » 3; अध्याय » 6; वर्ग » 24; मन्त्र » 1
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अष्टक » 3; अध्याय » 6; वर्ग » 24; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथ राजप्रजाधर्ममाह ॥
अन्वयः
हे राजन् ! सदावृधस्त्वं नः कयोती, कया शचिष्ठया वृता चित्रः सखा आ भुवत् ॥१॥
पदार्थः
(कया) (नः) अस्माकम् (चित्रः) अद्भुतगुणकर्मस्वभावः (आ) (भुवत्) भवेः (ऊती) ऊत्या रक्षणादिक्रियया सह (सदावृधः) सर्वदा वर्धमानः (सखा) (कया) (शचिष्ठया) अतिशयेन श्रेष्ठया वाचा प्रज्ञया कर्मणा वा (वृता) संयुक्तया ॥१॥
भावार्थः
हे राजन् ! भवतास्माभिस्सह तादृशानि कर्माणि कर्त्तव्यानि यैरस्माकं प्रीतिर्वर्द्धेत ॥१॥
हिन्दी (3)
विषय
अब पन्द्रह ऋचावाले इकतीसवें सूक्त का प्रारम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में राजप्रजाधर्मविषय को कहते हैं ॥
पदार्थ
हे राजन् ! (सदावृधः) सर्वदा वृद्धि को प्राप्त होते हुए आप (नः) हम लोगों की (कया) किस (ऊती) रक्षण आदि क्रिया के साथ और (कया) किस (शचिष्ठया) अत्यन्त श्रेष्ठ वाणी बुद्धि वा कर्म्म जो (वृता) संयुक्त उससे (चित्रः) अद्भुत गुण, कर्म्म और स्वभाववाले (सखा) मित्र (आ, भुवत्) हूजिये ॥१॥
भावार्थ
हे राजन् ! आपको चाहिये कि हम लोगों के साथ, वैसे कर्म्म करें कि जिनसे हम लोगों की प्रीति बढ़े ॥१॥
विषय
प्रभु का कल्याणकारक रक्षण
पदार्थ
[१] (चित्रः) = वे (चायनीय) = पूजनीय, (सदावृधः) = सदा से बढ़े हुए (सखा) = हमारे मित्र प्रभु (कया ऊती) = कल्याणकारक रक्षण द्वारा (नः आभुवत्) = हमारे अभिमुख होते हैं- प्रभु हमें आभिमुख्येन प्राप्त होते हैं। [२] वे प्रभु (कया) = कल्याणकारक (शचिष्ठया) = प्रज्ञावत्तम-अधिक से अधिक बुद्धि से युक्त, (वृता) = आवर्तन द्वारा हमें आभिमुख्येन प्राप्त होते हैं। प्रातः से सायं तक समस्त दैनिक कार्यक्रम 'वृत्' कहलाता है। इस समस्त कार्यक्रम को बुद्धिमता से करें, तो यह वृत् 'शचिष्ठा' होता है। प्रभु उपासक को इस 'शचिष्ठ वृत्' में चलाते हैं। इस 'शचिष्ठवृत्' द्वारा ही प्रभु उपासक का कल्याण करते हैं ।
भावार्थ
भावार्थ- प्रभु का कल्याणकारक रक्षण हमें प्राप्त हो । प्रभुकृपा से हम प्रज्ञापूर्वक दैनिक कार्य चक्र को करनेवाले बनें ।
विषय
परमेश्वर और राजा से प्रार्थना । और राजा के कर्त्तव्य ।
भावार्थ
हे प्रभो ! राजन् ! तू (कया ऊती) किस रक्षा, ज्ञान और तृप्तिकारक साधन से और (कया) किस (शचिष्ठया) सब से उत्तम शक्ति, वाणी और बुद्धि से और (कया वृता) किस व्यवहार से (नः) हमारे लिये (चित्रः) अद्भुत गुण, कर्म स्वभाव वाला, आदर सत्कार, पूजा योग्य, (सदावृधः) सदा स्वयं बढ़ने और अन्यों को बढ़ाने हारा और (सखा) सब का मित्र (आभुवत्) रूप से विद्यमान हो । उत्तर—(कथा) सुखप्रद रक्षा, वाणी और व्यवहार से ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वामदेव ऋषिः। इन्द्रो देवता॥ छन्दः- १, ७, ८, ९, १०, १४ गायत्री। २, ६, १२, १३, १५ निचृद्गायत्री । ३ त्रिपाद्गायत्री । ४, ५ विराड्गायत्री । ११ पिपीलिकामध्या गायत्री ॥ पञ्चदशर्चं सूक्तम् ॥
मराठी (1)
विषय
या सूक्तात राजा व प्रजेच्या धर्माचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणली पाहिजे.
भावार्थ
हे राजा! आमच्याबरोबर असे वाग की ज्यामुळे आमचे प्रेम वाढावे. ॥ १ ॥ ००
इंग्लिश (2)
Meaning
When would the Lord, sublime and wondrous, ever greater, ever friendly, shine in our consciousness and bless us? With what gifts of protection and promotion? What highest favour of our choice? What order of grace?
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The relations between the ruler and his subjects are described.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O ruler ! extending your kingdom and influence you become friendly to us by dint of your protective actions, nice speech, and actions or intelligence. These qualities bear peculiar virtues, actions and temperament, making you a friend in real senses.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
O rules ! you should act and behave with us in a friendly manner, so that our mutual relations grow closure.
Foot Notes
(चित्र:) अद्भुत गुणकर्मस्वभावः । = Bearing distinctive qualities, actions and temperaments. (ऊती) ऊत्या रक्षणादिक्रियया सह । = By dint of your protective actions. (सदावृधः ) सर्वदा वर्धमानः । = Ever growing. (शचिष्ठया) अतिशयेन श्रेष्ठया वाजा प्रज्ञया कर्मणा वा । = With excellent speech wisdom and actions.
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