ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 33/ मन्त्र 1
प्र ऋ॒भुभ्यो॑ दू॒तमि॑व॒ वाच॑मिष्य उप॒स्तिरे॒ श्वैत॑रीं धे॒नुमी॑ळे। ये वात॑जूतास्त॒रणि॑भि॒रेवैः॒ परि॒ द्यां स॒द्यो अ॒पसो॑ बभू॒वुः ॥१॥
स्वर सहित पद पाठप्र । ऋ॒भुऽभ्यः॑ । दू॒तम्ऽइ॑व । वाच॑म् । इ॒ष्ये॒ । उ॒प॒ऽस्तिरे॑ । श्वैत॑रीम् । धे॒नुम् । ई॒ळे॒ । ये । वात॑ऽजूताः । त॒रणि॑ऽभिः । एवैः॑ । परि॑ । द्याम् । स॒द्यः । अ॒पसः॑ । ब॒भू॒वुः ॥
स्वर रहित मन्त्र
प्र ऋभुभ्यो दूतमिव वाचमिष्य उपस्तिरे श्वैतरीं धेनुमीळे। ये वातजूतास्तरणिभिरेवैः परि द्यां सद्यो अपसो बभूवुः ॥१॥
स्वर रहित पद पाठप्र। ऋभुऽभ्यः। दूतम्ऽइव। वाचम्। इष्ये। उपऽस्तिरे। श्वैतरीम्। धेनुम्। ईळे। ये। वातऽजूताः। तरणिऽभिः। एवैः। परि। द्याम्। सद्यः। अपसः। बभूवुः ॥१॥
ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 33; मन्त्र » 1
अष्टक » 3; अध्याय » 7; वर्ग » 1; मन्त्र » 1
Acknowledgment
अष्टक » 3; अध्याय » 7; वर्ग » 1; मन्त्र » 1
Acknowledgment
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथ विद्वद्विषयमाह ॥
अन्वयः
ये वातजूताः पदार्था एवैस्तरणिभिः सद्यो द्यामपसः परिबभूवुस्तैरहमुपस्तिर ऋभुभ्यो दूतमिव श्वैतरीं धेनुं वाचं प्रेष्ये तथा पदार्थविज्ञानमीळे ॥१॥
पदार्थः
(प्र) (ऋभुभ्यः) मेधाविभ्यः। ऋभुरिति मेधाविनामसु पठितम्। (निघं०३.१५) (दूतमिव) यथा दूतो दौत्यमिच्छति (वाचम्) (इष्ये) प्राप्नोमि (उपस्तिरे) स्रस्तराय (श्वैतरीम्) अतिशयेन शुद्धाम् (धेनुम्) धारणाम् (ईळे) स्तौमि प्राप्नोमि (ये) (वातजूताः) वायुप्रेरितास्त्रसरेण्वादिपदार्थाः (तरणिभिः) सन्तरणैः (एवैः) प्राप्तैर्वेगादिगुणैः (परि) (द्याम्) आकाशम् (सद्यः) शीघ्रम् (अपसः) कर्माणि (बभूवुः) भवन्ति ॥१॥
भावार्थः
अत्रोपमालङ्कारः । ये पुरुषा यथा त्रसरेणवो वायुना क्रियां सततं कुर्वन्ति तथैव विद्वद्भ्यो विद्यां प्राप्य पुरुषार्थं सदा कुर्वन्ति ते सर्वविद्यायुक्तां शोभनां वाचं प्राप्नुवन्ति ॥१॥
हिन्दी (3)
विषय
अब ग्यारह ऋचावाले तेंतीसवें सूक्त का प्रारम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में विद्वान् के विषय को कहते हैं ॥
पदार्थ
(ये) जो (वातजूताः) वायु से उड़ाये गये त्रसरेणु आदि पदार्थ (एवैः) प्राप्त वेग आदि गुणों और (तरणिभिः) उत्तम प्रकार तैरने आदि क्रियाओं से (सद्यः) शीघ्र (द्याम्) आकाश और (अपसः) कर्मों के प्रति (परिबभूवुः) परिभूत तिरस्कृत अर्थात् रूपान्तर को प्राप्त होते हैं, उनसे मैं (उपस्तिरे) विस्तार के अर्थ और (ऋभुभ्यः) बुद्धिमानों के लिये (दूतमिव) जैसे दूत दूतपन की इच्छा करे वैसे (श्वैतरीम्) अत्यन्त शुद्ध (धेनुम्) धारण करनेवाली (वाचम्) वाणी को (प्र, इष्ये) प्राप्त करता हूँ, उस वाणी से पदार्थ विज्ञान की (ईळे) स्तुति करता हूँ ॥१॥
भावार्थ
इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । जो पुरुष जैसे त्रसरेणु वायु से क्रिया को निरन्तर करते हैं, वैसे ही विद्वानों से विद्या को प्राप्त होकर पुरुषार्थ सदा करते हैं, वे सर्व विद्याओं से युक्त सुन्दर वाणी को प्राप्त होते हैं ॥१॥
विषय
श्वैतरी धेनु
पदार्थ
[१] प्रभु कहते हैं कि मैं (ऋभुभ्यः) = ज्ञानदीप्त मस्तिष्कवाले 'ऋभु' के लिए, विशाल हृदय 'विभ्वा' के लिए तथा शक्ति सम्पन्न शरीरवाले 'वाज' के लिए (दूतं इव) = सन्देशवाहक दूत की तरह (वाचम्) = इस ज्ञानवाणी को (इष्ये) = प्रेरित करता हूँ। (उपस्तिरे) = आच्छादन के लिए, अर्थात् सब अशुभों से बचाने के लिए (श्वैतरी धेनुम्) = [श्वेततरां] अत्यन्त शुद्ध ज्ञानदुग्ध को देनेवाली इस वेदवाणी रूप गौ को ईडे प्रस्तुत करता हूँ [to praise] | इस वेदवाणी रूप गौ से वह ज्ञान इन ऋभुओं को प्राप्त होगा, जो कि इन्हें सब अशुभों से बचानेवाला होगा। [२] उन ऋभुओं के लिए मैं इसे प्रस्तुत करता हूँ, (ये) = जो कि (वातजूता:) = वायु से प्रेरणा को प्राप्त हुए हुए (अपसः) = कर्मशील (तरणिभिः एवैः) = वासनाओं को तरानेवाली गतियों द्वारा (सद्यः) = शीघ्र ही (द्याम्) = ज्ञान ज्योति को (परिबभूवुः) = व्याप्त करते हैं। जीवन में जो भी आलस्य से आक्रान्त हो जाते हैं, वे कभी भी ज्ञान को नहीं प्राप्त कर पाते 'अलसस्य कुतो विद्या' । क्रियाशीलता ही हमें ज्ञानप्राप्ति का पात्र बनाती है।
भावार्थ
भावार्थ- प्रभु हमारे लिए वेदवाणीरूप गौ को प्रस्तुत करते हैं। इसे हम प्राप्त तभी करते हैं,जब कि हमारे जीवन में आलस्य नहीं होता।
विषय
सूक्ष्म जल के परमाणुओं के तुल्य ज्ञानी पुरुषों का वर्णन उनके कर्त्तव्य।
भावार्थ
जिस प्रकार (अपसः) क्रियाशील गतिशील जलादि के परमाणु (तरणिभिः) गति देने वाले (एवैः) साधनों, सूर्य किरणादि और (वातजूताः) वायु से प्रेरित होकर (द्यां परि बभूवुः) आकाश में चढ़ जाते हैं उसी प्रकार जो (अपसः) कर्म करने वाले मनुष्य (तरणिभिः) संकटों से पार उतारने वाले (एवैः) दूर तक या उद्देश्य तक पहुंचा देने वाले साधनों या सहायकों से युक्त होकर (वातजूताः) वायु के समान प्रबल शक्तिमान् और ज्ञानवान् पुरुषों द्वारा प्रेरित होकर (सद्यः) शीघ्र ही (द्यां परि बभूवुः) ज्ञान को प्राप्त होते हैं जो बलवान् राजशक्ति से प्रेरित होकर (द्यां) भूमि को प्राप्त करते हैं मैं उन (ऋभुभ्यः) सत्य ज्ञान से प्रकाशित होने वाले शिक्षित मनुष्यों के हितार्थ (दूतम् इव वाचम्) वाणी को दूत के समान (इष्ये) कहता हूं। और (उपस्तिरे) उसके अभिप्राय को सर्वत्र फैलाने के लिये (श्वैतरीं) अति शुद्ध ज्ञानमयी । (धेनुम्) ज्ञान धारण करने वाली वाणी और बुद्धि को (ईडे) प्राप्त होऊं और उसको अन्यों के प्रति प्रस्तुत करूं ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वामदेव ऋषिः॥ ऋभवो देवता॥ छन्द:- १ भुरिक् त्रिष्टुप् । २, ४, ५, ११ त्रिष्टुप् । ३, ६, १० निचृत्त्रिष्टुप। ७, ८ भुरिक् पंक्तिः । ९ स्वराट् पंक्तिः॥
मराठी (1)
विषय
या सूक्तात विद्वान माता-पिता व माणसाच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची मागच्या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती आहे, हे जाणावे.
भावार्थ
या मंत्रात उपमालंकार आहे. जे पुरुष जसे त्रसरेणू वायूद्वारे निरंतर क्रिया करतात तसे विद्वानांकडून विद्या प्राप्त करून नेहमी पुरुषार्थ करतात ते सर्व विद्यायुक्त सुंदर वाणीने सुशोभित होतात. ॥ १ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
I send up my words to the Rbhus, scientists, as a messenger, in order that they be broadcast around, and I hope that they would be converted into a subtle, clearer and more powerful message—words which, carried up by currents of energy by their own floating vibrations, immediately rise to the upper layers of space and become acts of nature to come back in the finer form I want.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The subject of learned persons is dealt.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
The atom particles synthetized by air, are surely fast in action and floating well variously. They are soon transformed through the firmament and activate. They are useful for extension and communication between the wisemen. I get and hold such crystal-clear speech and I honor you. O scholar ! with this science of speech to learn the physical science.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
Here is a simile. The learned persons who activate like the atom particle do it in the air, attain science from the scholars and ever work hard. They are blessed with a fine speech, which is full of all meaningful learning.
Foot Notes
Cवायुप्रेरितास्त्रसरेण्वादिपदार्थाः । = The atom particles which are activated by air. (तरणिभिः:) सन्तरणैः । = By floating. (परिद्याम् ) आकाशम् । = To the firmament. (अपस:) कर्माणि । = Actions.
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal