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ऋग्वेद मण्डल - 4 के सूक्त 4 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 4/ मन्त्र 1
    ऋषिः - वामदेवो गौतमः देवता - रक्षोहाऽग्निः छन्दः - भुरिक्पङ्क्ति स्वरः - पञ्चमः

    कृ॒णु॒ष्व पाजः॒ प्रसि॑तिं॒ न पृ॒थ्वीं या॒हि राजे॒वाम॑वाँ॒ इभे॑न। तृ॒ष्वीमनु॒ प्रसि॑तिं द्रूणा॒नोऽस्ता॑सि॒ विध्य॑ र॒क्षस॒स्तपि॑ष्ठैः ॥१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    कृ॒णु॒ष्व । पाजः॑ । प्रऽसि॑तिम् । न । पृ॒थ्वीम् । या॒हि । राजा॑ऽइव । अम॑ऽवान् । इभे॑न । तृ॒ष्वीम् । अनु॑ । प्रऽसि॑तिम् । द्रू॒णा॒नः । अस्ता॑ । अ॒सि॒ । विध्य॑ । र॒क्षसः॑ । तपि॑ष्ठैः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    कृणुष्व पाजः प्रसितिं न पृथ्वीं याहि राजेवामवाँ इभेन। तृष्वीमनु प्रसितिं द्रूणानोऽस्तासि विध्य रक्षसस्तपिष्ठैः ॥१॥

    स्वर रहित पद पाठ

    कृणुष्व। पाजः। प्रऽसितिम्। न। पृथ्वीम्। याहि। राजाऽइव। अमऽवान्। इभेन। तृष्वीम्। अनु। प्रऽसितिम्। द्रूणानः। अस्ता। असि। विध्य। रक्षसः। तपिष्ठैः॥१॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 4; मन्त्र » 1
    अष्टक » 3; अध्याय » 4; वर्ग » 23; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ राजविषये सेनापतिकृत्यमाह ॥

    अन्वयः

    हे सेनेश ! त्वं राजेवाऽमवानिभेन याहि प्रसितिं पृथ्वीं न पाजः कुणुष्व यतः प्रसितिं तृष्वीमनु द्रूणानोऽस्तासि तस्मात्तपिष्ठै रक्षसो विध्य ॥१॥

    पदार्थः

    (कृणुष्व) (पाजः) बलम् (प्रसितिम्) प्रबद्धाम् (न) इव (पृथ्वीम्) भूमिम् (याहि) (राजेव) (अमवान्) बलवान् (इभेन) हस्तिना (तृष्वीम्) पिपासिताम् (अनु) (प्रसितिम्) बन्धनम् (द्रूणानः) शीघ्रकारी (अस्ता) प्रक्षेप्ता (असि) (विध्य) (रक्षसः) दुष्टान् (तपिष्ठैः) अतिशयेन सन्तापकैः शस्त्रादिभिः ॥१॥

    भावार्थः

    अत्रोपमालङ्कारः। हे राजजना ! यूयं पृथ्वीव दृढं बलं कृत्वा राजवन्न्यायाधीशा भूत्वा तृषिताम्मृगीमनुधावन् वृक इव दुष्टान् दस्यूननुधावन्तस्तान् घ्नत ॥१॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    अब पन्द्रह ऋचावाले चौथे सूक्त का आरम्भ है। उसके प्रथम मन्त्र में राजविषय में सेनापति के काम को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे सेना के ईश ! आप (राजेव) राजा के सदृश (अमवान्) बलवान् (इभेन) हाथी से (याहि) जाइये प्राप्त हूजिये (प्रसितिम्) दृढ़ बँधी हुई (पृथ्वीम्) भूमि के (न) सदृश (पाजः) बल (कृणुष्व) करिये जिससे (प्रसितिम्) बन्धन और (तृष्वीम्) पियासी के प्रति (अनु, द्रूणानः) अनुकूल शीघ्रता करनेवाले और (अस्ता) फेंकनेवाला (असि) हो इससे (तपिष्ठैः) अतिशय सन्ताप देनेवाले शस्त्र आदिकों से (रक्षसः) दुष्टों को (विध्य) पीड़ा देओ ॥१॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। हे राजसम्बन्धी जनो ! आप लोग पृथिवी के सदृश दृढ़ बल करके, राजा के सदृश न्यायाधीश होकर, पिपासित मृगी के पीछे दौड़ते हुए भेड़िये के सदृश दुष्ट डाकू जो कि अनुधावन करते अर्थात् जो कि पथिकादिकों के पीछे दौड़ते हुए, उनका नाश करो ॥१॥

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    विषय

    राजा के दो मूल कर्त्तव्य

    पदार्थ

    [१] (पाजः) = शक्ति को (कृणुष्व) = करनेवाला हो। अपने शरीर में शक्ति का सम्पादन कर (पृथ्वीम्) = विशाल (प्रसितिं न) = सेना की तरह 'प्रकृष्टा सितिः - बन्धनं यस्याः' [जो क्रम में बद्ध होकर चलती है]। राजा शक्ति का सम्पादन करके अपने अनुभावविशेष से सेना परिवृत सा प्रतीत हो । (इभेन) = [गतभयेन सा०] भयशून्य तेजस्विता से (अमवान्) = शक्तिशाली होता हुआ तू (राजा इव) = राजा की तरह (याहि) = गतिवाला हो। अपना शासक बनता हुआ कार्यों में व्याप्त हो । [२] (तृष्वीं प्रसितिं अनु) = क्षिप्रगामिनी सेना के साथ (द्रूणान:) = गति करता हुआ (अस्ता असि) = तू शत्रु सैन्य का नष्ट करनेवाला है। तू (रक्षस:) = अपने रमण के लिये औरों का क्षय करनेवाले राक्षसी वृत्ति के लोगों को (तपिष्ठै:) = संतापक अस्त्रों से विध्य बींधनेवाला हो । राजा के राष्ट्र रक्षण के लिये दो महत्त्वपूर्ण कर्त्तव्य होते हैं, [क] शत्रु-सैन्य के आक्रमण को विफल करके शत्रु- सैन्य का विनाश करना तथा [ख] अन्दर के अपराधियों को उचित दण्ड देना। ये दोनों कार्य वही कर सकता है जो कि अपना राजा हो, जितेन्द्रिय हो। ऐसा ही व्यक्ति तेजस्विता के साथ विचरता हुआ प्रजा के लिये प्रभाववाला होता है। निस्तेज विषयासक्त व्यक्ति ने क्या शासन करना ?

    भावार्थ

    भावार्थ- राजा तेजस्विता का सम्पादन करे। पहले अपना राजा बने। सेना के साथ गति करता हुआ शत्रु- शैन्य को परास्त करे और राक्षसी वृत्ति के लोगों को दण्डित करे।

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    विषय

    रक्षोघ्न अग्नि ।

    भावार्थ

    हे नायक ! तू ( प्रसितिम् ) उत्तम प्रबन्ध से युक्त पृथ्वी के समान दृढ़ ( पाजः ) आश्रयभूत बल ( कृणुष्व ) सम्पादन कर । तू ( राजा इव अमवान् ) राजा के समान सहायक पुरुषों से युक्त होकर ( इभेन ) हस्ति बल के साथ वा निर्भय गण के साथ ( याहि ) प्रयाण कर । तू ( तृष्वीम् ) अति वेग वाली, वा पियासी मृगी के पीछे भागते शिकारी के समान वा ( तृष्वी ) जल रहित भूमि के प्रति वेग से जाते हुए मेघ के समान तू भी ( तृष्वीम् ) वेग से जाने वाली वा ( तृष्वीम् ) ऐश्वर्य की चाहने वाली, तृष्णालु ( प्रसिति ) सूत्र के समान परस्पर बन्धी हुई, सुप्रबद्ध सेना के पीछे ( द्रुणानः ) आता हुआ, ( तपिष्ठैः ) अत्यधिक सन्तापजनक शस्त्रास्त्रों से ( रक्षसः ) विघ्नकारी दुष्ट पुरुषों का ( अस्ता असि ) उखाड़ फेंकने वाला हो और ( विध्य ) उनको ताड़ना कर ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वामदेव ऋषिः ॥ अग्नी रक्षोहा देवता ॥ छन्द:- १, २, ४, ५, ८ भुरिक् पंक्तिः। ६ स्वराट् पंक्तिः। १२ निचृत्पंक्तिः । ३, १०, ११, १५ निचृत् त्रिष्टुप् । ६ विराट् त्रिष्टुप् । ७, १३ त्रिष्टुप् । १४ स्वराड् बृहती । पञ्चदशर्चं सूक्तम्॥

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    मराठी (1)

    विषय

    या सूक्तात राजा व प्रजा यांच्या कृत्याचे वर्णन केल्याने या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.

    भावार्थ

    या यंत्रात उपमालंकार आहे. हे राजजनानो (सेनापती इत्यादींनो) तुम्ही पृथ्वीप्रमाणे दृढ बलयुक्त व्हा. राजाप्रमाणे न्यायाधीश बना व तृषित हरिणीमागे धावणाऱ्या लांडग्याप्रमाणे असणाऱ्या व वाटसरूंना लुटणाऱ्या दुष्ट दस्यूंचा नाश करा. ॥ १ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Arise, be strong and brilliant, go over and round the earth in orbit, spread your network over the dominion and, firm and powerful, move as a king by the elephant. Impetuous and terrible, shoot like a rocket all round wherever needed for thirsting and ensnared earth as it could be, and, like an archer as you are, fix the demons of violence with your blazing arrows.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The duties of an army Commander-in-chief are stated.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O Commander-in-Chief of an army ! like a mighty king proceed on an elephant, like a solid piece of land. Be powerful, so that you may shake off the peoples' sufferings and the thirst (desires) by helping them actively. Casting away their misery, pierce the wicked with your fierce weapons.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    O officers of the State ! you should increase your strength like the earth, be dispensers of justice like a king and track down the wicked robbers and thieves like a wolf chases a thirsty deer and kills it.

    Foot Notes

    (प्रसितिम् ) प्रबद्धाम्। = Bondage. (दूणान:) शीघ्रकारी। = Prompt, active. (अस्ता ) प्रक्षेप्ता । (पाजः ) बलम् । पाजः इति बलनाम (NG 2, 9)। = Thrower

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