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ऋग्वेद मण्डल - 4 के सूक्त 43 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 43/ मन्त्र 1
    ऋषिः - पुरुमीळहाजमीळहौ सौहोत्रौ देवता - अश्विनौ छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    क उ॑ श्रवत्कत॒मो य॒ज्ञिया॑नां व॒न्दारु॑ दे॒वः क॑त॒मो जु॑षाते। कस्ये॒मां दे॒वीम॒मृते॑षु॒ प्रेष्ठां॑ हृ॒दि श्रे॑षाम सुष्टु॒तिं सु॑ह॒व्याम् ॥१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    कः । ऊँ॒ इति॑ । श्र॒व॒त् । क॒त॒मः । य॒ज्ञिया॑नाम् । व॒न्दारु॑ । दे॒वः । क॒त॒मः । जु॒षा॒ते॒ । कस्य॑ । इ॒माम् । दे॒वीम् । अ॒मृते॑षु । प्रेष्ठा॑म् । हृ॒दि । श्रे॒षा॒म॒ । सु॒ऽस्तु॒तिम् । सु॒ऽह॒व्याम् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    क उ श्रवत्कतमो यज्ञियानां वन्दारु देवः कतमो जुषाते। कस्येमां देवीममृतेषु प्रेष्ठां हृदि श्रेषाम सुष्टुतिं सुहव्याम् ॥१॥

    स्वर रहित पद पाठ

    कः। ऊम् इति। श्रवत्। कतमः। यज्ञियानाम्। वन्दारु। देवः। कतमः। जुषाते। कस्य। इमाम्। देवीम्। अमृतेषु। प्रेष्ठाम्। हृदि। श्रेषाम। सुऽस्तुतिम्। सुऽहव्याम् ॥१॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 43; मन्त्र » 1
    अष्टक » 3; अध्याय » 7; वर्ग » 19; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथाध्यापकोपदेशकविषये प्रश्नोत्तरविषयमाह ॥

    अन्वयः

    हे विद्वन् ! क उ कतमो देवो यज्ञियानां वन्दारु श्रवत्कतमश्च जुषाते। कस्य हृदीमां प्रेष्ठां सुष्टुतिं सुहव्याममृतेषु देवीं श्रेषाम ॥१॥

    पदार्थः

    (कः) (उ) (श्रवत्) शृणोति (कतमः) (यज्ञियानाम्) यज्ञसिद्धिकर्त्तॄणाम् (वन्दारु) वन्दनशीलम् (देवः) विद्वान् (कतमः) (जुषाते) सेवते (कस्य) (इमाम्) (देवीम्) देदीप्यमानां विदुषीम् (अमृतेषु) मरणरहितेषु (प्रेष्ठाम्) अतिशयेन प्रियाम् (हृदि) (श्रेषाम) सेवेम (सुष्टुतिम्) शोभना प्रशंसा यस्यास्ताम् (सुहव्याम्) सुष्ठु गृहीतव्याम् ॥१॥

    भावार्थः

    हे विद्वांसो ! कोऽत्र यज्ञः के यज्ञसम्पादकाः को देवः का देवी किममृतं सेवनीयं श्रवणीयञ्चेति पृच्छ्यते, उत्तरमग्रे ॥१॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    अब सात ऋचावाले तेंतालीसवें सूक्त का आरम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में अध्यापकोपदेशकविषय में प्रश्नोत्तर विषय को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे विद्वन् ! (कः) कौन (उ) और (कतमः) कौनसा (देवः) विद्वान् (यज्ञियानाम्) यज्ञ की सिद्धि करनेवालों की (वन्दारु) वन्दना करनेवाले स्वभाव को (श्रवत्) सुनता है और (कतमः) कौनसा (जुषाते) सेवन करता है (कस्य) किस के (हृदि) हृदय के निमित्त (इमाम्) इस (प्रेष्ठाम्) अत्यन्त प्रिय (सुष्टुतिम्) उत्तम प्रशंसा युक्त (सुहव्याम्) उत्तम प्रकार ग्रहण करने योग्य और (अमृतेषु) मरणरहितों में (देवीम्) प्रकाशमान और विद्यायुक्त स्त्री की (श्रेषाम) सेवा करें ॥१॥

    भावार्थ

    हे विद्वानो ! कौन इस संसार में यज्ञ, कौन यज्ञ के करनेवाले, कौन विद्वान्, कौन विद्यायुक्त स्त्री तथा कौन अमृत और कौन सेवने और सुनने योग्य है, यह पूछा है, उत्तर आगे हैं ॥१॥

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    विषय

    'सुहव्या देवी' सुष्टुति

    पदार्थ

    [१] (यज्ञियानाम्) = उपासना के योग्य देवों में (कतमः) = अत्यन्त आनन्दमय (कः) = अनिरुक्त प्रजापति-शब्दों से अवर्णनीय वह प्रभु, (उ) = निश्चय से (श्रवत्) = हमारी इस प्रार्थना को सुनता है। वह (कतम: देवः) = अत्यन्त आनन्दमय देव (वन्दारु) = इस वन्दनशील स्तोत्र को (जुषाते) = प्रीतिपूर्वक सेवन करता है। [२] (कस्य) = शब्दों से अवर्णनीय उस प्रभु की (इमाम्) = इस (देवीम्) = हमारे जीवन को प्रकाशमय करनेवाली व दिव्य गुणों से भरनेवाली (सुहव्याम्) = उत्तम शब्दों से पुकारे जानेवाली (सुष्टुतिम्) = उत्तम स्तुति को (हृदि श्रेषाम) = हृदय में आलिङ्गित करते हैं, जो कि (अमृतेषु प्रेष्ठाम्) = देवों में प्रियतम है जो स्तुति देववृत्ति के लोग प्रेमपूर्वक किया करते हैं।

    भावार्थ

    भावार्थ- हमारे से की गयी स्तुति प्रभु के लिए प्रिय हो। यह स्तुति उत्तम शब्दों से उच्चारित की जाती हुई हमारे जीवनों को प्रकाशमय व दिव्य गुणोंवाला बनाए ।

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    विषय

    स्त्री पुरुषों के उत्तम गुणों का वर्णन।

    भावार्थ

    स्त्री पुरुषों के उत्तम गुणों का वर्णन करते हैं । (कः उ श्रवत्) कौन है जो स्तुतियों और उत्तम वाणियों को श्रवण करता है । और (यज्ञियानां) यज्ञ अर्थात् दान, मान, सत्कार और देववत् पूजा के योग्य पुरुषों में से (कतमः) कौन दानशील वा कामनाशील, विजयेच्छुक है जो (वन्दारु) वन्दना योग्य, उत्तम स्तुति वचन को (जुषाते) प्रेमपूर्वक स्वीकार करता है । और (अमृतेषु) दीर्घजीवी, अमृत, अमरणधर्मा पुरुषों में से (कस्य) किसके (हृदि) हृदय में (प्रेष्ठाम्) अति प्रिय (सुस्तुतिम्) उत्तम स्तुति से युक्त (सु-हव्याम्) उत्तम रीति से आदरपूर्वक ग्रहण करने योग्य (देवीम्) शुभ कामना वाली विदुषी स्त्री को (श्रेषाम) लगावें अर्थात् उत्तम सुशील, कन्यारत्न को किसकी हृदयंगमा प्रियतमा बनावें ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    पुरुमीळ्हाजमीळ्हौ सौहोत्रावृषी। अश्विनौ देवते ॥ छन्द:– १, त्रिष्टुप। २, ३, ५, ६, ७ निचृत् त्रिष्टुप । ४ स्वराट् पंक्तिः ॥ सप्तर्चं सूक्तम्॥

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    मराठी (1)

    विषय

    या सूक्तात अध्यापक व उपदेशक, शिकणाऱ्या व उपदेश ऐकणाऱ्याचे गुणवर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची मागच्या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती जाणावी.

    भावार्थ

    हे विद्वानांनो! या जगात कोणता यज्ञ, कोण यज्ञ करणारे, कोण विद्वान, कोण विदुषी व कोण अमृत तसेच कोण ग्रहण करण्यायोग्य व ऐकण्यायोग्य आहेत हे विचारलेले आहे. उत्तर पुढे आहे. ॥ १ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Who listens? Which of the adorables? Which brilliant divinity loves and entertains the song of prayer and adoration? To whose heart shall we dedicate this eulogy, divine, highly presentable, and dearest to the immortals.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    Some queries and answers regarding teachers and preachers are raised.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O learned person ! who is the best enlightened man who gets delighted on praising the accomplishers of the Yajna and who serves him? In whose heart is placed the most beloved, admirable and acceptable highly learned lady among the immortal persons (by the nature of their soul and good reputation), whom we should serve ?

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    O learned persons ! we ask these questions which is Yajna? Who are the performers of the Yajna? Who is the Deva (enlightened person) and who is a Devi (highly learned lady ) ? What is immortal which is to be heard about and served? The answers to the questions are given later on in the corresponding mantras.

    Foot Notes

    (श्रेषाम) सेवेम । = May we serve ? (सुहष्याम् ) सुष्ठु गृहीतव्याम् । = Acceptable.

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