ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 49/ मन्त्र 1
ऋषिः - वामदेवो गौतमः
देवता - इन्द्राबृहस्पती
छन्दः - निचृद्गायत्री
स्वरः - षड्जः
इ॒दं वा॑मा॒स्ये॑ ह॒विः प्रि॒यमि॑न्द्राबृहस्पती। उ॒क्थं मद॑श्च शस्यते ॥१॥
स्वर सहित पद पाठइ॒दम् । वा॒म् । आ॒स्ये॑ । ह॒विः । प्रि॒यम् । इ॒न्द्रा॒बृ॒ह॒स्प॒ती॒ इति॑ । उ॒क्थम् । मदः॑ । च॒ । श॒स्य॒ते॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
इदं वामास्ये हविः प्रियमिन्द्राबृहस्पती। उक्थं मदश्च शस्यते ॥१॥
स्वर रहित पद पाठइदम्। वाम्। आस्ये। हविः। प्रियम्। इन्द्राबृहस्पती इति। उक्थम्। मदः। च। शस्यते ॥१॥
ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 49; मन्त्र » 1
अष्टक » 3; अध्याय » 7; वर्ग » 25; मन्त्र » 1
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अष्टक » 3; अध्याय » 7; वर्ग » 25; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथ राजमनुष्याः कथं वर्धेरन्नित्याह ॥
अन्वयः
हे इन्द्राबृहस्पती ! वामास्य इदं प्रियमुक्थं मदश्च हविः शस्यते ॥१॥
पदार्थः
(इदम्) (वाम्) (आस्ये) मुखे (हविः) अत्तुमर्हं संस्कृतमन्नम् (प्रियम्) कमनीयम् (इन्द्राबृहस्पती) विद्युत्सूर्य्याविव प्रधानराजानौ (उक्थम्) प्रशंसनीयम् (मदः) आनन्दः (च) (शस्यते) स्तूयते ॥१॥
भावार्थः
यदि राजादयो मनुष्याः सुसंस्कृतान्नं भुञ्जते तर्हि प्रकाशवन्तो दीर्घायुषो बलिष्ठाश्च जायन्ते ॥१॥
हिन्दी (3)
विषय
अब छः ऋचावाले उनचासवें सूक्त का आरम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में राजा और प्रजा की कैसे वृद्धि हो, इस विषय को कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (इन्द्राबृहस्पती) बिजुली और सूर्य्य के सदृश मन्त्री और राजा ! (वाम्) आप दोनों के (आस्ये) सुख में (इदम्) यह (प्रियम्) सुन्दर (उक्थम्) प्रशंसा करने योग्य (मदः) आनन्द (च) और (हविः) खाने योग्य वस्तु (शस्यते) स्तुति किया जाता है ॥१॥
भावार्थ
जो राजा आदि मनुष्य उत्तम प्रकार संस्कारयुक्त अन्न को खाते हैं तो प्रकाशयुक्त अधिक अवस्थावाले और बलवान् होते हैं ॥१॥
विषय
हवि, उक्थ व मद
पदार्थ
(१) हे (इन्द्राबृहस्पती) = शक्ति व ज्ञान का ऐश्वर्य प्राप्त करनेवाले व्यक्तियो! (इदम्) = यह (वाम्) = आपके (आस्ये) = मुख में (प्रियम्) = प्रीतिकारक (हवि:) = यज्ञशेष के रूप में सात्त्विक अन्न (शस्यते) = प्रशंसा के योग्य होता है। 'आप यज्ञशेष' का सेवन करते हो । वस्तुतः यह यज्ञशेष का सेवन ही आपको शक्ति व ज्ञान का ऐश्वर्य प्राप्त कराता है । [२] (उक्थम्) = आप से किया जानेवाला यह प्रभु का स्तवन प्रशंसनीय होता है। यह स्तवन ही आपको संसार के विषयों में फँसने से बचाता है। (च) = और (मदः) = आपका यह उल्लास शंसनीय होता है। आप सात्त्विक अन्न के सेवन व स्तवन से उल्लासमय जीवनवाले बनते हैं।
भावार्थ
भावार्थ– यदि हम सात्त्विक अन्न के सेवन व प्रभुस्तवन को अपनाएँगे तो उत्साहमय जीवनवाले बनकर 'इन्द्र' [शक्तिशाली] व 'बृहस्पति' [ज्ञानी] बनेंगे।
विषय
बलवान् राजा और ज्ञानवान् अमात्य इन्द्र बृहस्पति।
भावार्थ
हे (इन्द्रा-बृहस्पती) ऐश्वर्यवन् इन्द्र ! राजन् ! हे बृहती वेद वाणी के पालक विद्वान् पुरुषो! (वाम् आस्ये) आप दोनों के ‘आस्य’ अर्थात् मुख में (इदं) यह (प्रियं) प्रिय, तृप्तिकारक (हविः) उपादेय अन्न ग्राह्य वचन, ज्ञान, (प्रियम् उक्थं) और प्रिय प्रीतिकारक वचन (मदश्च) और तृप्तिकारक हर्ष और (दमः) दम, दमन का अभ्यास (शस्यते) प्रशंसा करने योग्य हो । क्षत्रिय के पास उत्तम ऐश्वर्य और दमन बल हो, ब्राह्मण के पास उत्तम सात्विक अन्न, ज्ञानमय वचन और जितेन्द्रियता हो ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वामदेव ऋषिः॥ इन्द्राबृहस्पती देवते। छन्द:– निचृद्गायत्री। २, ३, ४,५, ६ गायत्री॥ षड्जः स्वरः॥
मराठी (1)
विषय
या सूक्तात राजा व प्रजेच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती जाणावी.
भावार्थ
जे राजे इत्यादी उत्तम प्रकारे संस्कारित केलेले अन्न खातात तेव्हा ते प्रकाशयुक्त (तेजस्वी) दीर्घायुषी व बलवान होतात. ॥ १ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Indra, O lord intrepidable of ruling power, Brhaspati, O lord protector and promoter of the wide world and its comprehensive knowledge, this is the holy offering of food and this the heartfelt offering of happy tribute made for your acceptance and enjoyment.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
How should officers of the State behave is told.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O President of the State and King ! you are like electricity power and sun. I propose this agreeable and admirable well-cooked good food to eat and praise your joy.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
If the king and other people take well-cooked good food, they become glorious, long-lived and mighty.
Foot Notes
(हविः) अत्तु मंहं संस्कृतमन्नम् । (हवि ) हु दानादनयोः आदाने च ( जुहो० ) अत्र अदनार्थः । अद-भक्षणे (अदा० ) = Worth eating, well cooked food. (इन्द्राबृहस्पती) विद्युत्सूर्य्याविव प्रधानराजानौ । एष (प्राणः) उ एव बृहस्पति: ( Stph 14, 4, 1, 22 ) प्राण: प्रजानामुदयत्येष सूर्यः । (प्राणोपनिषदि ) तस्मा- त्प्रजानां प्राणस्य सूर्यस्यापि ग्रहणम् । यच्चक्षुः स बृहस्पतिः ।। ( गोपथे उ० 4, 11 ) सूर्यो विश्वस्य चक्षुः । बृहस्पतिः बृहतोराष्ट्रस्य पतिः प्रधानः इन्द्रः राजा । इदि परमैश्वर्ये । = President of the State and King who are like electricity and the sun.
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