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ऋग्वेद मण्डल - 5 के सूक्त 56 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 56/ मन्त्र 1
    ऋषिः - श्यावाश्व आत्रेयः देवता - मरुतः छन्दः - विराड्जगती स्वरः - निषादः

    अग्ने॒ शर्ध॑न्त॒मा ग॒णं पि॒ष्टं रु॒क्मेभि॑र॒ञ्जिभिः॑। विशो॑ अ॒द्य म॒रुता॒मव॑ ह्वये दि॒वश्चि॑द्रोच॒नादधि॑ ॥१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अग्ने॑ । शर्ध॑न्तम् । आ । ग॒णम् । पि॒ष्टम् । रु॒क्मेभिः॑ । अ॒ञ्जिऽभिः॑ । विशः॑ । अ॒द्य । म॒रुता॑म् । अव॑ । ह्व॒ये॒ । दि॒वः । चि॒त् । रो॒च॒नात् । अधि॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अग्ने शर्धन्तमा गणं पिष्टं रुक्मेभिरञ्जिभिः। विशो अद्य मरुतामव ह्वये दिवश्चिद्रोचनादधि ॥१॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अग्ने। शर्धन्तम्। आ। गणम्। पिष्टम्। रुक्मेभिः। अञ्जिभिः। विशः। अद्य। मरुताम्। अव। ह्वये। दिवः। चित्। रोचनात्। अधि ॥१॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 56; मन्त्र » 1
    अष्टक » 4; अध्याय » 3; वर्ग » 19; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ विद्वदुपदेशेन मनुष्यगुणान् वायुगुणान् विदित्वा पुनर्मनुष्याः किं कुर्युरित्याह ॥

    अन्वयः

    हे अग्ने ! यथाऽहं रुक्मेभिरञ्जिभिर्मरुतां पिष्टं शर्धन्तं गणमाह्वयेऽद्य दिवो रोचनाच्चिद्विशोऽध्यव ह्वये तथा त्वमप्याचर ॥१॥

    पदार्थः

    (अग्ने) विद्वन् (शर्धन्तम्) बलवन्तम् (आ) समन्तात् (गणम्) समूहम् (पिष्टम्) अवयवीभूतम् (रुक्मेभिः) रोचमानैः सुवर्णादिभिर्वा (अञ्जिभिः) कमनीयैः (विशः) (अद्य) (मरुताम्) मनुष्याणाम् (अव) (ह्वये) शब्दयेयम् (दिवः) प्रकाशमानात् (चित्) अपि (रोचनात्) रुचिविषयात् (अधि) उपरिभावे ॥१॥

    भावार्थः

    अत्र वाचकलुप्तोपालङ्कारः। ये पुरुषा वायूनां मनुष्याणाञ्च गुणान् जानन्ति ते सत्कर्त्तारो भवन्ति ॥१॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    विद्वानों के उपदेश से मनुष्य और वायु के गुणों को जानकर फिर मनुष्य क्या करें, इस विषय को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे (अग्ने) विद्वन् ! जैसे मैं (रुक्मेभिः) प्रकाशमान सुवर्ण आदि वा (अञ्जिभिः) सुन्दर पदार्थों से (मरुताम्) मनुष्यों के (पिष्टम्) अवयवीभूत (शर्धन्तम्) बलवान् (गणम्) समूह को (आ) सब ओर से (ह्वये) पुकारता हूँ और (अद्य) आज (दिवः) प्रकाशमान (रोचनात्) प्रीति के विषय से (चित्) भी (विशः) मनुष्यों को (अधि) ऊपर के भाव में (अव) अत्यन्त पुकारता हूँ, वैसे आप भी आचरण करिये ॥१॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है । जो मनुष्य वायु और मनुष्यों के गुणों को जानते हैं, वे सत्कार करनेवाले होते हैं ॥१॥

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    विषय

    वीरों का स्वर्णपदकों से सजना ।

    भावार्थ

    भा०—हे (अग्ने) अग्रणी नायक ! प्रधान पुरुष जनो ! (दिवः चित् रोचनात् ) कान्तिमान् सूर्य से अधिकृत ( मरुतां गणम् ) वायुओं के समान ( रोचनात् ) सबको रुचिकर और सबको प्रसन्न करने वाले, सर्वप्रिय, (दिवः ) सूर्यवत् तेजस्वी पुरुष से ( अधि) अधिकृत, उसके अधीन (शर्धन्तम् ) बलवान्, सैन्यवत् शूरवीर, (अंजिभिः ) अपने २ वर्गों को अभिव्यक्त करने वाले ( रुक्मेभिः ) रुचिकर स्वर्णमय, पदकों, पदसूचक चिह्नों, वा टाइटिलों से ( पिष्टं ) सुशोभित ( मरुताम् गणम् ) मनुष्यों, विद्वानों, सैनिक एवं वैश्य प्रजाजनों के गण तथा ( विशः गणम् ) प्रजा के समूह को ( अद्य ) आज, विशेष २ अवसर पर ( अवः ह्वये ) विनयपूर्वक बुलाता हूं ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    श्यावाश्व आत्रेय ऋषिः ॥ मरुतो देवताः ॥ छन्दः- १, २, ५ निचृद् बृहती ४ विराड्बृहती । ८, ९ बृहती । ३ विराट् पंक्तिः । ६, ७ निचृत्पंक्ति: ॥ नवर्चं सूक्तम् ॥

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    विषय

    शत्रुविनाश व ज्ञानदीप्ति

    पदार्थ

    [१] हे (अग्ने) = अग्रणी प्रभो ! मैं (मरुतों) = प्राणों के (गणम्) = समूह को (आ) [ह्वये] = पुकारता हूँ, प्राणों के गण को प्राप्त करने के लिये आपकी आराधना करता हूँ, जो प्राणों का गण (शर्धन्तम्) = शत्रुओं का प्रसहन [अभिभव] कर रहा है, सब काम-क्रोध आदि शत्रुओं को कुचलनेवाला है और जो प्राणों का गण (अंजिभिः) = जीवन को कान्त [सुन्दर] बनानेवाली, जीवन को सुभूषित करनेवाली [अजू to decorate] (रुक्मेभिः) = देदीप्यमान ज्ञान-ज्योतियों से (पिष्टम्) = [युक्तम् सा०] शोभित है। वस्तुतः प्राणसाधना से रोग व वासनारूप शत्रु कुचले जाते हैं और ज्ञानदीप्ति चमक आती है। [२] मैं (अद्य) = आज (मरुतां विशः) = प्राणों की प्रजा को, प्राणों के इस गण को (दिवः रोचनात्) = प्रकाश की दीप्ति के हेतु से (अधि अव ह्वये) = खूब ही अपने सम्मुख पुकारता हूँ। प्राणसाधना करता हुआ मैं ज्ञानदीप्ति को प्राप्त करता हूँ।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्राणसाधना से रोग व वासनाएँ कुचली जाती हैं और ज्ञान दीप्त हो उठता है।

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    मराठी (1)

    विषय

    या सूक्तात विद्वान व वायूच्या गुणाचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्वसूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.

    भावार्थ

    या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जी माणसे वायू व माणसांच्या गुणांना जाणतात ती सत्कार करण्यायोग्य असतात. ॥ १ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Agni, ruler of the land, today I call upon the most daring troop of the Maruts, commandos of the nation decorated with golden honours of rainbow brilliancy from amongst the most shining and intelligent defence forces of the country.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    After knowing the attributes of good men and the winds through the teaching of the enlightened persons, what should men do is told.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O learned leader ! I call upon the best of mighty and thoughtful men bedecked with beautiful golden chains and ornaments. From brilliant, the light of knowledge, I give teachings to the people. You should also emulate this.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    Those persons who know the attributes of good men and the winds, respect the virtuous men.

    Foot Notes

    (शर्धन्तम् ) बलवन्तम् । शर्ध इति बलनाम (NG 2, 9)। = Mighty, powerful. (अञ्जिभिः) कमनीयैः । अञ्जु -व्यक्तिम्रक्षणकान्तिगतिषु ( रुधा० ) अत्र कान्त्यर्थः । कान्तिः कामना | = Desirable, beautiful.

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