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ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 71/ मन्त्र 1
आ नो॑ गन्तं रिशादसा॒ वरु॑ण॒ मित्र॑ ब॒र्हणा॑। उपे॒मं चारु॑मध्व॒रम् ॥१॥
स्वर सहित पद पाठआ । नः॒ । ग॒न्त॒म् । रि॒शा॒द॒सा॒ । वरु॑ण । मित्र॑ । ब॒र्हणा॑ । उप॑ । इ॒मम् । चारु॑म् । अ॒ध्व॒रम् ॥
स्वर रहित मन्त्र
आ नो गन्तं रिशादसा वरुण मित्र बर्हणा। उपेमं चारुमध्वरम् ॥१॥
स्वर रहित पद पाठआ। नः। गन्तम्। रिशादसा। वरुण। मित्र। बर्हणा। उप। इमम्। चारुम्। अध्वरम् ॥१॥
ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 71; मन्त्र » 1
अष्टक » 4; अध्याय » 4; वर्ग » 9; मन्त्र » 1
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अष्टक » 4; अध्याय » 4; वर्ग » 9; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनरध्यापकोपदेशकौ किं कुर्य्यातामित्याह ॥
अन्वयः
हे रिशादसा वरुण मित्र ! बर्हणा युवामिमं नश्चारुमध्वरमुपागन्तम् ॥१॥
पदार्थः
(आ) समन्तात् (नः) अस्माकम् (गन्तम्) गच्छतम् (रिशादसा) दुष्टहिंसकौ (वरुण) श्रेष्ठ (मित्र) सुहृत् (बर्हणा) वर्धकौ (उप) (इमम्) (चारुम्) सुन्दरम् (अध्वरम्) यज्ञम् ॥१॥
भावार्थः
यदि विद्वांसौ व्यवहाराख्यं यज्ञमकरिष्यंस्तर्ह्यस्माकमुन्नतये प्रभवोऽभविष्यन् ॥१॥
हिन्दी (3)
विषय
अब तीन ऋचावाले एकहत्तरवें सूक्त का आरम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में फिर अध्यापक और उपदेशक क्या करें, इस विषय को कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (रिशादसा) दुष्टों के मारनेवाले (वरुण) श्रेष्ठ और (मित्र) मित्र ! (बर्हणा) बढ़ानेवाले आप दोनों (इमम्) इस (नः) हम लोगों के (चारुम्) सुन्दर (अध्वरम्) यज्ञ के (उप) समीप (आ) सब प्रकार से (गन्तम्) प्राप्त होओ ॥१॥
भावार्थ
जो विद्वान् जन व्यवहार नामक यज्ञ को करें तो हम लोगों की उन्नति के लिये समर्थ हों ॥१॥
विषय
ज्ञानी और सर्वप्रिय जनों का ज्ञान और लोकोपयोगी कर्मों के बढ़ाने का उपदेश ।
भावार्थ
भा०-हे ( वरुण मित्र ) शत्रुओं के वारण और प्रजाओं को प्रेम करने हारो ! आप दोनों (रिशादसा ) दुष्टों का नाश करने वाले, और ( बर्हणा ) प्रजाओं की ऐश्वर्य, रक्षा, पालन आदि से वृद्धि करने वाले हो, आप दोनों (नः) हमारे ( इमं ) इस ( चारुम् ) उत्तम ( अध्वरम् ) हिंसारहित, प्रजा के पालक, यज्ञ, राष्ट्र को ( आ उप गन्तम् ) सदा आदर पूर्वक प्राप्त होवो ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
बाहुवृक्त आत्रेय ऋषिः ।। मित्रावरुणौ देवते । गायत्री छन्दः ॥ तृचं सुक्तम् ॥
विषय
रिशादसा- बर्हणा
पदार्थ
[१] हे (रिशादसा) = शत्रुओं के विनष्ट करनेवाले (वरुण मित्र) = निर्देषता व स्नेह के भावो ! आप (नः) = हमारे इस (चारुम्) = सुन्दर (अध्वरम्) = हिंसारहित जीवन-यज्ञ में (आगन्त) = आओ। वस्तुतः आपने ही इस जीवन-यज्ञ को चारुता प्रदान करनी है। [२] (बर्हणा) = [निबर्हणौ] शत्रुओं के विनष्ट करनेवाले आप (इमं उप) = इस यज्ञ को समीपता से प्राप्त होवो। जिस जीवन में स्नेह व निर्देषता का स्थान बन जाता है, वहां काम-क्रोध-लोभ आदि आसुरभावों का समापन ही हो जाता है।
भावार्थ
भावार्थ - जिस जीवन में स्नेह व निद्वेषता का स्थान होता है वहाँ आसुरभावों का विनाश हो जाता है। जीवन यज्ञमय बन जाता है।
मराठी (1)
विषय
या सूक्तात मित्र, श्रेष्ठ व विद्वानांच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्वसूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.
भावार्थ
जे विद्वान लोक व्यवहाररूपी यज्ञ करतात ते आमच्या उन्नतीसाठी समर्थ व्हावेत. ॥ १ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
O Mitra and Varuna, leading lights of love and friendship, justice and rectitude, destroyers of negativities, hate and enmity, promoters of love and unity, knowledge and positive action, come to us and join this pleasing and elevating programme of love and non-violence, this yajna for common good.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
What should the teachers and preachers do is told.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O friend and noble person! you are destroyers (annihilators. Ed.) of the wicked persons and increasers (promoters. Ed.) of our knowledge and strength. Please come to this our good nonviolent sacrifice, i.e. Yajna.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
If the enlightened persons perform practical Yajna in the form of good and honest dealings, they are able to make us advanced in every field.
Foot Notes
(रिशादसा ) दुष्टहिंसको । रिश्-हिंसायाम् (तु० ) । अद्- भक्षणे (अ०)। = Destroyers of the wicked. (बर्हणा) वर्षको । बृह-बुद्धौ (भ्वा० ) = Increasers of our knowledge, and strength. (अध्वरम्) यशम् । = Yajna or non-violent sacrifice.
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