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ऋग्वेद मण्डल - 5 के सूक्त 84 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 84/ मन्त्र 2
    ऋषिः - अत्रिः देवता - पृथिवी छन्दः - भुरिक्पङ्क्ति स्वरः - पञ्चमः

    स्तोमा॑सस्त्वा विचारिणि॒ प्रति॑ ष्टोभन्त्य॒क्तुभिः॑। प्र या वाजं॒ न हेष॑न्तं पे॒रुमस्य॑स्यर्जुनि ॥२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स्तोमा॑सः । त्वा॒ । वि॒ऽचा॒रि॒णि॒ । प्रति॑ । स्तो॒भ॒न्ति॒ । अ॒क्तुऽभिः॑ । प्र । या । वाज॑म् । न । हेष॑न्तम् । पे॒रुम् । अस्य॑सि । अ॒र्जु॒नि॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स्तोमासस्त्वा विचारिणि प्रति ष्टोभन्त्यक्तुभिः। प्र या वाजं न हेषन्तं पेरुमस्यस्यर्जुनि ॥२॥

    स्वर रहित पद पाठ

    स्तोमासः। त्वा। विऽचारिणि। प्रति। स्तोभन्ति। अक्तुऽभिः। प्र। या। वाजम्। न। हेषन्तम्। पेरुम्। अस्यसि। अर्जुनि ॥२॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 84; मन्त्र » 2
    अष्टक » 4; अध्याय » 4; वर्ग » 29; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनः स्त्री कीदृशी भवेदित्याह ॥

    अन्वयः

    हे अर्जुनि विचारिणि ! या त्वं वाजं न हेषन्तं पेरुं प्राऽस्यसि तां त्वा स्तोमासोऽक्तुभिः प्रति ष्टोभन्ति ॥२॥

    पदार्थः

    (स्तोमासः) स्तुतिकर्त्तारः (त्वा) त्वाम् (विचारिणि) विचारितुं शीलं यस्यास्तत्सम्बुद्धौ (प्रति) (स्तोभन्ति) स्तुवन्ति (अक्तुभिः) रात्रिभिः (प्र) (या) (वाजम्) वेगम् (न) इव (हेषन्तम्) शब्दं कुर्वन्तम् (पेरुम्) पूरकम् (अस्यसि) प्रक्षिपसि (अर्जुनि) उषर्वद्वर्त्तमाने ॥२॥

    भावार्थः

    अत्रोपमावाचकलुप्तोपमालङ्कारौ । यथा विद्वांसः स्तुत्यान् स्तुवन्ति तथैव विदुषी स्त्री प्रशंसनीयं प्रशंसति ॥२॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर स्त्री कैसी हो, इस विषय को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे (अर्जुनि) उषा के समान वर्त्तमान (विचारिणि) विचार करनेवाली स्त्री ! (या) जो तू (वाजम्) वेग के (न) समान (हेषन्तम्) शब्द करते हुए (पेरुम्) पूर्ण करनेवाले को (प्र, अस्यसि) फेंकती है उस (त्वा) तेरी (स्तोमासः) स्तुति करनेवाले जन (अक्तुभिः) रात्रियों से (प्रति, स्तोभन्ति) सब प्रकार स्तुति करते हैं ॥२॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में उपमा और वाचकलुप्तोपमालङ्कार हैं। जैसे विद्वान् जन स्तुति करने योग्य जनों की स्तुति करते हैं, वैसे ही विद्यायुक्त स्त्री प्रशंसा करने योग्य की प्रशंसा करती है ॥२॥

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    विषय

    उसका पति के प्रति कर्त्तव्य ।

    भावार्थ

    भा०-हे ( विचारिणि ) विचार करने वाली स्त्रि ! वा राजसभे ! ( स्तोमासः) उत्तम विद्वान् पुरुष ( अक्तुभिः ) सब दिन ( त्वा प्रति स्तोभन्ति ) तेरी स्तुति, प्रशंसा करें। ( या ) जो तू पृथिवी के समान हे ( अर्जुनि ) उषा के तुल्य कमनीये ! शुद्धाचरण वाली ! एवं प्रकाशवन् अर्थ सञ्च करने हारी ! तू ( हेषन्तं वाजं न ) हिनहिनाते अश्व के समान गर्जते ( पेरुं ) मेघ को पृथिवी के समान, पालक पुरुष, अर्धांग सुप्रसन्न और पूरक पति को (अस्यसि ) सन्मार्ग में प्रेरित करती, ऊपर उठाती है । उसके अभ्युदय, और यश का कारण होती है ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अत्रिर्ऋषिः। पृथिवी देवता ॥ छन्द: – १, २ निचदनुष्टुप् । ३ विराडनुष्टुप् ॥ तृचं सूक्तम् ।।

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    विषय

    पेरु-प्रासन

    पदार्थ

    [१] विविध पिण्डों व पक्षियों का संचरण स्थान होने से अन्तरिक्ष 'विचारिणी' कहलाता है । हे विचारिणि विविध पिण्डों की संचरण स्थानभूत अन्तरिक्ष देवते! (स्तोमासः) = [स्तोतार: सा०] तेरे गुण-धर्मों का स्तवन करनेवाले लोग (अक्तुभिः) = [light, darkness] कभी प्रकाशों व कभी अन्धकारों के होने से (त्वा) = तुझे (प्रतिष्टोभन्ति) = प्रतिदिन स्तुत करते हैं। अन्तरिक्ष कभी तो मेघों के अन्धकारवाला होता है और कभी मेघशून्य व प्रकाशमय प्रतीत होता है। [२] हे (अर्जुनि) = अपने अन्दर मेघों का अर्जन करनेवाली अन्तरिक्ष देवि ! तू वह है (या) = जो (हेबन्तं वाजम् न) = शब्द करते हुए उच्छंखल अश्व के समान (पेरुम्) = इस पालक मेघ को (प्रास्यसि) = वृष्टिरूप में नीचे फेंकनेवाली होती है। 'अर्जुनि' शब्द का अर्थ सायण 'गमनशीले' यह करते हैं। इस अन्तरिक्ष में मेघ इधर-उधर घूम रहे हैं। इन मेघों को वह अन्तरिक्ष भिन्न-भिन्न स्थानों पर फेंकनेवाला, बरसानेवाला होता है ।

    भावार्थ

    भावार्थ- यह अन्तरिक्ष सब पिण्डों व मेघों का गति-स्थान बना हुआ है। यह अन्तरिक्ष ही मानो इन गर्जते हुए मेघों को उस उस स्थान पर वृष्टि करता है।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात उपमा व वाचकलुप्तोपमालंकार आहेत. जसे विद्वान लोक स्तुती करण्यायोग्य लोकांची स्तुती करतात. तसेच विदुषी स्त्री प्रशंसा करण्यायोग्याची प्रशंसा करते. ॥ २ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    O moving one, the celebrants adore you day and night with songs, you, O bright one, who shake and impel the roaring cloud like a war horse onward to victory.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The character of an ideal lady is told.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O thoughtful and beautiful lady ! like the dawn, admirers and praises you on account of virtues like the mighty-peaceful disposition etc., you throw away an impetuous evil thought that fills the heart with grief and misery which is like neighing horse.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    As the enlightened persons praise only the really admirable, likewise a highly educated lady praises only him who is truly praiseworthy.

    Foot Notes

    (अक्तभि:) रात्रिभिः । अक्तु इति रात्रिनाम (NG 1, 7)। = By right virtues like the nights peaceful disposition etc. (अक्षुनि) उषवर्द्वत्तमाने । अर्जुनी इति उषोनाम (NG 3, 7 ) अर्जुनम् इति रूपनाम (NK 3, 7 ) । = Beautiful like the dawn. (पेरुम् ) पूरकम् । = That which fills the heart with grief or misery etc.

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