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ऋग्वेद मण्डल - 6 के सूक्त 27 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 27/ मन्त्र 1
    ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः देवता - इन्द्र: छन्दः - स्वराट्पङ्क्ति स्वरः - पञ्चमः

    किम॑स्य॒ मदे॒ किम्व॑स्य पी॒ताविन्द्रः॒ किम॑स्य स॒ख्ये च॑कार। रणा॑ वा॒ ये नि॒षदि॒ किं ते अ॑स्य पु॒रा वि॑विद्रे॒ किमु॒ नूत॑नासः ॥१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    किम् । अ॒स्य॒ । मदे॑ । किम् । ऊँ॒ इति॑ । अ॒स्य॒ । पी॒तौ । इन्द्रः॑ । किम् । अ॒स्य॒ । स॒ख्ये । च॒का॒र॒ । रणाः॑ । वा॒ । ये । नि॒ऽसदि॑ । किम् । ते । अ॒स्य॒ । पु॒रा । वि॒वि॒द्रे॒ । किम् । ऊँ॒ इति॑ । नूत॑नासः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    किमस्य मदे किम्वस्य पीताविन्द्रः किमस्य सख्ये चकार। रणा वा ये निषदि किं ते अस्य पुरा विविद्रे किमु नूतनासः ॥१॥

    स्वर रहित पद पाठ

    किम्। अस्य। मदे। किम्। ऊँ इति। अस्य। पीतौ। इन्द्रः। किम्। अस्य। सख्ये। चकार। रणाः। वा। ये। निऽसदि। किम्। ते। अस्य। पुरा। विविद्रे। किम्। ऊँ इति। नूतनासः ॥१॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 27; मन्त्र » 1
    अष्टक » 4; अध्याय » 6; वर्ग » 23; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथात्र प्रश्नानाह ॥

    अन्वयः

    हे वैद्यराजेन्द्रोऽस्य मदे किं चकार। अस्य पीतौ किमु चकारास्य सख्ये किं चकार ये वा निषदि रणा अस्य पुरा किं विविद्रे किमु नूतनासो विविद्रे ते किमनुतिष्ठन्ति ॥१॥

    पदार्थः

    (किम्) (अस्य) (मदे) आनन्दे (किम्) (उ) (अस्य) (पीतौ) (इन्द्रः) दुःखविदारकः (किम्) (अस्य) (सख्ये) मित्रत्वे (चकार) (रणाः) रममाणाः (वा) (ये) (निषदि) (किम्) (ते) (अस्य) (पुरा) (विविद्रे) विदन्ति (किम्) (उ) (नूतनासः) ॥१॥

    भावार्थः

    अत्र सोमलतादिरसपानविषयाः प्रश्नाः सन्ति तेषामुत्तराण्युत्तरस्मिन् मन्त्रे ज्ञेयानि ॥१॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    अब आठ ऋचावाले सत्ताईसवें सूक्त का प्रारम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में प्रश्नों को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे वैद्यराज ! (इन्द्रः) दुःख के नाश करनेवाले ने (अस्य) इसके (मदे) आनन्द में (किम्) क्या (चकार) किया (अस्य) इसके (पीतौ) पान करने में (किम्) क्या (उ) ही किया (अस्य) इसके (सख्ये) मित्रपने में क्या किया और (ये) जो (वा) वा (निषदि) बैठते हैं जिसमें उस गृह में (रणाः) रमते हुए (अस्य) इसके (पुरा) सम्मुख (किम्) क्या (विविद्रे) जानते हैं और (किम्) क्या (उ) और (नूतनासः) नवीन जन जानते हैं (ते) वे (किम्) क्या अनुष्ठान करते हैं ॥१॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में सोमलताआदि के रस के पानविषयक प्रश्न हैं, उनके उत्तर अगले मन्त्र में जानने चाहिये ॥१॥

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    विषय

    राज्यैश्वर्य की रक्षा और दुष्ट दमन के उपायों का उपदेश ।

    भावार्थ

    हे विद्वान् पुरुषो ! ( इन्द्रः ) ऐश्वर्यवान्, शक्तिशाली, शत्रुहन्ता पुरुष ( अस्य मदे ) इस राज्यैश्वर्य को प्राप्त कर उसके हर्ष वा उसको दमन कर लेने के निमित्त ( किं चकार ) क्या करे ? ( अस्यपीतौ ) इसके उपभोग और पालन के निमित्त ( किं चकार ) क्या करे ? ( अरय सख्ये ) इसकी मित्रता की वृद्धि के लिये वह ( किं चकार ) क्या २ उपाय करे ? ( वा ) और ( ये ) जो ( अस्य ) इसके (निषदि) राज्यासन पर विराजने पर ( रणाः ) आनन्द प्रसन्न होते हैं वे प्रजाजन ( पुरा ) पहले और ( नूतनासः ) नये भी ( किं विविद्रे ) क्या २ लाभ करें और वे क्या २ कर्त्तव्य जानें ? इसका उत्तर अगली ऋचा में है ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    भरद्वाजा बार्हस्पत्य ऋषिः ॥ १ - ७ इन्द्रः । ८ अभ्यावर्तिनश्चायमानस्य दानस्तुतिर्देवता ।। छन्दः—१, २ स्वराट् पंक्ति: । ३, ४ निचृत्त्रिष्टुप् । ५, ७, ८ त्रिष्टुप् । ६ ब्राह्मी उष्णिक् ।।

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    विषय

    सोमपान का क्या लाभ है ?

    पदार्थ

    [१] (अस्य) = इस सोमपान [वीर्यरक्षण] से (जनित मदे) = उल्लास में (इन्द्रः) = यह जितेन्द्रिय पुरुष (किं चकार) = क्या करता है? (उ) = और (अस्य पीतौ) = इसके शरीर के अन्दर पीने पर (किम्) = क्या करता है? (अस्य सख्ये) = इसकी मित्रता में (किम्) = क्या करनेवाला होता है ? [२] (वा) = या (ये) = जो (अस्य निषदि) = इसकी उपासना में, इसके रक्षण से युक्त इस शरीर गृह में (रणा:) = रमण करते हैं, आनन्द का अनुभव करते हैं (ते) = वे (पुरा) = पहले (किम्) = क्या (विवि) = प्राप्त करते हैं, (उ) = और उन्हें (नूतनासः किम्) = क्या नवीन लाभ होते हैं ?

    भावार्थ

    भावार्थ- यह मन्त्र सोमपान से होनेवाले लाभ का संकेत करने के लिये प्रश्न के रूप में करता है कि सोमपान से क्या होता है ? अगले मन्त्र में उत्तर देते हैं -

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    मराठी (1)

    विषय

    या सूक्तात इंद्र, ईश्वर, राजा व प्रजेच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.

    भावार्थ

    या मंत्रात सोमलता इत्यादी रसपानाविषयी प्रश्न आहेत, त्यांची उत्तरे पुढील मंत्रातून जाणावी. ॥ १ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    What does Indra, destroyer of suffering, do in the ecstasy of this soma, for the beauty and glory of this order? What in the exuberance of the drink, in the joyous experience of its management and satisfaction therefrom? What in the friendly identity with it and its people? And what do they know and discern, the veterans and the youngest of the new generation, who joyously celebrate in the company of this Indra in the House? What do they gain?

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    Some questions are put in the first mantra.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O good physician ! what does Indra- the destroyer of miseries do in the delight of this Soma (juice of Soma and other nourishing plants) what does he do in this drinking or friendship with it? Those who are delighted in this house, what they of old time or recent know about it and what do they do?

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    These are some of the questions regarding the drinking of Soma juice. The answers to these questions are given in the next mantra.

    Foot Notes

    (मदे) आनन्दे । मदी-हर्ष ( दिवा.) । = In the delight. (रणा:) रममाणाः । रमु-क्रीडायाम् (भ्वा०) । = Delighted. (निषदि) निषविन्ति यस्मिन् तस्मिन् गृहे | = In the house. (विविंद्र) विदन्ति । विद-जाने (अ०) = Know.

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