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ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 43/ मन्त्र 1
यस्य॒ त्यच्छम्ब॑रं॒ मदे॒ दिवो॑दासाय र॒न्धयः॑। अ॒यं स सोम॑ इन्द्र ते सु॒तः पिब॑ ॥१॥
स्वर सहित पद पाठयस्य॑ । त्यत् । शम्ब॑रम् । मदे॑ । दिवः॑ऽदासाय । र॒न्धयः॑ । अ॒यम् । सः । सोमः॑ । इ॒न्द्र॒ । ते॒ । सु॒तः । पिब॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
यस्य त्यच्छम्बरं मदे दिवोदासाय रन्धयः। अयं स सोम इन्द्र ते सुतः पिब ॥१॥
स्वर रहित पद पाठयस्य। त्यत्। शम्बरम्। मदे। दिवःऽदासाय। रन्धयः। अयम्। सः। सोमः। इन्द्र। ते। सुतः। पिब ॥१॥
ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 43; मन्त्र » 1
अष्टक » 4; अध्याय » 7; वर्ग » 15; मन्त्र » 1
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अष्टक » 4; अध्याय » 7; वर्ग » 15; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथ मनुष्याः किं कुर्य्युरित्याह ॥
अन्वयः
हे इन्द्र ! सोऽयं सोमस्ते सुतोऽस्ति तं त्वं पिब। शम्बरं सूर्य्य इव मदे दिवोदासाय दुःखप्रदं दुष्टं रन्धयः। यस्य कुकर्मानुष्ठान इच्छा भवेत् त्यत् तं रन्धयः ॥१॥
पदार्थः
(यस्य) (त्यत्) तत् (शम्बरम्) मेघमिव (मदे) आनन्दकाय (दिवोदासाय) विज्ञानप्रदाय (रन्धयः) हिंसय (अयम्) (सः) (सोमः) बुद्धिबलवर्धको रसः (इन्द्र) परमैश्वर्यप्रापक (ते) तुभ्यम् (सुतः) निष्पादितः (पिब) ॥१॥
भावार्थः
अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे राजादयो जना ! यूयं धार्मिकाणां पीडकान् जनान् यथावद्दण्डयत वैद्यकशास्त्रोक्तरीत्या महौषधिरसं निष्पाद्य संसेव्यारोगा भूत्वा सर्वाः प्रजा अरोगाः कुरुत ॥१॥
हिन्दी (3)
विषय
अब चार ऋचावाले तैंतालीसवें सूक्त का प्रारम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में मनुष्य क्या करें, इस विषय को कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (इन्द्र) अत्यन्त ऐश्वर्य्य के प्राप्त करानेवाले (सः) वह (अयम्) यह (सोमः) बुद्धि और बल का बढ़ानेवाला रस (ते) आपके लिये (सुतः) उत्पन्न किया गया है उसका आप (पिब) पान करिये और (शम्बरम्) मेघ को सूर्य्य जैसे वैसे (मदे) आनन्दकारक (दिवोदासाय) विज्ञान के देनेवाले के लिये, दुःख के देनेवाले दुष्ट का (रन्धयः) नाश करिये और (यस्य) जिसकी कुकर्म के अनुष्ठान में इच्छा होवे (त्यत्) उसका नाश करिये ॥१॥
भावार्थ
इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे राजा आदि जनो ! आप धार्म्मिक जनों को पीड़ा देनेवाले मनुष्यों को यथावत् दण्ड दीजिये और वैद्यकशास्त्र में कही हुई रीति से बड़ी ओषधियों के रस को निकाल कर उसका सेवन कर रोगरहित होकर सम्पूर्ण प्रजाओं को रोगरहित करिये ॥१॥
विषय
शत्रु नाशपूर्वक राष्ट्रैश्वर्य का पालन और उपभोग ।
भावार्थ
है ( इन्द्र ) ऐश्वर्यवन् ! ( यस्य मदे ) जिसके हर्ष में (दिवः दासाय ) ज्ञान और तेज के देने वाले प्रजाजन के उपकार के लिये तू ( त्यत् ) उस ( शम्बरम् ) मेघ के समान गर्जते शत्रु को ( रन्धयः ) वश करता है ( सः अयम् ) वह यह ( सुतः ) उत्पन्न हुआ ( सोमः ) बलकारक अन्नादि ओषधि रस के तुल्य ऐश्वर्य ( ते ) तेरे ही लिये है। तू (पिब ) उसे पान वा पालन कर ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
भरद्वाजो बार्हस्पत्य ऋषिः ॥ इन्द्रो देवता ॥ चतुर्ऋचं सूक्तम् ॥
विषय
शम्बर- रन्धन
पदार्थ
[१] हे (इन्द्र) = जितेन्द्रिय पुरुष! (यस्य मदे) = जिस सोम के रक्षण से उत्पन्न उल्लास में तू (दिवोदासाय) = ज्ञान के देनेवाले उस प्रभु की प्राप्ति के लिये (त्यत्) = उस (शम्बरम्) = शान्ति पर परदा डाल देनेवाले ईर्ष्या नामक आसुर भाव को (रन्धयः) = विनष्ट करता है । (अयं सः सोमः) = यह वह सोम (ते सुतः) = तेरे लिये उत्पन्न किया गया है । [२] (पिब) = इस सोम का तू पान कर। इसके रक्षण से ही तू ईर्ष्या आदि आसुरभावों से ऊपर उठकर शान्त जीवनवाला बन सकेगा। यह शान्त जीवन तू ही तेरे लिये प्रभु को प्राप्त करानेवाला होगा।
भावार्थ
भावार्थ- सोमरक्षण द्वारा हम ईर्ष्या का विनाश करें। ईर्ष्या विनाश शान्ति का साधन बनेगा । सोम रक्षण प्रभु को प्राप्त करानेवाला होगा।
मराठी (1)
विषय
या सूक्तात इंद्र, सोम व विद्वान यांच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.
भावार्थ
या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे राजा इत्यादींनो ! धार्मिक लोकांना त्रास देणाऱ्यांना तुम्ही यथावत् दंड द्या व वैद्यकशास्त्रानुसार महौषधींचा रस काढून, प्राशन करून रोगरहित बना व संपूर्ण प्रजेला रोगरहित करा. ॥ १ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Indra, lord of power and glory, this is that soma distilled and seasoned for you in the exhilaration and ecstasy of which you, like the sun on high, break down the forces of darkness and evil to promote the spirit of light and generosity. Pray drink of it to your heart’s content and protect and promote the spirit of it.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
What should men do-is told.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O Indra! conveyor of great wealth. Or prosperity, drink this Soma-juice which is increaser of intellect and strength and which has been pressed out for you. As the sun smites down cloud, for the sake of the giver of knowledge who gives delight, slay a wicked person, who troubles others. Destroy that man, who desires to do bad deeds.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
O king and officers of the State! you should duly punish those wicked persons, who trouble the righteous men. Being yourself healthy and free from all diseases, you make all your subjects healthy.
Translator's Notes
It is wrong on the part of shri Sayanacharya, Prof. Wilson and Griffith to take Shambara as the name of a particular demon and Divodasa, the name of a particular king, as it is against the principle of the Vedic Terminology enunciated by Sayanancharya himself in his Introduction to the Commentary on the Rigveda and opposed to the Vedic Lexicon Nighantu which clearly tells that Shambara means cloud शम्बर इति मेधनाम (NG 1, 10) This self contradiction makes Sayanacharya's Commentary on the Vedas unreliable. Western Scholars have generally followed him and committed the same blunder.
Foot Notes
(शम्बरम्) मेघमिव । शम्बर इति मेघनाम (NG 1, 10)। = Like the cloud. (दिवीदासाय) विज्ञानप्रदाय । दिदुधातोगंत्यर्थमादाम तस्यत्निष्वर्थेषु ज्ञानार्थ ग्रहणमत दासु-दाने (भ्वा०)। = For the giver of knowledge. (रन्धयः) हिंसय । रध-हिंसासंराध्यो (दिवा.) अत्रहिंसाशंक:। = Destroy, slay.
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