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ऋग्वेद मण्डल - 6 के सूक्त 44 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 44/ मन्त्र 1
    ऋषिः - शंयुर्बार्हस्पत्यः देवता - इन्द्र: छन्दः - निचृदनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः

    यो र॑यिवो र॒यिन्त॑मो॒ यो द्यु॒म्नैर्द्यु॒म्नव॑त्तमः। सोमः॑ सु॒तः स इ॑न्द्र॒ तेऽस्ति॑ स्वधापते॒ मदः॑ ॥१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यः । र॒यि॒ऽवः॒ । र॒यिम्ऽत॑मः । यः । द्यु॒म्नैः । द्यु॒म्नव॑त्ऽतमः । सोमः॑ । सु॒तः । सः । इ॒न्द्र॒ । ते॒ । अस्ति॑ । स्व॒धा॒ऽप॒ते॒ मदः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यो रयिवो रयिन्तमो यो द्युम्नैर्द्युम्नवत्तमः। सोमः सुतः स इन्द्र तेऽस्ति स्वधापते मदः ॥१॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यः। रयिऽवः। रयिम्ऽतमः। यः। द्युम्नैः। द्युम्नवत्ऽतमः। सोमः। सुतः। सः। इन्द्र। ते। अस्ति। स्वधाऽपते मदः ॥१॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 44; मन्त्र » 1
    अष्टक » 4; अध्याय » 7; वर्ग » 16; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ राजादिभिः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥

    अन्वयः

    हे स्वधापते रयिव इन्द्र ! यो रयिन्तमो यो द्युम्नैर्द्युम्नवत्तमः सुतः सोमो मदस्तेऽस्ति स त्वया सत्कृत्या स्वीकर्त्तव्यः ॥१॥

    पदार्थः

    (यः) (रयिवः) प्रशस्ता रायो विद्यन्ते यस्य तत्सम्बुद्धौ (रयिन्तमः) अतिशयेन धनाढ्यः (यः) (द्युम्नैः) धनैर्यशोभिर्वा (द्युम्नवत्तमः) अतिशयेन यशोधनयुक्तः (सोमः) ऐश्वर्यम् (सुतः) निर्मितः (सः) (इन्द्र) धनन्धर (ते) तव (अस्ति) (स्वधापते) अन्नस्वामिन् (मदः) आनन्ददः ॥१॥

    भावार्थः

    हे राजादयो जना ! युष्माभिः स्वकीयराज्ये बहवो धनाढ्या विद्वांसः सत्कृत्य रक्षणीया येन सततं श्रीर्वर्धेत ॥१॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    अब चौबीस ऋचावाले चवालीसवें सूक्त का प्रारम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में राजा आदि को क्या करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे (स्वधापते) अन्न के स्वामिन् (रयिवः) अच्छे धनोंवाले (इन्द्र) धन के धारण करनेवाले ! (यः) जो (रयिन्तमः) अत्यन्त धनाढ्य और (यः) जो (द्युम्नैः) धनों वा यशों से (द्युम्नवत्तमः) अत्यन्त यशोधन युक्त (सुतः) निर्म्माण किया गया (सोमः) ऐश्वर्य्य (मदः) आनन्द देनेवाला (ते) आपका (अस्ति) है (सः) वह आपसे सत्कार करके स्वीकार करने योग्य है ॥१॥

    भावार्थ

    हे राजा आदि जनो ! आप लोगों को चाहिये कि अपने राज्य में बहुत धनाढ्य विद्वानों का सत्कार करके रक्षा करें, जिससे निरन्तर लक्ष्मी बढ़े ॥१॥

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    विषय

    अभिषेक योग्य सोम स्वधापति ।

    भावार्थ

    हे (रयिवः) धन ऐश्वर्य के स्वामिन् ! हे (स्वधा-पते ) अन्न और धन धारण करने वाले बल के पालक ! ( यः सोमः ) जो ऐश्वर्य ( ते ) तेरा ( रयिन्तमः ) सबसे उत्तम और ( द्युम्नैः ) नाना प्रकार के धनों से ( द्युम्नवत्तमः ) अत्यंत समृद्ध है हे ( इन्द्र ) ऐश्वर्यवन् ! ( सुतः ) सम्पन्न ( सः ते मदः अस्ति ) वह तुझे आनन्द देने वाला हो ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    शंयुर्बार्हस्पत्य ऋषिः ॥ इन्द्रो देवता॥ छन्दः – १, ३, ४ निचृदनुष्टुप् । २, ५ स्वराडुष्णिक् । ६ आसुरी पंक्ति: । ७ भुरिक् पंक्तिः । ८ निचृत्पंक्तिः । ९, १२, १६ पंक्तिः । १०, ११, १३, २२ विराट् त्रिष्टुप् । १४, १५, १७, १८, २०, २४ निचृत्त्रिष्टुप् । १९, २१, २३ त्रिष्टुप् ।। चतुर्विंशत्यृचं सूक्तम् ।।

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    विषय

    रयिन्तमः-द्युम्नवत्तमः

    पदार्थ

    [१] हे (रयिवः) = ऐश्वर्यशालिन् प्रभो ! (यः ते सुतः सोमः) = जो आपके द्वारा उत्पन्न किया गया यह सोम है (सः) = वह (रयिन्तम:) = सर्वोत्कृष्ट रयि है, प्रमुख धन है । (यः) = जो सोम है वह (द्युम्नैः द्युम्नवत्तमः) = ज्ञानों से अतिशयेन ज्ञानज्योतिवाला है। यह सोम वास्तविक धन है और ज्ञान को प्राप्त करानेवाला है । [२] हे इन्द्र शक्तिशालि प्रभो ! हे (स्वधापते) = आत्मधारण-शक्ति के स्वामिन् ! यह आपका सोम (मदः अस्ति) = उल्लास का जनक है।

    भावार्थ

    भावार्थ- सुरक्षित सोम ही उत्कृष्ट धन है, यही ज्ञान ज्योति को जगानेवाला है, उल्लास का जनक है।

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    मराठी (1)

    विषय

    या सूक्तात इंद्र, विद्वान व ईश्वराच्या गुण-कर्माचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.

    भावार्थ

    हे राजा ! तू आपल्या राज्यातील अत्यंत धनाढ्य विद्वानांचा सत्कार करून रक्षण कर. ज्यामुळे सतत श्रीमंती वाढावी. ॥ १ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Indra, supreme lord of your own nature, power and law, that soma beauty and bliss of the world of existence created by you, which is most abundant in wealth and brilliance, which is most glorious in splendour and majesty, is all yours, all for yourself, all your own pleasure, passion and ecstasy.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    What should king and his ministers do-is told.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O lord of food-wealthy king! he who is the wealthiest and most glorious man endowed with wealth and good reputation should be accepted by you with honor and the wealth required by him should also be utilized properly.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    O king and officers of the State / you should keep in your State many wealthy and enlightened persons so that the prosperity may grow even more.

    Foot Notes

    (धुम्नेः) धनेयंशोभिर्वा । घुम्मन् इति धननाम (NG 2,10 ) घुम्न धोततेर्यंशो वा अन्नावे ( NKT 5,5 ):। = By wealth or good reputation. (सोम:) ऐश्वर्यंम् । (सोम:, षु-प्रसवैश्वर्ययाः (स्वा०) नय ऐश्वर्यापग्रहणम् । = Wealth, prosperity. (स्वघापते ) अन्नस्वाभिन । स्वधा इति धन्नाम (NG 2, 7):। = Lord of food.

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