ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 60/ मन्त्र 1
ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः
देवता - इन्द्राग्नी
छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
श्नथ॑द्वृ॒त्रमु॒त स॑नोति॒ वाज॒मिन्द्रा॒ यो अ॒ग्नी सहु॑री सप॒र्यात्। इ॒र॒ज्यन्ता॑ वस॒व्य॑स्य॒ भूरेः॒ सह॑स्तमा॒ सह॑सा वाज॒यन्ता॑ ॥१॥
स्वर सहित पद पाठश्नथ॑त् । वृ॒त्रम् । उ॒त । स॒नो॒ति॒ । वाज॑म् । इन्द्रा॑ । यः । अ॒ग्नी इति॑ । सहु॑री॒ इति॑ । स॒प॒र्यात् । इ॒र॒ज्यन्ता॑ । व॒स॒व्य॑स्य । भूरेः॒ । सहः॑ऽतमा॑ । सह॑सा । वा॒ज॒ऽयन्ता॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
श्नथद्वृत्रमुत सनोति वाजमिन्द्रा यो अग्नी सहुरी सपर्यात्। इरज्यन्ता वसव्यस्य भूरेः सहस्तमा सहसा वाजयन्ता ॥१॥
स्वर रहित पद पाठश्नथत्। वृत्रम्। उत। सनोति। वाजम्। इन्द्रा। यः। अग्नी इति। सहुरी इति। सपर्यात्। इरज्यन्ता। वसव्यस्य। भूरेः। सहःऽतमा। सहसा। वाजऽयन्ता ॥१॥
ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 60; मन्त्र » 1
अष्टक » 4; अध्याय » 8; वर्ग » 27; मन्त्र » 1
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अष्टक » 4; अध्याय » 8; वर्ग » 27; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथ क ऐश्वर्यं प्राप्नोतीत्याह ॥
अन्वयः
हे मनुष्या ! यो विद्वान् सहुरी इरज्यन्ता सहस्तमा सहसा वाजयन्ता इन्द्राग्नी श्नथदुतापि सनोति वसव्यस्य भूरेर्वृत्रं सनोति वाजं सपर्यात् स एवैश्वर्यं प्राप्नुयात् ॥१॥
पदार्थः
(श्नथत्) हिनस्ति (वृत्रम्) धनम् (उत) अपि (सनोति) प्राप्नोति (वाजम्) अन्नम् (इन्द्रा) (यः) (अग्नी) इन्द्राग्नी वायुविद्युतौ (सहुरी) सोढारौ (सपर्यात्) सेवेत (इरज्यन्ता) ऐश्वर्य्यं सम्पादयन्तौ (वसव्यस्य) वसुषु द्रव्येषु भवस्य (भूरेः) बहोः (सहस्तमा) अतिशयेन सोढारौ (सहसा) बलेन (वाजयन्ता) वाजमन्नादिकमिच्छन्तौ ॥१॥
भावार्थः
हे मनुष्या ! यदि भवन्तो वायुविद्युद्विद्यां विजानीयुस्तर्हि महैश्वर्या भूत्वा महतो राज्यस्य स्वामिनो भवेयुः ॥१॥
हिन्दी (3)
विषय
अब पन्द्रह ऋचावाले साठवें सूक्त का प्रारम्भ है, इसके प्रथम मन्त्र में कौन ऐश्वर्य को पाता है, इस विषय को कहते हैं ॥
पदार्थ
हे मनुष्यो ! (यः) जो विद्वान् (सहुरी) सहनशील (इरज्यन्ता) ऐश्वर्य को सिद्ध करते हुए वा (सहस्तमा) अतीव सहन करनेवाले (सहसा) बल से (वाजयन्ता) अन्नादिकों की इच्छा करते हुए (इन्द्रा, अग्नी) पवन और बिजुली को (श्नथत्) ताड़ता है (उत) और (सनोति) प्राप्त होता है तथा (वसव्यस्य) धनादि पदार्थों में हुए (भूरेः) बहुत सुख से (वृत्रम्) धन को प्राप्त होता है और (वाजम्) अन्न को (सपर्यात्) सेवे, वही ऐश्वर्य को पावे ॥१॥
भावार्थ
हे मनुष्यो ! जो आप वायु और बिजुली की विद्या को जानो तो महान् ऐश्वर्यवाले होकर महान् राज्यके स्वामी होओ ॥१॥
विषय
उत्तम स्त्री पुरुषों के कर्त्तव्य ।
भावार्थ
( यः ) जो ( इन्द्रा ) ऐश्वर्यवान् (अग्नी ) अग्निवत् तेजस्वी ( सहुरी ) सहनशील ( सहः-तमा ) अति बलशाली, ( सहसा ) बल से ( वाजयन्ता ) ऐश्वर्य वा संग्राम करने वाले, ( भूरेः वसव्यस्य ) बहुत द्रव्य के ( इरज्यन्ता ) स्वामियों की ( सपर्यात् ) सेवा करे । वह ( वृत्रम् श्नथत् ) विघ्नों को नाश करता, ( वाजं सनोति ) ऐश्वर्य का भोग करता और औरों को भी देता है । ( २ ) ( यः इन्द्र- अग्नी सहुरी श्नथत् ) जो वायु, विद्युत् और सूर्य और अग्नि दोनों को अपने वश कर लेता है वह (वृत्रम् उत वाजं सनोति) धन और अन्न का भोग करता है। वह ( सहुरी सपर्यात् ) इन दोनों बलशाली तत्वों को अपने कार्य में लगाता है। वह ( वसव्यस्य भूरेः इरज्यन्त ) भारी ऐश्वर्य वा स्वामी बन जाता है वह ( वृत्रम् उत वाजं सनोति ) बहुत धन और अन्नादि ऐश्वर्य को भोगता है ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
भरद्वाजो बार्हस्पत्य ऋषिः ।। इन्द्राग्नी देवते ।। छन्दः - १, ३ निचृत्त्रिष्टुप् । २ विराट् त्रिष्टुप् । ४, ६, ७ विराड् गायत्री । ५, ९ , ११ निचृद्गायत्री । १०,१२ गायत्री । १३ स्वराट् पंक्ति: १४ निचृदनुष्टुप् । १५ विराडनुष्टुप् ।। पञ्चदशर्चं सूक्तम् ।।
विषय
वृत्रसंहार तथा बल की प्राप्ति
पदार्थ
[१] (यः) = जो (सहुरी) = शत्रुओं को अभिभूत करनेवाले (इन्द्रा अग्नी) = बल व प्रकाश के देवों का (सपर्यात्) = पूजन करता है, वह (वृत्रं श्नथत्) = ज्ञान की आवरणभूत वासना का विनाश करता है, (उत) = और (वाजं सनोति) = बल को प्राप्त करता है। [२] ये इन्द्र और अग्नि (भूरेः) = बहुत अधिक (वसव्यस्य) = वसु समूह के (इरज्यन्ता) = ईशान हैं, स्वामी हैं। ये (सहसा) = बल से (सहस्तमा) = हमारे शत्रुओं को कुचलनेवाले हैं तथा (वाजयन्ता) = हमारे लिये शक्ति की कामनावाले होते हैं, हमें ये शक्ति सम्पन्न बनाते हैं जिससे हम शत्रुओं का शातन कर सकें।
भावार्थ
भावार्थ– इन्द्र व अग्नि का आराधन हमें वृत्र विनाश व शक्ति प्राप्ति के योग्य करता है ।
मराठी (1)
विषय
या सूक्तात इंद्र व अग्नीच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची या पूर्वीच्या सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.
भावार्थ
हे माणसांनो ! तुम्ही जर वायु विद्युत विद्या जाणाल तर महान ऐश्वर्य प्राप्त कराल व मोठ्या राज्याचे स्वामी व्हाल. ॥ १ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
One who honours and adores challenging and victorious Indra and Agni, vibrant, stormy and fiery electric forces of nature and humanity, conquers restraining opposition and wins food, energy and wealth of life. Both are most courageous and enduring commanders of power and victory, givers of honour and excellence, ample peace and settlement and harbingers of the glory of success and fulfilment.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
Who gets wealth is told.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O men ! only that highly learned person gets wealth, who strikes or uses air and electricity which are enduring, leading to prosperity, desiring food etc. with force and attains them, and obtains wealth with much happiness got from many things, and uses good food.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
O men ! if you know the science of air and electricity, you can become masters of great kingdom, being prosperous.
Foot Notes
(श्नथत्) हिनस्तिः । श्रथ-हिंसार्था: (भ्वा०) । = Strikes. (इरज्यन्ता) ऐश्वर्य्यं सम्पादयन्तौ । इरजयति ऐश्वर्यकर्मा (NG 2, 21 ) । = Leading to prosperity. (सहसा) बलेन । संहः इति बलनाम (NG 2, 9)। = With force.
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