ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 63/ मन्त्र 3
ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः
देवता - अश्विनौ
छन्दः - भुरिक्पङ्क्ति
स्वरः - पञ्चमः
अका॑रि वा॒मन्ध॑सो॒ वरी॑म॒न्नस्ता॑रि ब॒र्हिः सु॑प्राय॒णत॑मम्। उ॒त्ता॒नह॑स्तो युव॒युर्व॑व॒न्दा वां॒ नक्ष॑न्तो॒ अद्र॑य आञ्जन् ॥३॥
स्वर सहित पद पाठअका॑रि । वा॒म् । अन्ध॑सः । वरी॑मन् । अस्ता॑रि । ब॒र्हिः । सु॒प्र॒ऽअ॒य॒नत॑मम् । उ॒त्ता॒नऽह॑स्तः । यु॒व॒युः । व॒व॒न्द॒ । आ । वा॒म् । नक्ष॑न्तः । अद्र॑यः । आ॒ञ्ज॒न् ॥
स्वर रहित मन्त्र
अकारि वामन्धसो वरीमन्नस्तारि बर्हिः सुप्रायणतमम्। उत्तानहस्तो युवयुर्ववन्दा वां नक्षन्तो अद्रय आञ्जन् ॥३॥
स्वर रहित पद पाठअकारि। वाम्। अन्धसः। वरीमन्। अस्तारि। बर्हिः। सुप्रऽअयनतमम्। उत्तानऽहस्तः। युवयुः। ववन्द। आ। वाम्। नक्षन्तः। अद्रयः। आञ्जन् ॥३॥
ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 63; मन्त्र » 3
अष्टक » 5; अध्याय » 1; वर्ग » 3; मन्त्र » 3
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अष्टक » 5; अध्याय » 1; वर्ग » 3; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तौ किं कुर्यातामित्याह ॥
अन्वयः
हे सभासेनेशौ ! यो युवयुरुत्तानहस्तो वरीमन् वामन्धसस्सुप्रायणतमं बर्हिरकारि दुःखादस्तारि तं विज्ञाय ववन्द ये विद्यादिषु शुभगुणेषु नक्षन्तोऽद्रय इव वामाञ्जँस्तान् युवां कामयेथाम् ॥३॥
पदार्थः
(अकारि) (वाम्) युवाभ्याम् (अन्धसः) अन्नादेः (वरीमन्) अतिशयेन वरे (अस्तारि) तीर्य्यते (बर्हिः) अन्तरिक्षम् (सुप्रायणतमम्) सुप्रयान्ति यस्मिंस्तदतिशयितम् (उत्तानहस्तः) ऊर्ध्वबाहुः (युवयुः) युवां कामयमानः (ववन्द) वन्दति नमस्करोति (आ) (वाम्) युवाम् (नक्षन्तः) प्राप्नुवन्तः (अद्रयः) मेघा इव (आञ्जन्) कामयन्ते ॥३॥
भावार्थः
ये होमेन वाय्वादीञ्छोधयित्वा विमानादिभिर्यानैरन्तरिक्षे गच्छन्ति सुखमुत्तमान् गुणांश्च व्याप्नुवन्तः सन्तो मेघवत्सर्वेषां सुखोन्नतीरिच्छन्ति ते वरं सुखं लभन्ते ॥३॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर वे क्या करें, इस विषय को कहते हैं ॥
पदार्थ
हे सभासेनाधीशो ! जो (युवयुः) तुम दोनों की इच्छा करनेवाला (उत्तानहस्तः) ऊपर को हाथ उठाये हुए (वरीमन्) अतीव उत्तम व्यवहार में (वाम्) तुम दोनों से (अन्धसः) अन्न आदि के सम्बन्ध में (सुप्रायणतमम्) उत्तमता से जाते हैं जिसमें वह (बर्हिः) अन्तरिक्ष (अकारि) प्रसिद्ध किया जाता वा दुःख से (अस्तारि) तारा जाता उसको जानके (ववन्द) वन्दना करते हैं, जो विद्यादि शुभगुणों में (नक्षन्तः) प्राप्त होते हुए (अद्रयः) मेघों के समान (वाम्) तुम दोनों की (आ, आञ्जन्) अच्छे प्रकार कामना करते हैं, उनकी तुम दोनों कामना करो ॥३॥
भावार्थ
जो होम से वायु आदि पदार्थों को शुद्धकर विमान आदि यानों से अन्तरिक्ष में जाते तथा सुख और उत्तम गुणों को व्याप्त होते हुए मेघ के समान सबके सुख और उन्नतियों को चाहते हैं, वे उत्तम सुख पाते हैं ॥३॥
विषय
स्त्री पुरुषों के सत् कर्त्तव्य।
भावार्थ
हे उत्तम विद्वान् स्त्री पुरुषो ! ( वाम् ) आप दोनों के प्रति ( वरीमन् ) उत्तम, वरण करने योग्य, अवसर में ( अन्धसः ) अन्नों का (अकारि) सत्कार किया जाय । और ( सुप्र-अयनतमम् ) सुख से, उत्तम रीति से स्थिति करने योग्य (बर्हिः ) मान-वर्धक आसन ( अस्तारि ) बिछाया जावे । ( युव-युः ) तुम दोनों को चाहने वाला पुरुष ( वां ) आप दोनों को ( उत्तान-हस्तः ) अपने हाथों को ऊपर उठाकर ( ववन्द ) आप लोगों की स्तुति और अभिवादन करे और (अद्रयः) मेघ के तुल्य उदार जन ( वां नक्षन्तः ) आप दोनों को प्राप्त होकर ( आञ्जन् ) स्नेहपूर्वक चाहें वा आप दोनों का जलादि से अभिषेक, प्रोक्षण, अर्ध्य सत्कार आदि करें ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
भरद्वाजो बार्हस्पत्य ऋषिः॥ अश्विनौ देवते ॥ छन्दः – १ स्वराड्बृहती । २, ४, ६, ७ पंक्ति:॥ ३, १० भुरिक पंक्ति ८ स्वराट् पंक्तिः। ११ आसुरी पंक्तिः॥ ५, ९ निचृत्त्रिष्टुप् ॥ एकादशर्चं सूक्तम् ॥
विषय
प्राणसाधना द्वारा शरीर का अलंकरण
पदार्थ
[१] (वाम्) = हे प्राणापानो! आपके द्वारा ही (अन्धसः) = सोम के (वरीमन्) = शरीर में विस्तार के निमित्त (अकारि) = सब कार्य किया जाता है। प्राणसाधना के द्वारा ही शरीर में सोम की ऊर्ध्वगति होती है। प्राणसाधना के द्वारा ही (सुप्रायणतमं) [सु प्र अयनतमं ] = सब दिव्य गुणों का शरणभूत (बर्हिः) = वासनाशून्य हृदयरूप आसन (अस्मारि) = बिछाया जाता है। प्राणसाधना से ही हृदय पवित्र होता है। [२] (उत्तान हस्तः) = ऊर्ध्वाकृत अञ्जलिवाला मैं (युवयुः) = आपकी प्राप्ति की कामनावाला (ववन्द) = प्रभु का वन्दन करता हूँ। प्रभु वन्दना के द्वारा प्राण शक्ति को प्राप्त करने के लिये यत्नशील होता हूँ । (वाम्) = आपको [प्राणापान को] (नक्षन्तः) = प्राप्त करते हुए (अद्रयः) = उपासक (आञ्जन्) = अपने जीवनों को अच्छाइयों से अलंकृत करते हैं [अञ्ज - to decorate]।
भावार्थ
भावार्थ- प्राणसाधना से शरीर में सोम का रक्षण होता है, हृदय सब दिव्य गुणों का आधार बनता है, जीवन उत्तमताओं से अलंकृत हो उठता है।
मराठी (1)
भावार्थ
जे होम करून वायू इत्यादी पदार्थांना शुद्ध करतात. विमान इत्यादी यानांनी अंतरिक्षात जातात. सुख देणाऱ्या व उत्तम गुणांनी युक्त असणाऱ्या मेघाप्रमाणे सर्वांचे सुख इच्छितात ते उत्तम सुख प्राप्त करतात. ॥ ३ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Most excellent foods and drinks have been prepared for you and the softest grass carpet has been spread for you. With raised hands the high priest welcomes and adores you with love and reverence, and the devotees wait to honour and anoint you like the clouds of rain approaching.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
What should they do-is told.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O President of the Council of Ministers and Commander of the army! you should desire that man, who longing for you, salutes you with hands up, knowing that you take him away from misery and make the firmament in the best dealing cause of producing food grains etc. (through raining down water) and those who attaining knowledge and other good virtues desire you like clouds.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
Those persons enjoy good happiness, who purify the sky with Homa (daily Yajna) and go to the firmament by aero planes, pervade in good delight and virtues, desire the advancement of happiness of all-like the clouds.
Foot Notes
(युवयुः) युवा कामयमानः । अध्वर्यः—अध्वर कामयत् इति नितुक्ते तथैव युवाम्कामयते इति युवयुः। = Longing for you. (बर्हिः) अन्तरिक्षम् बर्हिः इत्यन्तरिक्षनाम (NG 1, 3 ) = Firmament. (आजत्) कामयते । अज्जू व्यक्ति भ्रक्षणकान्तिगतिषु (रुधा०) अत्र कान्यर्थः कान्तिः कामना | = Desire. (नक्षन्तः) प्राप्तुवन्तः । नक्षति व्याप्ति कर्मा (NG 2, 18 ) = Pervading.
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