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ऋग्वेद मण्डल - 6 के सूक्त 65 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 65/ मन्त्र 1
    ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः देवता - उषाः छन्दः - भुरिक्पङ्क्ति स्वरः - पञ्चमः

    ए॒षा स्या नो॑ दुहि॒ता दि॑वो॒जाः क्षि॒तीरु॒च्छन्ती॒ मानु॑षीरजीगः। या भा॒नुना॒ रुश॑ता रा॒म्यास्वज्ञा॑यि ति॒रस्तम॑सश्चिद॒क्तून् ॥१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ए॒षा । स्या । नः॒ । दु॒हि॒ता । दि॒वः॒ऽजाः । क्षि॒तीः । उ॒च्छन्ती॑ । मानु॑षीः । अ॒जी॒ग॒रिति॑ । या । भा॒नुना॑ । रुश॑ता । रा॒म्यासु॑ । अज्ञा॑यि । ति॒रः । तम॑सः । चि॒त् । अ॒क्तून् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    एषा स्या नो दुहिता दिवोजाः क्षितीरुच्छन्ती मानुषीरजीगः। या भानुना रुशता राम्यास्वज्ञायि तिरस्तमसश्चिदक्तून् ॥१॥

    स्वर रहित पद पाठ

    एषा। स्या। नः। दुहिता। दिवःऽजाः। क्षितीः। उच्छन्ती। मानुषीः। अजीगरिति। या। भानुना। रुशता। राम्यासु। अज्ञायि। तिरः। तमसः। चित्। अक्तून् ॥१॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 65; मन्त्र » 1
    अष्टक » 5; अध्याय » 1; वर्ग » 6; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्सा कीदृशी भवेदित्याह ॥

    अन्वयः

    हे वरणीय ! या रुशता भानुना सह वर्त्तमाना राम्यास्वज्ञायि तमसश्चिदक्तूँस्तिरस्करोति मानुषीः क्षितीरुच्छन्ती दिवोजा उषा इवाऽजीगो न एषा स्या दुहितास्ति त्वं गृहाण ॥१॥

    पदार्थः

    (एषा) (स्या) सा (नः) अस्माकम् (दुहिता) (दिवोजाः) सूर्याज्जातेव (क्षितीः) पृथिवीः (उच्छन्ती) विवासयन्ती (मानुषीः) मनुष्याणामिमाः प्रजाः (अजीगः) जागरयति (या) (भानुना) किरणेन (रुशता) रूपेण (राम्यासु) रात्रिषु। राम्येति रात्रिनाम। (निघं०१.७) (अज्ञायि) ज्ञायते (तिरः) तिरश्चीने (तमसः) अन्धकारात् (चित्) (अक्तून्) रात्रीः ॥१॥

    भावार्थः

    अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। या कन्या उषर्वद्विद्युद्वत्सुप्रकाशिता विद्याविनयहावभावैः पत्यादीनानन्दयति सूर्यो रात्रिं निवार्य्य सर्वाः प्रजाः प्रकाशयतीव गृहादविद्याऽन्धकारं निवार्य्य विद्यया सर्वान् प्रकाशयति सैव स्त्री वरा भवति ॥१॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    अब छः ऋचावाले पैसठवें सूक्त का आरम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में फिर वह स्त्री कैसी हो, इस विषय को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे स्वीकार करने योग्य ! (या) जो (रुशता) रूप से (भानुना) किरण के साथ वर्त्तमान (राम्यासु) रात्रियों में (अज्ञायि) जानी जाय (तमसः) अन्धकार से (चित्) भी (अक्तून्) रात्रियों को (तिरः) तिरस्कार करती तथा (मानुषीः) मनुष्यसम्बन्धी प्रजाओं को (क्षितीः) और पृथिवियों को (उच्छन्ती) विशेष निवास कराती हुई (दिवोजाः) सूर्य से उत्पन्न हुई उषा के समान (अजीगः) जगाती है (नः) हमारी (एषा) सो (स्या) यह (दुहिता) कन्या है, तुम ग्रहण करो ॥१॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो कन्या उषा के तुल्य वा बिजुली के तुल्य अच्छे प्रकाश को प्राप्त, विद्या-विनय और हाव-भाव, कटाक्षों से पति आदि को आनन्दित करती है वा जैसे सूर्य्य रात्रि को दूर कर सब प्रजा को प्रकाशित करता है, वैसे घर से अविद्या और अन्धकार निवार विद्या से सब को प्रकाशित करती है, वही उत्तम स्त्री होती है ॥१॥

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    विषय

    उषा के दृष्टान्त से स्त्रियों के कर्त्तव्यों का वर्णन।

    भावार्थ

    उषा के दृष्टान्त से स्त्रियों के कर्त्तव्यों का वर्णन । (एषा ) यह ( दिवः-ओजाः ) प्रकाशमान सूर्य से उत्पन्न हुई उषा जिस प्रकार (उच्छन्ती) प्रकट होती हुई (मानुषीः क्षितीः) मननशील, मनुष्य प्रजाओं को जगाती है और ( राम्यासु ) रात्रियों के उत्तर भाग में वह जिस प्रकार ( रुशता भानुना ) चमकते प्रकाश से ( अज्ञायि ) सबको जान पड़ती है, वह ( तमसः अक्तून् ) अन्धकार से रात्रियों को ( तिरः ) पृथक् करती अथवा ( तमसः ) अन्धकार से ‘अक्तु’ अर्थात् प्रकाशयुक्त दिनों को वा तमोमय रात्रि कालों को, ( तिरः ) प्राप्त करा देती है, ( चित् ) उसी प्रकार ( एषा ) यह ( नः ) हमारी ( दुहिता ) पुत्री ( दिवः दुहिताः ) कामना, सद्व्यवहारों, उत्तम इच्छाओं और भावनाओं को पूर्ण करने वाली और दूर देश में विवाहित होने योग्य कन्या ( दिवः-जाः ) जो तेजोमय ज्ञानी पुरुष से शिक्षा, विनयादि से गुणों में प्रसिद्ध होकर, ( मानुषी: क्षितीः ) मनुष्य प्रजाओं को जगावे और ( या ) जो ( रुशता भानुना ) चमकते ज्ञान प्रकाश और सदाचार की कान्ति से ( राम्यासु ) रमण करने योग्य स्त्रियों में से सर्वश्रेष्ठ (अज्ञायि ) प्रसिद्धि प्राप्त कर, जानी जावे, वा ( राम्यासु ) रमण अर्थात् पति को सुख देने की क्रियाओं में ( अज्ञायि ) कुशलता प्राप्त करे । और (स्या ) वह ( अक्तून् ) पूज्य माता पिता, सास ससुर, भाई आदि पूज्य पुरुषों को ( तमसः ) शोकादि खेदजनक कारणों से ( तिरः ) पृथक् करे ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    भरद्वाजो बार्हस्पत्य ऋषिः ।। उषा देवता ।। छन्दः – १ भुरिक् पंक्तिः । ५ विराट् पंक्तिः । २, ३ विराट् त्रिष्टुप । ४, ६ निचृत्त्रिष्टुप् ।। षडृचं सूक्तम् ।।

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    विषय

    प्रकाश

    पदार्थ

    [१] (एषा) = यह (स्या) = वह (दिवोजा:) = आकाश में प्रादुर्भूत होनेवाली तथा [दिव:] दुहिता प्रकाश का सर्वत्र पूरण करनेवाली उषा (उच्छन्ती) = अन्धकारों को दूर करती हुई (मानुषी: क्षितीः) = मानव प्रजाओं के प्रति (अजीग:) = [उद् गिरति प्रकाशयति इति यावत्] प्रकाश को करती है। सब मानव प्रजाओं को प्रबुद्ध करके कार्यव्याप्त करती है । [२] (या) = जो उषा (रुशता भानुना) = चमकते हुए प्रकाश से (राम्यासु) = रात्रियों में होनेवाले (अक्तून्) = नक्षत्र प्रकाशों को तथा (तमसः चित्) = सब अन्धकारों को भी (तिर:) = तिरस्कृत करती हुई (अज्ञायि) = जानी जाती है।

    भावार्थ

    भावार्थ- उषा अपने प्रकाश से मानव प्रजाओं को प्रबुद्ध करती है। यह रात्रि के नक्षत्रप्रकाशों व अन्धकारों को तिरस्कृत करती हुई उदित होती है ।

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    मराठी (1)

    विषय

    या सूक्तात उषेप्रमाणे स्त्रीच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.

    भावार्थ

    या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जी कन्या उषेप्रमाणे, विद्युतप्रमाणे चांगला प्रकाश देते. विद्या, विनय, हावभाव व कटाक्ष इत्यादींनी पतीला आनंदित करते व जसा सूर्य रात्रीला दूर करून सर्व प्रजेला प्रकाशित करतो. तसे घरातील अविद्या अंधकार नष्ट करून विद्येने प्रकाशित करते तीच स्त्री उत्तम असते. ॥ १ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Lo! there is the dawn, bom daughter of heavenly light awakening and shining up our human habitations. Shining by the light of the sun, it is perceived shooting her rays of light across the darkness of the nights.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    How should a good woman be-is told.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O acceptable person ! accept this our daughter who with her beauty is known even at night, as if with the light of the sun, who ignores even darkness of the nights, who is like the dawn-the daughter of the sun, inhabiting or establishing the human beings in happiness and awakening them.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    That woman is good, who like the dawn or the lightning is well illumined and who by her knowledge, humility and proper gestures, gladdens her husband, who dispels all darkness of ignorance from her home with her knowledge, as the sun dispels darkness of the night and illuminates all.

    Foot Notes

    (राम्यासु) रात्रिषु । राम्येति रात्रिनाम (NG 1, 7) =Nights. (दिवोजाः) सूर्याज्जतेव। द्यौः-सूर्यः दिवुधातौ धुत्यर्थमादाय द्योतमानः As if born from the sun. (उच्छन्ती) विवासयन्ती । उछी-विवासे (भ्वा.) = Inhabiting or establishing in happiness.(रुशता) रूपेण। = with form or beauty.

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