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ऋग्वेद मण्डल - 6 के सूक्त 74 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 74/ मन्त्र 1
    ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः देवता - सोमारुद्रौ छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    सोमा॑रुद्रा धा॒रये॑थामसु॒र्यं१॒॑ प्र वा॑मि॒ष्टयोऽर॑मश्नुवन्तु। दमे॑दमे स॒प्त रत्ना॒ दधा॑ना॒ शं नो॑ भूतं द्वि॒पदे॒ शं चतु॑ष्पदे ॥१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सोमा॑रुद्रा । धा॒रये॑थाम् । असु॒र्य॑म् । प्र । वा॒म् इ॒ष्टयः॑ । अर॑म् । अ॒श्नु॒व॒न्तु॒ । दमे॑ऽदमे । स॒प्त । रत्ना॑ । दधा॑ना । शम् । नः॒ । भू॒त॒म् । द्वि॒ऽपदे॑ । शम् । चतुः॑ऽपदे ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सोमारुद्रा धारयेथामसुर्यं१ प्र वामिष्टयोऽरमश्नुवन्तु। दमेदमे सप्त रत्ना दधाना शं नो भूतं द्विपदे शं चतुष्पदे ॥१॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सोमारुद्रा। धारयेथाम्। असुर्यम्। प्र। वाम् इष्टयः। अरम्। अश्नुवन्तु। दमेऽदमे। सप्त। रत्ना। दधाना। शम्। नः। भूतम्। द्विऽपदे। शम्। चतुःऽपदे ॥१॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 74; मन्त्र » 1
    अष्टक » 5; अध्याय » 1; वर्ग » 18; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ राजा वैद्यश्च कीदृशौ वरौ स्यातामित्याह ॥

    अन्वयः

    हे राजवैद्यौ सोमारुद्रेव ! युवामसुर्यं धारयेथां यतो वामिष्टयोऽरं प्राश्नुवन्तु दमेदमे सप्त रत्ना दधाना सन्तौ नो द्विपदे शं भूतं चतुष्पदे शं भूतम् ॥१॥

    पदार्थः

    (सोमारुद्रा) चन्द्रप्राणाविव राजवैद्यौ (धारयेथाम्) (असुर्यम्) असुरस्य मेघस्येदम् (प्र) (वाम्) युवाम् (इष्टयः) इष्टप्राप्तयः (अरम्) अलम् (अश्नुवन्तु) प्राप्नुवन्तु (दमेदमे) गृहेगृहे (सप्त) एतत्सङ्ख्याकानि (रत्ना) रमणीयानि हीरकादीनि (दधाना) धरन्तौ (शम्) सुखकारिणौ (नः) अस्माकम् (भूतम्) भवेतम् (द्विपदे) मनुष्याद्याय (शम्) सुखकर्तारौ (चतुष्पदे) गवाद्याय ॥१॥

    भावार्थः

    अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे मनुष्या ! यो राजा चन्द्रवद्यश्च वैद्यः प्राणवत्सर्वान्निर्भयान्नी रोगान् कुर्यातां तौ सर्वाणि सुखानि प्राप्नुतः यौ प्रजाया गृहे गृहे धनमारोग्यं च वर्धयतस्तौ द्विपद्भिश्चतुष्पद्भिश्च बहूनि सुखानि प्राप्नुतः ॥१॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    अब चार ऋचावाले चौहत्तरवें सूक्त का प्रारम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में राजा और वैद्य कैसे श्रेष्ठ हों, इस विषय को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे (सोमारुद्रा) चन्द्रमा और प्राण के तुल्य राजा और वैद्यजनो ! तुम दोनों (असुर्यम्) मेघ के इस कर्म को (धारयेथाम्) धारण करो जिससे (वाम्) तुम को (इष्टयः) इच्छाओं की प्राप्तियाँ (अरम्) पूरी (प्र, अश्नुवन्तु) मिलें तथा (दमेदमे) घर-घर में (सप्त) सात (रत्ना) रमणीय हीरा आदि को (दधाना) धारण किये हुए (नः) हमारे (द्विपदे) दो पगवाले मनुष्य आदि के लिये (शम्) सुख करनेवाले (भूतम्) होओ और (चतुष्पदे) गौ आदि चौपाये जीवों के लिये (शम्) सुख करनेवाले होओ ॥१॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! जो राजा चन्द्रमा के तुल्य और जो वैद्य प्राण के तुल्य सब को निर्भय और नीरोग करें, वे सब सुखों को प्राप्त होते हैं, जो प्रजा के घर-घर में धन और आरोग्य को बढ़ावें, वे द्विपगवालों और चार पगवालों से बहुत सुखों को प्राप्त होते हैं ॥१॥

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    विषय

    सोम रुद्र ।

    भावार्थ

    हे ( सोमारुद्रा) सोमवत् शान्तिदायक चन्द्रवत् आह्लादक, और रुद्र अर्थात् रोगों को दूर करने वाले वैद्य के समान देश से दुष्टों को दूर भगाने वाले राजन् ! आप दोनों (असुर्यं धारयेथाम् ) विद्युत् और मेघ के स्वरूप जल वा पवन के समान प्राणयुक्त बल को धारण कराओ । (वाम् ) आप दोनों के ( इष्टयः ) दिये दान हमें ( अरम् अश्नुवन्तु ) खूब प्राप्त हों। आप दोनों ( दमे दमे ) प्रत्येक घर में (सप्त रत्ना दधाना) सातों प्रकार के रत्नों को धारण कराते हुए ( नः द्विपदे ) हमारे दो पाये और चौपायों को ( शं शं भूतम् ) अति शान्तिदायक होओ ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    भरद्वाजो बार्हस्पत्य ऋषिः ॥ सोमारुद्रौ देवते । छन्दः – १, २, ४ त्रिष्टुप् । ३ निचृत्त्रिष्टुप् ॥ चतुर्ऋचं सूक्तम् ।।

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    विषय

    'सोम और रुद्र' का आराधन

    पदार्थ

    [१] हे (सोमारुद्रा) = सोमरक्षण व रोगद्रावण के भावो! (असुर्यम्) = बल को हमारे लिये (धारयेथाम्) = धारण करो । (वाम्) = आपके (इष्टयः) = यज्ञ (अरम्) = पर्याप्त (प्र अश्नुवन्तु) = हमें व्याप्त करें। हम सदा सोम और रुद्र के उपासनात्मक यज्ञों को करनेवाले बनें । [२] (दमे दमे) = प्रत्येक शरीरगृह में (सप्त रत्ना) = सात रत्नों को, 'आयु, प्राण, प्रजा, पशु, कीर्ति, द्रविण व ब्रह्मवर्चस्' रूप सात उत्तम चीजों को (दधाना) = धारण करते हुए ये सोम और रुद्र (नः) = हमारे लिये (शं भूतम्) = शान्ति को देनेवाले हों। हमारे (द्विपदे) = दो पाँववाले पुत्र आदि के लिये तथा (चतुष्पदे) = गवादि चतुष्पाद् पशुओं के लिये भी (शम्) = शान्ति को देनेवाले हों ।

    भावार्थ

    भावार्थ- सोमरक्षण द्वारा रोगद्रावण के पवित्र भाव हमें सबल बनायें। हम सोम व रुद्र का ही आराधन करें। यह आराधना हमारे जीवनों में 'आयु, प्राण, प्रजा, पशु, कीर्ति, द्रविण व ब्रह्मवर्चस्' रूप सात रत्नों का धारण करे तथा हमारे लिये शान्ति को देनेवाली हो ।

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    मराठी (1)

    विषय

    या सूक्तात औषधी व प्राणाप्रमाणे वैद्य व राजाच्या कामाचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.

    भावार्थ

    या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे माणसांनो ! जो राजा चंद्राप्रमाणे व जो वैद्य प्राणाप्रमाणे सर्वांना निर्भय व निरोगी करतो तेव्हा सर्वांना सुख मिळते. जे लोकांच्या घराघरात धन व आरोग्य वाढवितात ते द्विपाद व चतुष्पाद यांच्याकडून खूप सुख प्राप्त करून घेतात. ॥ १ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    O Soma and Rudra, lords of health and well being and of the health and vitality of life, ruler of the land and powers of health services, you maintain the balance of nature and environment and the health and vitality of the community so that the desired results of social welfare be achieved to your satisfaction. Bearing seven-fold jewels of health and prosperity, bless the inmates of every home so that our people may be happy and healthy in peace and joy, and our bipeds and quadrupeds too may be healthy and happy.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    What kinds of king and Physician are good-is told.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O king and Vaidya (physician)! you who are like the moon and Prana (vital breath) uphold the benevolence of the cloud, so that your noble desires may be well fulfilled. At every home, bearing the seven diamond like charming things, bestow happiness upon us; happiness upon our bipeds and quadrupeds.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    O men! that king who is like the moon and Vaidya (physician), who is like the Prana make all fearless and free from diseases, attain all happiness. Those who increase the wealth and health of the people, can enjoy much happiness from the bipeds and quadrupeds.

    Translator's Notes

    सप्त रत्नानि - Unfortunately the revered commentator has not explained or enumerated the seven gems. Sayanacharya also has not explained them in his commentary and has simply stated सप्तरस्नानि धारयन्तो, on which Prof. Wilson has remarked ‘Possessors of the seven precious things सप्त रत्नादधाना' No explanation is given by the Scholiast, as to what they are. (Wilson) in his notes on P.307 Vol. IV. on consulting "The student's Sanskrit English Dictionary by V. S. Apte, I found the following two verses giving the names of the five रत्न Ratnas or Precious things some what differently. They are-- (1) नीलकं वज्रकचेति पद्मरागश्च भौक्तिकम् । प्रबालं चेति विज्ञेयं पध्वरत्नं मनीषिभिः ॥ (2) कनकं हीरकं नीलं, पद्मरागश्च भौक्तिकम् । पञ्च रत्नमिदं प्रोक्तम् ऋषिभिः पूर्वदर्शिभिः ॥ So we add in the first verse quoted here कनक ( Gold ) and हीरकम (Diamonds) the number of seven given in the mantra is complete.

    Foot Notes

    (सोमारुद्रा) चन्द्रप्राणाविव राजवैधो । चन्द्रमा वै सोमः (कोषीतकी ब्राह्मणे 16, 5) प्राणा वे रुद्राः । प्राणा हर्दा सर्व रोदयन्ति (जैमिनीपोवनिषद् 4, 2, 6) = A king and Vaidya (Physician) who are like the moon and the Prana. (दमेदमे) गृहे गृहे । दमे इति गृहनाम (NG 3, 4) = In every house. (सप्तरत्ना) एतत्संख्याकानि रमणीयान हीरकादीनि । Seven diamonds and other charming gems.

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