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ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 27 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 27/ मन्त्र 1
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - इन्द्र: छन्दः - विराट्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    इन्द्रं॒ नरो॑ ने॒मधि॑ता हवन्ते॒ यत्पार्या॑ यु॒नज॑ते॒ धिय॒स्ताः। शूरो॒ नृषा॑ता॒ शव॑सश्चका॒न आ गोम॑ति व्र॒जे भ॑जा॒ त्वं नः॑ ॥१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इन्द्र॑म् । नरः॑ । ने॒मऽधि॑ता । ह॒व॒न्ते॒ । यत् । पार्याः॑ । यु॒नज॑ते । धियः॑ । ताः । शूरः॑ । नृऽसा॑ता । शव॑सः । च॒का॒नः । आ । गोम॑ति । व्र॒जे । भ॒ज॒ । त्वम् । नः॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इन्द्रं नरो नेमधिता हवन्ते यत्पार्या युनजते धियस्ताः। शूरो नृषाता शवसश्चकान आ गोमति व्रजे भजा त्वं नः ॥१॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इन्द्रम्। नरः। नेमऽधिता। हवन्ते। यत्। पार्याः। युनजते। धियः। ताः। शूरः। नृऽसाता। शवसः। चकानः। आ। गोमति। व्रजे। भज। त्वम्। नः ॥१॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 27; मन्त्र » 1
    अष्टक » 5; अध्याय » 3; वर्ग » 11; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ सर्वैः कीदृशो विद्वान् राजा कमनीयोऽस्तीत्याह ॥

    अन्वयः

    हे राजन् ! यः शूरो शवसश्चकानस्त्वं नृषाता गोमति व्रजे न आ भज [हे राजन् ! ] यमिन्द्रं त्वा यद्या पार्या धियो युनजते तास्त्वमाभज ये नरो नेमधिता त्वां हवन्ते ताँस्त्वमा भज ॥१॥

    पदार्थः

    (इन्द्रम्) परमैश्वर्यप्रदं राजानम् (नरः) विद्यासु नेतारः (नेमधिता) नेमधितौ सङ्ग्रामे (हवन्ते) आह्वयन्ति (यत्) या (पार्याः) पालनीयाः (युनजते) युञ्जते। अत्र बहुलं छन्दसीत्यलोपो न। (धियः) प्रज्ञाः (ताः) (शूरः) शत्रूणां हिंसकः (नृषाता) नरः सीदन्ति यस्मिंस्तस्मिन् नृसातौ (शवसः) बलात् (चकानः) कामयमानः (आ) (गोमति) गावो विद्यन्ते यस्मिँस्तस्मिन् (व्रजे) व्रजन्ति यं तस्मिन् (भजा)। सेवस्व अत्र द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः। (त्वम्) (नः) ॥१॥

    भावार्थः

    यो ह्यत्र प्रशस्तप्रज्ञा सर्वदा बलवृद्धिमिच्छञ्छिष्टसम्मतो विद्वानुद्योगी धार्मिकः प्रजापालनतत्परो नरः स्यात्तमेव सर्वे कामयन्ताम् ॥१॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    अब पाँच ऋचावाले सत्ताईसवें सूक्त का प्रारम्भ है, इसके प्रथम मन्त्र में सबको कैसा विद्वान् राजा इच्छा करने योग्य है, इस विषय को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे राजन् ! जो (शूरः) शत्रुओं की हिंसा करनेवाले (शवसः) बल से (चकानः) कामना करते हुए (त्वम्) आप (नृषाता) मनुष्य जिसमें बैठते वा (गोमति) गौयें जिसमें विद्यमान ऐसे (व्रजे) जाने के स्थान में (नः) हम लोगों को (आ, भज) अच्छे प्रकार सेविये, हे राजन् ! जिन (इन्द्रम्) परमैश्वर्य देनेवाले आप को (यत्) जो (पार्याः) पालना करने योग्य (धियः) उत्तम बुद्धि (युनजते) युक्त होती हैं (ताः) उनको आप अच्छे प्रकार सेवो। जो (नरः) विद्याओं में उत्तम नीति देनेवाले (नेमधिता) संग्राम में आप को (हवन्ते) बुलाते हैं, उनको आप अच्छे प्रकार सेवो ॥१॥

    भावार्थ

    जो निश्चय से इस संसार में प्रशंसित बुद्धिवाला, सर्वदा बल वृद्धि की इच्छा करता हुआ, शिष्ट जनों की सम्मति वर्तनेवाला, विद्वान्, उद्योगी, धार्मिक और प्रजा पालन में तत्पर जन हो, उसी की सब कामना करो ॥१॥

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    विषय

    राजा की आवश्यकता । प्रभु का स्मरण और प्रार्थना

    भावार्थ

    ( यत् ) जो ( इन्द्रं ) ऐश्वर्यवान् और विद्वान् को ( नेमधिता ) संग्राम में ( नरः ) मनुष्य ( हवन्ते ) पुकारते हैं, ( यत् ) जो ( पार्या: ) पालन करने योग्य ( धियः ) और धारण पोषण योग्य प्रजाएं उस ऐश्वर्यवान् राजा का ( युनजते) सहयोग करती हैं, हे राजन् ! तू वह ( शूर: ) शूरवीर ( नृ-साता) मनुष्यों को विभक्त करने वाला, ( शवसः चकानः ) बल की कामना करता हुआ (ताः ) उन २ मनुष्यों और उन प्रजाओं को और ( नः ) हमें भी ( गोमति व्रजे ) उत्तम वाणियों से युक्त परम प्राप्तव्य ज्ञान मार्ग वा ब्रह्मपद में और ( गोमति व्रजे ) भूमियों से युक्त उत्तम राज्य में ( आ भज ) हमें रख और हम पर अनुग्रह कर (२) परमेश्वर पक्ष में – जिसको सब स्वीकार करते (पार्या: धियः युञ्जते) जिसको परम पद को प्राप्त होने वाली बुद्धियां, योग द्वारा प्राप्त करती हैं वह प्रभु हममें हो, उन मनुष्यों और उन बुद्धियों का ( गोमतिं व्रजे ) वाणियों से युक्त परम गन्तव्य ज्ञानमार्ग में (आ भज ) रक्खे और अनुग्रह करे ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वसिष्ठ ऋषिः ॥ इन्द्रो देवता ॥ छन्दः – १, ५ विराट् त्रिष्टुप् । निचृत्त्रिष्टुप् । ३, ४ त्रिष्टुप् । पञ्चर्चं सूक्तम् ॥

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    विषय

    परमात्मा का स्मरण करें

    पदार्थ

    पदार्थ - यत् = जो इन्द्रं- ऐश्वर्यवान् को नेमधिता संग्राम में नरः = मनुष्य इवन्ते पुकारते हैं, यत् = जो पार्या: = पालन-योग्य धियः- और धारण- योग्य प्रजाएं ऐश्वर्यवान् राजा का युनजते-सहयोग करती हैं, हे राजन् ! तू वह शूरः = वीर नृ-साता= मनुष्यों को विभक्त करनेवाला, शवस: चकान:-बल की इच्छा करता हुआ ता:- उन प्रजाओं को और नः = हमें भी गोमति व्रजे-उत्तम वाणियों से प्राप्तव्य ज्ञानमार्ग वा ब्रह्मपद से युक्त उत्तम राज्य में आ भज-रख ।

    भावार्थ

    भावार्थ- मनुष्य को योग्य है कि सर्वव्यापक परमेश्वर का हर समय स्मरण करते हुए उसकी सर्वशक्तिमत्ता को अनुभव करे, तथा कुमार्गों से सदा बचकर सुपथ पर चलता रहे।

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    मराठी (1)

    विषय

    या सूक्तात इंद्र, सेनापती, राजा, दाता, रक्षक व प्रवृत्त करणाऱ्यांच्या गुणांचे व कर्माचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.

    भावार्थ

    या जगात जो निश्चयपूर्वक प्रशंसित बुद्धिमान, सदैव बलाची इच्छा करणारा, सभ्य लोकांची संमती घेणारा, विद्वान, उद्योगी, धार्मिक व प्रजेचे पालन करण्यात तत्पर पुरुष असेल त्याचीच कामना करा. ॥ १ ॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Leading people call upon Indra, lord ruler of the world, in their serious struggles of life and pray for those concentrative faculties of mind and intelligence by which they can join the divine presence and win their goal. The lord is the brave, generous and fearless leader of humanity in their corporate life, lover of strength and inspirer of heroic souls. O lord, give us the grace of your divine presence and lead us in our development of lands and cows and in our plans of education, enlightenment and our vision of the divine Word.

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