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ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 28 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 28/ मन्त्र 1
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - इन्द्र: छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    ब्रह्मा॑ ण इ॒न्द्रोप॑ याहि वि॒द्वान॒र्वाञ्च॑स्ते॒ हर॑यः सन्तु यु॒क्ताः। विश्वे॑ चि॒द्धि त्वा॑ वि॒हव॑न्त॒ मर्ता॑ अ॒स्माक॒मिच्छृ॑णुहि विश्वमिन्व ॥१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ब्रह्मा॑ । नः॒ । इ॒न्द्र॒ । उप॑ । या॒हि॒ । वि॒द्वान् । अ॒र्वाञ्चः॑ । ते॒ । हर॑यः । स॒न्तु॒ । यु॒क्ताः । विश्वे॑ । चि॒त् । हि । त्वा॒ । वि॒ऽहव॑न्त । मर्ताः॑ । अ॒स्माक॑म् । इत् । शृ॒णु॒हि॒ । वि॒श्व॒म्ऽइ॒न्व॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ब्रह्मा ण इन्द्रोप याहि विद्वानर्वाञ्चस्ते हरयः सन्तु युक्ताः। विश्वे चिद्धि त्वा विहवन्त मर्ता अस्माकमिच्छृणुहि विश्वमिन्व ॥१॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ब्रह्मा। नः। इन्द्र। उप। याहि। विद्वान्। अर्वाञ्चः। ते। हरयः। सन्तु। युक्ताः। विश्वे। चित्। हि। त्वा। विऽहवन्त। मर्ताः। अस्माकम्। इत्। शृणुहि। विश्वम्ऽइन्व ॥१॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 28; मन्त्र » 1
    अष्टक » 5; अध्याय » 3; वर्ग » 12; मन्त्र » 1
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ स राजा किं कुर्यादित्याह ॥

    अन्वयः

    हे विश्वमिन्वेन्द्र विद्वांस्त्वं नो ब्रह्मोप याहि यस्य तेऽर्वाञ्चो हरयो युक्ताः सन्तु ये चिद्धि विश्वे मर्त्तास्त्वा वि हवन्त तैस्सहाऽस्माकं वाक्यमिच्छृणुहि ॥१॥

    पदार्थः

    (ब्रह्म) धनमन्नं वा। अत्र च संहितायामिति दीर्घः। (नः) अस्मान् (इन्द्र) परमैश्वर्यविद्याप्रापक (उप) (याहि) (विद्वान्) (अर्वाञ्चः) येऽर्वागधोऽञ्चन्ति (ते) तव (हरयः) मनुष्याः। अत्र वाच्छन्दसीति रोः स्थान उकारादेशः। (सन्तु) (युक्ताः) कृतयोगाः (विश्वे) सर्वे (चित्) (हि) (त्वा) त्वाम् (विहवन्त) विशेषेणाऽऽहूयन्ति (मर्ताः) मनुष्याः (अस्माकम्) (इत्) एव (शृणुहि) शृणु (विश्वमिन्व) यो विश्वं मिनोति तत्सम्बुद्धौ ॥१॥

    भावार्थः

    ये मनुष्याः सत्यं न्यायवृत्त्या राज्यभक्ताः स्युस्ते राज्ये सत्कृताः सन्तो निवसन्तु ॥१॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    अब पाँच ऋचावाले अट्ठाईसवें सूक्त का आरम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में वह राजा क्या करे, इस विषय को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे (विश्वमिन्व) सब को फेंकने वा (इन्द्र) परमैश्वर्य्य और विद्या की प्राप्ति करानेवाले (विद्वान्) विद्यावान् ! आप (नः) हम लोगों को (ब्रह्म) धन वा अन्न (उप, याहि) प्राप्त कराओ जिन (ते) आपके (अर्वाञ्चः) नीचे को जानेवाले (हरयः) मनुष्य (युक्ताः) किये योग (सन्तु) हों (चित्) और जो (हि) ही (विश्वे) सब (मर्त्ताः) मनुष्य (त्वा) आपको (वि, हवन्त) विशेषता से बुलाते हैं, उनके साथ (अस्माकम्) हमारे वाक्य को (इत्) ही (शृणुहि) सुनिये ॥१॥

    भावार्थ

    जो मनुष्य सत्य न्यायवृत्ति से राज्य भक्त हों, वे राज्य में सत्कार किये हुए निरन्तर बसें ॥१॥

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    विषय

    उत्तम विद्वान् और राजा के कर्त्तव्य । वे प्रजा की बात सुनें ।

    भावार्थ

    हे ( इन्द्र) ऐश्वर्य और साक्षात् विद्योपदेश देने हारे राजन् ! आचार्य ! प्रभो ! तू ( विद्वान् ) विद्वान् होकर ( नः ब्रह्म उप याहिं ) हमारा बड़ा राष्ट्र और धन प्राप्त कर । हे विद्वन् ! तू हमें ब्रह्मज्ञान प्राप्त करा । ( ते ) तेरे अधीन ( हरयः ) अश्वारोही गण और नियुक्त मनुष्य ( अर्वाञ्चः ) विनयशील और ( युक्ताः ) मनोयोग देने वाले हों । (विश्वे चित् मर्त्ता: हि) समस्त मनुष्य निश्चय से ( त्वा वि हवन्त ) तुझे विविध प्रकार से पुकारते हैं । हे ( विश्वमिन्व) सबके प्रेरक, सर्वज्ञ, सर्वप्रिय ! तू ( अस्माकम् इत् ) हमारा वचन अवश्य ( शृणुहि ) श्रवण कर ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वसिष्ठ ऋषिः॥ इन्द्रा देवता ॥ छन्दः – १, २, ५ निचृत्त्रिष्टुप् । ३ भुरिक् पंक्तिः । ४ स्वराट् पंक्तिः॥ पञ्चर्चं सूक्तम्॥

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    विषय

    उत्तम विद्वान के कर्त्तव्य

    पदार्थ

    पदार्थ - हे (इन्द्र) = ऐश्वर्य और विद्योपदेशदाता राजन्! आचार्य! तू (विद्वान्) = विद्वान् होकर (नः ब्रह्म उप याहि) = हमारा बड़ा राष्ट्र और धन प्राप्त कर, करा । (ते) = तेरे अधीन (हरयः) = अश्वारोही और नियुक्त मनुष्य (अर्याञ्चः) = विनयशील और (युक्ताः) = मनोयोग देनेवाले हों। (विश्वे चित् मर्त्ता: हि) = समस्त मनुष्य निश्चय से (त्वा वि हवन्त) = तुझे विविध प्रकार से पुकारते हैं। हे (विश्वमिन्व) = सबके प्रेरक ! तू (अस्माकम् इत्) = हमारा वचन अवश्य (शृणुहि) = सुन ।

    भावार्थ

    भावार्थ- राष्ट्र के अन्दर उत्तम विद्वानों को सुशिक्षा एवं सदुपदेश के द्वारा राजा तथा प्रजा दोनों को सन्मार्ग में प्रेरित करना चाहिए। राजा वेद के विद्वानों के परामर्श से राज्यव्यवस्था चलावे । प्रजा की समस्याओं को विद्वान् जन राजा के सामने रखकर उनका समाधान करावें।

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    मराठी (1)

    विषय

    या सूक्तात इंद्र, विद्वान, राजगुण व कर्मांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्वसूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.

    भावार्थ

    जी माणसे सत्य, न्यायी, राजभक्त असतील त्यांचा राज्यात निरंतर सत्कार व्हावा. त्यांचा राज्यात सतत निवास असावा. ॥ १ ॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Indra, lord omniscient, all pervasive in the world, come, listen to our prayer, let the horses harnessed to your chariot be directed hitherward to us. All people of the world without exception invoke you. Pray listen to our prayer and bring us the gifts of Divinity.

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