ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 40/ मन्त्र 1
ओ श्रु॒ष्टिर्वि॑द॒थ्या॒३॒॑ समे॑तु॒ प्रति॒ स्तोमं॑ दधीमहि तु॒राणा॑म्। यद॒द्य दे॒वः स॑वि॒ता सु॒वाति॒ स्यामा॑स्य र॒त्निनो॑ विभा॒गे ॥१॥
स्वर सहित पद पाठओ इति॑ । श्रु॒ष्टिः । वि॒द॒थ्या॑ । सम् । ए॒तु॒ । प्रति॑ । स्तोम॑म् । द॒धी॒म॒हि॒ । तु॒राणा॑म् । यत् । अ॒द्य । दे॒वः । स॒वि॒ता । सु॒वाति॑ । स्याम॑ । अ॒स्य॒ । र॒त्निनः॑ । वि॒ऽभा॒गे ॥
स्वर रहित मन्त्र
ओ श्रुष्टिर्विदथ्या३ समेतु प्रति स्तोमं दधीमहि तुराणाम्। यदद्य देवः सविता सुवाति स्यामास्य रत्निनो विभागे ॥१॥
स्वर रहित पद पाठओ इति। श्रुष्टिः। विदथ्या। सम्। एतु। प्रति। स्तोमम्। दधीमहि। तुराणाम्। यत्। अद्य। देवः। सविता। सुवाति। स्याम। अस्य। रत्निनः। विऽभागे ॥१॥
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 40; मन्त्र » 1
अष्टक » 5; अध्याय » 4; वर्ग » 7; मन्त्र » 1
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अष्टक » 5; अध्याय » 4; वर्ग » 7; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनर्मनुष्याः किं कुर्युरित्याह ॥
अन्वयः
ओ विद्वन् ! यथा श्रुष्टिर्विदथ्या तुराणां प्रतिस्तोमं समेतु तथैतं स्तोमं वयं दधीमहि यदद्य देवस्सविता विभागेऽस्य रत्निनः स्तोमं सुवाति तथा वयं स्याम ॥१॥
पदार्थः
(ओ) सम्बोधने (श्रुष्टिः) आशुकारी (विदथ्या) विदथेषु संग्रामादिषु व्यवहारेषु भवा (सम्) (एतु) सम्यक् प्राप्नोतु (प्रति) (स्तोमम्) (दधीमहि) (तुराणाम्) सद्यः कारिणाम् (यत्) यः (अद्य) इदानीम् (देवः) विद्वान् (सविता) सत्कर्मसु प्रेरकः (सुवाति) जनयति (स्याम) भवेम (अस्य) विदुषः (रत्निनः) बहूनि रत्नानि धनानि विद्यन्ते येषु तान् (विभागे) विशेषेण भजनीये व्यवहारे ॥१॥
भावार्थः
अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे मनुष्या ! यथा विदुषी माताऽपत्यानि संरक्ष्य सुशिक्ष्य वर्द्धयति तथा विद्वांसोऽस्मान् वर्द्धयन्तु ॥१॥
हिन्दी (3)
विषय
अब सात ऋचावाले चालीसवें सूक्त का प्रारम्भ किया जाता है, उसके प्रथम मन्त्र में फिर मनुष्य क्या करें, इस विषय को कहते हैं ॥
पदार्थ
(ओ) ओ विद्वान् ! जैसे (श्रुष्टिः) शीघ्र करनेवाला (विदथ्या) संग्रामादि व्यवहारों में हुई (तुराणाम्) शीघ्रकारियों के (प्रति, स्तोमम्) समूह-समूह के प्रति (सम्, एतु) अच्छे प्रकार प्राप्त होवे, वैसे इस समूह को हम लोग (दधीमहि) धारण करें (यत्) जो (अद्य) अब (देवः) विद्वान् (सविता) अच्छे कामों में प्रेरणा देनेवाला (विभागे) विशेष कर सेवने योग्य व्यवहार में (अस्य) इस विद्वान् के (रत्निनः) उन व्यवहारों को जिन में बहुत रत्न विद्यमान और स्तुति समूह को (सुवाति) उत्पन्न करता है, वैसे हम लोग उत्पन्न करनेवाले (स्याम) हों ॥१॥
भावार्थ
इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे विदुषी माता सन्तानों की रक्षा कर और अच्छी शिक्षा देकर बढ़ाती है, वैसे विद्वान् जन हम को बढ़ावें ॥१॥
विषय
विद्वान् सम्पन्न वीर शासकों के कर्त्तव्य
भावार्थ
( ओ ) हे विद्वानो ! (विदथ्या) यज्ञादि कार्यों और संग्रामों में होने योग्य (श्रुष्टिः ) शीघ्रकारिता ( तुराणां ) शत्रुहिंसक वीर पुरुषों के ( स्तोमं ) समूह को ( प्रति समेतु ) प्रति पुरुष प्राप्त हो, ऐसे ( स्तोमं ) जन समूह या सैन्य को हम ( दधीमहि ) धारण करें । ( यद् देवः ) जो दानशील, तेजस्वी ( सविता ) सूर्यवत् सर्वाज्ञापक पुरुष ( अद्य सुवाति ) आज शासन करता और ऐश्वर्य प्रदान करता है (अस्य ) उसके ( विभागे ) विशेष इस व्यवहार में हम भी ( रत्निनः स्याम ) उत्तम धनादि सम्पन्न हों ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठ ऋषिः॥ विश्वेदेवा देवताः । छन्दः—१ पंक्ति: । ३ भुरिक् पंक्तिः विराट् पंक्तिः। २, ४ विराट् त्रिष्टुप् । ५, ७ निचृत्त्रिष्टुप्॥ सप्तर्चं सूक्तम् ॥
विषय
धन सम्पन्न बनो
पदार्थ
पदार्थ - ओ हे विद्वानो! (विदथ्या) = यज्ञों और संग्रामों में होने योग्य (श्रुष्टिः) = शीघ्रकारिता (तुराणां) = वीर पुरुषों के (स्तोमं) = समूह को (प्रति समेतु) = प्रति पुरुष प्राप्त हो, ऐसे (स्तोमं) = जन-समूह या सैन्य को हम (दधीमहि) = धारण करें। (यद् देवाः) = जो दानशील (सविता) = सूर्यवत् तेजस्वी पुरुष (अद्य सुवाति) = आज ऐश्वर्य देता है (अस्य) = उसके (विभागे) = व्यवहार में हम (रत्लिनः स्याम) = धनसम्पन्न हों।
भावार्थ
भावार्थ- उत्तम शासन तथा ऐश्वर्यशाली दानशील तेजस्वी राजा अपने प्रिय मधुर व्यवहार तथा उत्तम धन द्वारा प्रजा को समृद्ध करे यज्ञों की रक्षा के लिए विद्वानों तथा शत्रुओं की हिंसा करनेवाले वीर पुरुषों को भी व्यक्तिगत प्रोत्साहित करे।
मराठी (1)
विषय
या सूक्तात विश्वेदेवांच्या गुण कर्माचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताबरोबर पूर्वसूक्तार्थाची संगती जाणावी.
भावार्थ
या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे माणसांनो ! जशी विदुषी माता अपत्याचे संरक्षण करून सुशिक्षित करते तसे विद्वानांनी आम्हाला वाढवावे. ॥ १ ॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Let instant perception and active response worthy of our yajnic social system come to us in peace for every group and class of people, vibrant and really fast, and let us internalise it in every detail so that whatever the refulgent creator and ruler, Savita, inspires and creates today, right now we may share and, in participation together, be beneficiaries of this lord’s jewel gifts of life.
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