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ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 57 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 57/ मन्त्र 1
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - मरुतः छन्दः - विराट्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    मध्वो॑ वो॒ नाम॒ मारु॑तं यजत्राः॒ प्र य॒ज्ञेषु॒ शव॑सा मदन्ति। ये रे॒जय॑न्ति॒ रोद॑सी चिदु॒र्वी पिन्व॒न्त्युत्सं॒ यदया॑सुरु॒ग्राः ॥१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    मध्वः॑ । वः॒ । नाम॑ । मारु॑तम् । य॒ज॒त्राः॒ । प्र । य॒ज्ञेषु॑ । शव॑सा । म॒द॒न्ति॒ । ये । रे॒जय॑न्ति । रोद॑सी॒ इति॑ । चि॒त् । उ॒र्वी इति॑ । पिन्व॑न्ति । उत्स॑म् । यत् । अया॑सुः । उ॒ग्राः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    मध्वो वो नाम मारुतं यजत्राः प्र यज्ञेषु शवसा मदन्ति। ये रेजयन्ति रोदसी चिदुर्वी पिन्वन्त्युत्सं यदयासुरुग्राः ॥१॥

    स्वर रहित पद पाठ

    मध्वः। वः। नाम। मारुतम्। यजत्राः। प्र। यज्ञेषु। शवसा। मदन्ति। ये। रेजयन्ति। रोदसी इति। चित्। उर्वी इति। पिन्वन्ति। उत्सम्। यत्। अयासुः। उग्राः ॥१॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 57; मन्त्र » 1
    अष्टक » 5; अध्याय » 4; वर्ग » 27; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनर्मनुष्याः किंवत् किं कुर्युरित्याह ॥

    अन्वयः

    हे यजत्रा ! य उग्रा विद्युत्सहिता वायवो यद्ये उर्वी रोदसी उत्समिव सर्वं जगत् पिन्वन्ति चिदपि रेजयन्त्ययासुस्तद्वद्ये वो मध्वो नाम यज्ञेषु शवसा मारुतं प्रमदन्ति तान् यूयं विजानीत ॥१॥

    पदार्थः

    (मध्वः) मन्यमानाः (वः) युष्माकम् (नाम) (मारुताम्) मरुतां मनुष्याणामिदं कर्म (यजत्राः) सङ्गन्तारः (प्र) (यज्ञेषु) विद्वत्सत्कारादिषु (शवसा) बलेन (मदन्ति) कामयन्ते (ये) (रेजयन्ति) कम्पयन्ति (रोदसी) द्यावापृथिव्यौ (चित्) अपि (उर्वी) बहुपदार्थयुक्ते (पिन्वन्ति) सिञ्चन्ति (उत्सम्) कूपमिव (यत्) ये (अयासुः) प्राप्नुयुः (उग्राः) तेजस्विनः ॥१॥

    भावार्थः

    अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये वायवो भूगोलान् भ्रामयन्ति धरन्ति वृष्टिभिस्सिञ्चन्ति तान् विदित्वा विद्वांसः कार्याणि निष्पाद्यानन्दन्तु ॥१॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर मनुष्य किसके सदृश क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे (यजत्राः) मिलनेवाले ! (ये) जो (उग्राः) तेजस्वी बिजुली के सहित पवन (यत्) जो (उर्वी) बहुत पदार्थों से युक्त (रोदसी) अन्तरिक्ष पृथिवी और (उत्सम्) कूप को जैसे वैसे सम्पूर्ण संसार को (पिन्वन्ति) सींचते हैं और (चित्) भी (रेजयन्ति) कम्पाते हैं (अयासुः) प्राप्त होवें उसको (ये) जो (वः) आप लोगों को (मध्वः) मानते हुए (नाम) प्रसिद्ध (यज्ञेषु) विद्वानों के सत्कार आदिकों में (शवसा) बल से (मारुतम्) मनुष्यों के कर्म की (प्र, मदन्ति) कामना करते हैं, उनको आप लोग जानिये ॥१॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो पवन, भूगोलों को घुमाते और धारण करते हैं और वृष्टियों से सीचते हैं, उनको जान कर विद्वान् जन कार्यों को कर के आनन्द करें ॥१॥

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    विषय

    विद्वानों और वीरों के मेघ लाने वाले वायुगण के तुल्य कर्तव्य,

    भावार्थ

    जिस प्रकार ( उग्राः ) प्रबल वायुगण ( उर्वी रोदसी रेजयन्ति) विशाल भूमि और अन्तरिक्ष दोनों को कंपाते हैं और ( यत् अयासुः ) जब चलते हैं तब ( उत्सं पिन्वन्ति ) मेघ को बरसाते हैं उसी प्रकार ( उग्राः ) बलवान् पुरुष ( यत् अयासुः ) जब चलते वा प्राप्त होते हैं ( उर्वी ) बड़ी ( रोदसी ) सेनापतियों के अधीन स्थित उभयपक्ष की सेनाओं को ( रेजयन्ति ) कंपाते, भयभीत करते हैं, और ( उत्सं ) ऊपर उठने वाले विजेता को ( पिन्वन्ति ) जलों से अभिषिक्त करते हैं। हे ( यजत्राः ) दानशील. पूज्य सत्संगति युक्त जनो ! हे ( मध्वः ) मनन शील, हर्षकारी जनो ! ( वः ) आप लोगों का ( मारुतं नाम ) मनुष्यों का सा नाम, सामर्थ्य है आप लोग (यज्ञेषु) यज्ञों और युद्धों में ( शवसा ) बल और ज्ञान से ( प्र मदन्ति ) हर्षित होते और उत्तम उपदेश करते हो ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वसिष्ठ ऋषिः॥ मरुतो देवताः॥ छन्दः - २, ४ त्रिष्टुप्। १ विराट् त्रिष्टुप्। ३, ५, ६, ७ निचृत्त्रिष्टुप्॥ सप्तर्चं सूक्तम्॥

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    विषय

    ज्ञानवान् व बलवान् बनो

    पदार्थ

    पदार्थ - जैसे (उग्राः) = प्रबल वायुगण (उर्वी रोदसी रेजयन्ति) = विशाल भूमि और अन्तरिक्ष को कम्पाते हैं और (यत् अयासुः) = जब चलते हैं तब (उत्सं पिन्वन्ति) = मेघ को बरसाते हैं वैसे ही (उग्रा:) = बलवान् पुरुष (यत् अयासुः) = जब चलते वा प्राप्त होते हैं (उर्वी) = बड़ी (रोदसी) = सेनापतियों के अधीन स्थित उभयपक्ष की सेनाओं को (रेजयन्ति) = कंपाते हैं और (उत्सं) = ऊपर उठनेवाले विजेता को (पिन्वन्ति) = जलों से अभिषिक्त करते हैं। हे (यजत्राः) = दानशील जनो! हे (मध्वः) = मननशील जनो! (वः) = आप लोगों का (मारुतं नाम) = मनुष्यों का सा नाम, सामर्थ्य है, आप (यज्ञेषु) = यज्ञों और युद्धों में (शवसा) = बल और ज्ञान से (प्र मदन्ति) = हर्षित होते और उपदेश करते हो।

    भावार्थ

    भावार्थ- उत्तम मननशील जन उत्तम ज्ञान का उपदेश करें तथा युद्धों में जल सेना, वायुसेना तथा थल सेना तीनों को प्रेरणा करें कि वे उग्र वायु [तूफान] व घनघोर बादलों के समान शत्रुओं को कंपाकर उनके बल को कमजोर करें ।

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    मराठी (1)

    विषय

    या सूक्तात वायूप्रमाणे विद्वानाच्या गुणांचे व कर्माचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.

    भावार्थ

    या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जे वायू भूगोलांना भ्रमण करवितात व धारण करवितात आणि वृष्टीने सिंचन करवितात त्यांना जाणून विद्वान लोकांनी कार्य करून आनंदात राहावे. ॥ १ ॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    O Maruts, cosmic winds of vitality, admirable is your name and action worthy of the life force and humanity which worshipful yajakas invoke and celebrate with strength and enthusiasm in yajnic programmes. When the raging winds blow they shake the heaven and earth, swell the cloud and shower the earth with life giving waters.

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