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ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 79 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 79/ मन्त्र 1
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - उषाः छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    व्यु१॒॑षा आ॑वः प॒थ्या॒३॒॑ जना॑नां॒ पञ्च॑ क्षि॒तीर्मानु॑षीर्बो॒धय॑न्ती । सु॒सं॒दृग्भि॑रु॒क्षभि॑र्भा॒नुम॑श्रे॒द्वि सूर्यो॒ रोद॑सी॒ चक्ष॑सावः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वि । उ॒षाः । आ॒वः॒ । प॒थ्या॑ । जना॑नाम् । पञ्च॑ । क्षि॒तीः । मानु॑षीः । बो॒धय॑न्ती । सु॒स॒न्दृक्ऽभिः॑ । उ॒क्षऽभिः॑ । भा॒नुम् । अ॒श्रे॒त् । वि । सूर्यः॑ । रोद॑सी॒ इति॑ । चक्ष॑सा । आ॒व॒रित्या॑वः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    व्यु१षा आवः पथ्या३ जनानां पञ्च क्षितीर्मानुषीर्बोधयन्ती । सुसंदृग्भिरुक्षभिर्भानुमश्रेद्वि सूर्यो रोदसी चक्षसावः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    वि । उषाः । आवः । पथ्या । जनानाम् । पञ्च । क्षितीः । मानुषीः । बोधयन्ती । सुसन्दृक्ऽभिः । उक्षऽभिः । भानुम् । अश्रेत् । वि । सूर्यः । रोदसी इति । चक्षसा । आवरित्यावः ॥ ७.७९.१

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 79; मन्त्र » 1
    अष्टक » 5; अध्याय » 5; वर्ग » 26; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ स्वयंप्रकाशपरमात्मनः सकाशादज्ञान- निवृत्तिर्वर्ण्यते।

    पदार्थः

    (सूर्यः) स्वतःप्रकाशः परमात्मा (रोदसी) पृथ्व्यन्तरिक्षयोर्मध्ये (चक्षसा) स्वप्रकाशेन (आवः) सर्वं प्रकाशयन् (वि उषाः) स्वविशेषज्ञानेन (पञ्च जनानाम्) पञ्चविधानपि मनुष्यान् (क्षितीः) भूमौ (मानुषीः) मनुष्यताम् (बोधयन्ती) उपदिशति, यः (आवः पथ्या) सर्वेभ्यो विशेषेण पथ्यो हितकरोऽस्ति, अस्माभिः प्रजाभिः (वि) विशेषतया कर्तव्यमस्ति यद्वयम् (उक्षभिः) अत्यन्तबलवता (सुसन्दृग्भिः) स्वसत्यज्ञानेन (भानुम् अश्रेत्) तं स्वप्रकाशमाश्रयेम ॥१॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    अब परमात्मा की स्वयंप्रकाशता का कथन करते हुए उसी से अज्ञाननिवृत्ति का वर्णन करते हैं।

    पदार्थ

    (सूर्यः) स्वतःप्रकाश परमात्मा (रोदसी) पृथ्वी तथा द्युलोक के मध्य में (चक्षसा) अपने प्रकाश से (आवः) सबको प्रकाशित करता हुआ (वि उषाः) अपने विशेष ज्ञान से (पञ्च जनानां) पाँचों प्रकार के मनुष्यों को (क्षितीः) इस पृथ्वी पर (मानुषीः) मनुष्यता का (बोधयन्ती) उपदेश कर रहा है, जो (आवः पथ्या) सबके लिए विशेषरूप से पथ्य है। हम सब प्रजाजनों का (वि) विशेषता से मुख्य कर्तव्य है कि हम (उक्षभिः) अत्यन्तबलयुक्त (सुसंदृग्भिः) अपने सत्यज्ञान से (भानुं अश्रेत्) उस स्वयंप्रकाश को आश्रयण करें ॥१॥

    भावार्थ

    वह पूर्ण परमात्मा अपनी दिव्य ज्योति से सम्पूर्ण भूमण्डल को प्रकाशित करता हुआ अपने विशेष ज्ञान से “पञ्चजना”=ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र और दस्यु इन पाँचों प्रकार के मनुष्यों को सत्यज्ञान का उपदेश कर रहा है, जो सबके लिए परम उपयोगी है। हमारा कर्तव्य है कि हम यत्नपूर्वक उस स्वतःप्रकाश परमात्मा के स्वरूप को जानकर उसी का आश्रयण करें ॥१॥

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    विषय

    उषावत् गुणप्रकाशक वधू के कर्त्तव्य ।

    भावार्थ

    ( जनानां पथ्या ) मनुष्यों को अपने प्रकाश से सत्पथ बतलाने वाली ( उषा ) प्रभात वेला के समान (पथ्या) धर्म-पथ बतलाने में हितकारिणी, और (पथ्या) संग आदि से रोग, शोकादि दूर करने वाली वधू ( वि-आवः ) विविध गुणों का प्रकाश करे । वह ( मानुषीः पञ्च क्षितीः बोधयन्ती ) मनुष्यों के पांचों प्रकार के प्रजाजनों को ज्ञान बोध कराती हुई, ( सु-सं-दृग्भिः ) उत्तम सम्यग् दर्शन युक्त, ( उक्षभिः ) पुरुष-पुंगवों द्वारा ( भानुम् अश्रेत् ) विशेष दीप्ति को धारण करे । और ( सूर्यः ) आकाश और भूमि को प्रकाश से सूर्य के समान पुरुष ( रोदसी ) माता पिता दोनों के कुलों को ( चक्षसा ) सम्यग् दृष्टि से, ( वि-आव: ) विशेष रूप से उज्ज्वल करता है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वसिष्ठ ऋषिः॥ उषा देवता॥ छन्दः—१, ४ निचृत् त्रिष्टुप्। २, ३ विराट् त्रिष्टुप् । ५ आर्ची स्वराट् त्रिष्टुप्॥ पञ्चर्चं सूक्तम् ॥

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    विषय

    हितकारिणी वधू

    पदार्थ

    पदार्थ- (जनानां पथ्या) = मनुष्यों को प्रकाश से सत्पथ बतलानेवाली (उषा) = प्रभात-वेला के तुल्य (पथ्या) = धर्म-पथ बतलाने में हितकारिणी वधू (वि-आवः) = विविध गुणों का प्रकाश करे। वह (मानुषीः पञ्च क्षितीः बोधयन्ती) = मनुष्यों के पाँचों प्रकार के प्रजाजनों को बोध कराती हुई, (सु-सं-दृग्भिः) = उत्तम सम्यग् दर्शनयुक्त, (उक्षभिः) = पुरुष-पुंगवों द्वारा (भानुम् अश्रेत्) = विशेष दीप्ति धारण करे और (सूर्यः) = आकाश और भूमि को प्रकाश से सूर्य के तुल्य पुरुष (रोदसी) = माता-पिता दोनों के कुलों को (चक्षसा) = सम्यग् दृष्टि से, (वि-आव:) = विशेष रूप से उज्ज्वल करती है । के धर्म को जाननेवाली स्त्री पति के घर जाकर सबको अपने मधुर व्यवहार से आकर्षित करके सबका हित करती है और अपने तेजस्वी गुणों के द्वारा पिता तथा पति दोनों

    भावार्थ

    भावार्थ- गृहस्थ के कुलों को प्रतिष्ठा प्राप्त कराती है।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    The lights of the dawn arise, rejuvenating, revealing the paths of life for the day and awakening all five communities of the people for their daily chores. She reveals the birth of the sun by beatific radiations and as the sun rises it illuminates heaven and earth and fills them with light.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    तो पूर्ण परमात्मा आपल्या दिव्य ज्योतीने संपूर्ण भूमंडल प्रकाशित करून आपल्या विशेष ज्ञानाने ‘पञ्चजना’ ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र व दस्यू या पाच प्रकारच्या माणसांना सत्यज्ञानाचा उपदेश करीत आहे, जो सर्वांना अत्यंत उपयोगी आहे. तेव्हा आमचे हे कर्तव्य आहे, की आम्ही प्रयत्नपूर्वक त्या स्वयंप्रकाशी परमात्म्याचे स्वरूप जाणून त्याचाच आश्रय घ्यावा. ॥१॥

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