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ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 90 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 90/ मन्त्र 1
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - वायु: छन्दः - विराट्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    प्र वी॑र॒या शुच॑यो दद्रिरे वामध्व॒र्युभि॒र्मधु॑मन्तः सु॒तास॑: । वह॑ वायो नि॒युतो॑ या॒ह्यच्छा॒ पिबा॑ सु॒तस्यान्ध॑सो॒ मदा॑य ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्र । वी॒र॒ऽया । शुच॑यः । द॒द्रिः॒ । वा॒म् । अ॒ध्व॒र्युऽभिः॑ । मधु॑ऽमन्तः । सु॒तासः॑ । वह॑ । वा॒यो॒ इति॑ । नि॒ऽयुतः॑ । या॒हि॒ । अच्छ॑ । पिब॑ । सु॒तस्य॑ । अन्ध॑सः । मदा॑य ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्र वीरया शुचयो दद्रिरे वामध्वर्युभिर्मधुमन्तः सुतास: । वह वायो नियुतो याह्यच्छा पिबा सुतस्यान्धसो मदाय ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    प्र । वीरऽया । शुचयः । दद्रिः । वाम् । अध्वर्युऽभिः । मधुऽमन्तः । सुतासः । वह । वायो इति । निऽयुतः । याहि । अच्छ । पिब । सुतस्य । अन्धसः । मदाय ॥ ७.९०.१

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 90; मन्त्र » 1
    अष्टक » 5; अध्याय » 6; वर्ग » 12; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ वायुविद्याविदुष ऐश्वर्यं वर्ण्यते।

    पदार्थः

    (वायो) हे वायुविद्यावेत्तः ! भवान् (सुतस्य) संस्कृतस्य (अन्धसः) अन्नस्य रसं (मदाय) आह्लादाय (पिब) पिबन्तु (नियुतः) स्वपदे नियुक्तः (अच्छ) सुविधया (वह) यथाकामं विहरतु तथा (याहि) केनाप्यप्रतिषिद्धो विचरतु, यतः (प्र) सम्यक् (वीरया) वीरतायै (वाम्) तुभ्यं (अध्वर्युभिः) वैदिकैः (मधुमन्तः) मधुराः (सुतासः) श्रोत्रतर्पणाः (शुचयः) शुद्धाः (दद्रिरे) उपदेशा दत्ताः ॥१॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    अब वायुविद्या को जाननेवाले विद्वान् का ऐश्वर्य्य वर्णन करते हैं।

    पदार्थ

    (वायो) हे वायुविद्या के वेत्ता विद्वान् ! आप (सुतस्य) संस्कार किये हुए (अन्धसः) अन्नों के रसों को मदाय) आह्लाद के लिये (पिब) पियें और (नियुतः) अपने पद पर नियुक्त हुए (अच्छ) भली प्रकार (वह) सर्वत्र प्राप्त होओ तथा (याहि) बिना रोक-टोक से सर्वत्र जाओ, क्योंकि (प्र) भलीभाँति (वीरया) वीरता के लिये (वाम्) तुमको (अध्वर्युभिः) वैदिक लोगों ने (मधुमन्तः) मीठे (सुतासः) सुन्दर-सुन्दर (शुचयः) पवित्र (दद्रिरे) उपदेश दिये हैं ॥१॥

    भावार्थ

    परमात्मा उपदेश करते हैं कि हे वायुतत्त्व की विद्या को जाननेवाले विद्वान् पुरुषो ! आप वैदिक पुरुषों से उपदेश-लाभ करके सर्वत्र भूमण्डल में अव्याहतगति होकर विचरें ॥१॥

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    विषय

    बलवान् सेनापति के कर्त्तव्य ।

    भावार्थ

    हे ( इन्द्र-वायू ) ऐश्वर्यवन् ! शत्रुहन्तः ! इन्द्र ! हे वायुवत् बलवान् वीर सेनापते ! ( शुचय: ) शुद्ध आचारवान्, ईमानदार ( वीरया = वीराः ) वीर ( मधुमन्तः ) बलवान्, मधुरप्रकृति, ( सुतासः ) अपने योग्य पदों पर अभिषिक्त पुरुष ( अध्वर्युभिः ) प्रजा की हिंसा पीड़ा न चाहने वाले सोम्यवृत्ति विद्वानों सहित (वाम् प्र दद्विरे) तुम दोनों को प्राप्त होते हैं । हे ( वायो ) वायुवत् सर्वोपकारिन् बलवन् ! तू ( नियुतः ) नियुक्त वा सहस्रों अश्वादि सेनाओं को ( वह ) सन्मार्ग पर ले चल, और ( सुतस्य अन्धसः ) ऐश्वर्य से समृद्ध, उत्पन्न अन्न को भी ( याहि ) प्राप्त कर और ( मदाय ) तृप्ति के लिये उसका ( पिब ) उपभोग कर ॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वसिष्ठ ऋषिः ॥ १—४ वायुः। ५—७ इन्द्रवायू देवते । छन्दः—१, २, ७ विराट् त्रिष्टुप् । ३ त्रिष्टुप् । ४, ५, ६ निचृत् त्रिष्टुप् ॥ सप्तर्चं सूक्तम् ॥

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    विषय

    सेनापति के गुण

    पदार्थ

    पदार्थ- हे (वायो) = ऐश्वर्यवन्! हे वायुवत् बलवान् वीर सेनापते! (शुचय:) = शुद्ध आचारवान्, धार्मिक (वीरया=वीराः) = वीर (मधुमन्तः) = बलवान्, मधुर प्रकृति, (सुतासः) = योग्य पदों पर अभिषिक्त पुरुष (अध्वर्युभिः) = प्रजा की हिंसा पीड़ा न चाहनेवाले सोम्यवृत्ति विद्वानों सहित (वाम् प्र दद्रिरे) = तुम दोनों को प्राप्त होते हैं। हे (वायो) = वायुवत् बलवन् ! तू (नियुतः) = सहस्रों अश्वादि सेनाओं को वह सन्मार्ग पर ले चल और (सुतस्य अन्धसः) = ऐश्वर्य से समृद्ध अन्न को (याहि) = प्राप्त कर और (मदाय) = तृप्ति के लिये उसका (पिब) = उपभोग कर।

    भावार्थ

    भावार्थ- राजा को योग्य है कि वह वीर, बलवान्, सत्यवादी, सदाचारी, प्रजा को न सतानेवाले सहयोग को सेनापति पद पर नियुक्त करे। वह सेनापति प्रजाओं को विद्वानों पुरुष से सन्मार्ग पर चलाकर ऐश्वर्य सम्पन्न बनावे ।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Vayu, vibrant source giver of wind energy, come hither, bring all the appointed forces, pure honey sweets of food and drink distilled by specialists of the art are prepared and offered for you. Come and taste of the purest foods for the inspiration and motivation of the brave.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमात्मा उपदेश करतो, की हे वायू इत्यादींची विद्या जाणणाऱ्या विद्वान पुरुषांनो! तुम्ही वैदिक पुरुषांच्या उपदेशाचा लाभ घेऊन भूमंडलावर अव्याहत गतीने विहार करा. ॥१॥

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