ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 91/ मन्त्र 1
कु॒विद॒ङ्ग नम॑सा॒ ये वृ॒धास॑: पु॒रा दे॒वा अ॑नव॒द्यास॒ आस॑न् । ते वा॒यवे॒ मन॑वे बाधि॒तायावा॑सयन्नु॒षसं॒ सूर्ये॑ण ॥
स्वर सहित पद पाठकु॒वित् । अ॒ङ्ग । नम॑सा । ये । वृ॒धासः॑ । पु॒रा । दे॒वाः । अ॒न॒व॒द्यासः॑ । आस॑न् । ते । वा॒यवे॑ । मन॑वे । बा॒धि॒ताय॑ । अवा॑सयन् । उ॒षस॑म् । सूर्ये॑ण ॥
स्वर रहित मन्त्र
कुविदङ्ग नमसा ये वृधास: पुरा देवा अनवद्यास आसन् । ते वायवे मनवे बाधितायावासयन्नुषसं सूर्येण ॥
स्वर रहित पद पाठकुवित् । अङ्ग । नमसा । ये । वृधासः । पुरा । देवाः । अनवद्यासः । आसन् । ते । वायवे । मनवे । बाधिताय । अवासयन् । उषसम् । सूर्येण ॥ ७.९१.१
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 91; मन्त्र » 1
अष्टक » 5; अध्याय » 6; वर्ग » 13; मन्त्र » 1
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अष्टक » 5; अध्याय » 6; वर्ग » 13; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथ पूर्वोक्तविद्वद्भ्यः प्रकारान्तरेण विद्याऽऽदानमुपदिश्यते।
पदार्थः
(पुरा) पूर्वकाले (ये) ये (देवाः) विद्वांसः (वृधासः) ज्ञानवृद्धाः तथा (अनवद्यासः) दोषरहिताः (आसन्) अभूवन् ते (कुवित्) अति (अङ्ग) शीघ्रं (नमसा) नम्रतया (वायवे, मनवे) शिक्षाप्राप्तये (बाधिताः) स्वसन्तानरक्षणाय च (सूर्येण) सूर्योदये (उषसम्) उषःकालमभिलक्ष्य (अवासयन्) स्वयज्ञादिकं प्रारसप्सत ॥१॥
हिन्दी (3)
विषय
अब उक्त विद्वानों से प्रकारान्तर से विद्याग्रहण करने का उपदेश कथन करते हैं।
पदार्थ
(पुरा) पूर्वकाल में (ये) जो (देवाः) विद्वान् (वृधासः) ज्ञानवृद्ध और (अनवद्यासः) दोषरहित (आसन्) थे, वे (कुवित्) बहुत (अङ्ग) शीघ्र (नमसा) नम्रता से (वायवे) शिक्षा के (मनवे) लाभ के लिये (बाधिताः) स्वसन्तानों की रक्षा के लिये (सूर्येण) सूर्योदय के (उषसम्) उषाकाल को लक्ष्य रख कर (अवासयन्) अपने यज्ञ आदि कर्मों का प्रारम्भ करते थे ॥१॥
भावार्थ
जो लोग अपने आलस्य आदि दोषरहित और ज्ञानी हैं, वे उषाकाल में उठकर अपने यज्ञादि कर्मों का प्रारम्भ करते हैं। मन्त्र में जो भूतकाल की क्रिया दी है, वह “व्यत्ययो बहुलम्” इस नियम के अनुसार वर्तमानकाल की बोधिका है, इसलिये वेदों से प्रथम किसी अन्य देव के होने की आशङ्का इससे नहीं हो सकती। अन्य युक्ति यह कि “सूर्याचन्द्रमसौ धाता यथा पूर्वमकल्पयत्” “देवाभागं यथा पूर्वे सञ्जानाना उपासते” इत्यादि मन्त्रों में पूर्व काल के देवों की सूचना जैसे दी गई है, इसी प्रकार उक्त मन्त्र में भी है, इसलिये कोई दोष नहीं ॥ तात्पर्य्य यह है कि वैदिक सिद्धान्त में सृष्टि प्रवाहरूप से अनादि है, इसलिये उसमें भूतकाल का वर्णन करना कोई दोष की बात नहीं ॥१॥
विषय
बलवान् का स्थापन ।
भावार्थ
( ये ) जो ( नमसा ) विनयपूर्वक वृद्ध जनों के प्रति नमस्कार या शत्रु को नमाने वाले बल से ( पुरा ) पहले ( वृधासः ) बढ़ने हारे ( अनवद्यासः ) अनिन्दिताचरण करने वाले, ( देवाः ) विद्या, धन पुत्र आदि के अभिलाषी (आसन्) रहते हैं ( ते ) वे ( वायवे ) वायु के समान बलवान् वा प्राणवत् प्रिय, ( मनवे ) मननशील, ज्ञानयुक्त (बाधिताय ) पीड़ित प्रजाजन की रक्षा के लिये ( उषसं ) प्रभात वेला के समान कान्तियुक्त तेजस्विनी सेना को ( सूर्येण ) सूर्यवत् तेजस्वी नायक पुरुष के साथ ( अवासयन् ) रखते हैं । ( २ ) जो आदर विनय से वृद्ध अनिन्दिताचरणी विद्वान् पुरुष होते हैं वे बलवान् ( बाधिताय मनवे ) पीड़ित या खण्डित वंश वाले मनुष्य की वंशवृद्धि के लिये ( उषसं ) कामनायुक्त स्त्री को (सूर्येण ) पुत्रोत्पादन में समर्थ पुरुष के साथ और ( उषसं ) विद्यार्थी को सूर्यवत् विद्वान् गुरु के साथ ( अवासयन् ) सहयोग में रक्खें ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठ ऋषिः ॥ १, ३ वायुः । २, ४–७ इन्द्रवायू देवते। छन्दः—१, ४,७ विराट् त्रिष्टुप् । २, ५, ६ आर्षी त्रिष्टुप् ॥ ३ निचृत् त्रिष्टुप् ॥ सप्तर्चं सूक्तम् ॥
विषय
तेजस्वी सेनानायाक
पदार्थ
पदार्थ - (ये) = जो (नमसा) = शत्रु को नमानेवाले बल से (पुरा) = पहले (वृधासः) = बढ़ने हारे (अनवद्यासः) = अनिन्दिताचरणवाले, (देवा:) = धन, पुत्र आदि के अभिलाषी (आसन्) = रहते हैं (ते) = वे (वायवे) = वायु तुल्य बलवान् वा प्राणवत् प्रिय, (मनवे) = मननशील, (बाधिताय) = पीड़ित प्रजा की रक्षा के लिये (उषसं) प्रभात के समान तेजस्विनी सेना को (सूर्येण) = तेजस्वी नायक पुरुष के साथ (बाधिताय मनवे) = खण्डित वंशवाले मनुष्य की वंशवृद्धि के लिये (उषसं) = सन्तान की कामनायुक्त स्त्री को (सूर्येण) = पुत्रोत्पादन में समर्थ पुरुष के साथ (अवासयन्) = रखें।
भावार्थ
भावार्थ- राष्ट्र में तेजस्वी सेनानायक के नेतृत्व में तेजस्विनी सेना हो जो शत्रु को संग्रामों में झुका सके। प्रजा की रक्षा कर सके। प्रजाजन निर्भीकता के साथ सन्तान का पालन-पोषण कर सकें।
इंग्लिश (1)
Meaning
Often indeed the veteran scholars of old who were brilliant and admirable beyond reproach and question, working with reverence and dedication for the advancement of knowledge and for giving new inspiration and vibrant motivation to humanity in crisis, kindled the yajnic fire at dawn and ushered in a new era with the rise of the sun.
मराठी (1)
भावार्थ
जे लोक आळशी नाहीत व ज्ञानी आहेत ते उष:काली उठून आपल्या यज्ञ इत्यादी कर्माचा आरंभ करतात. मंत्रात भूतकाळाची जी क्रिया दिलेली आहे ती ‘व्यत्ययो बहुलम्’ या नियमानुसार वर्तमानकाळाची बोधिका आहे. त्यासाठी वेदाद्वारे इतर देवाच्या अस्तित्वाची शंका येथे येऊ शकत नाही. दुसरी युक्ती ही की ‘सूर्याचन्द्रमसौ धाता यथा पूर्वमकल्पयत’ ‘देवा भागं यथा पूर्वे सज्जानाना उपासते’ इत्यादी मंत्रांत पूर्वकाळाच्या देवांची सूचना जशी दिली गेलेली आहे. या प्रकारे वरील मंत्रातही आहे. त्यामुळे कोणता दोष नाही.
टिप्पणी
तात्पर्य हे आहे, की वैदिक सिद्धान्तात सृष्टी प्रवाह रूपाने अनादि आहे. त्यामुळे त्यात भूतकाळाचे वर्णन करणे हा दोष नाही. ॥१॥
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