ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 93/ मन्त्र 1
शुचिं॒ नु स्तोमं॒ नव॑जातम॒द्येन्द्रा॑ग्नी वृत्रहणा जु॒षेथा॑म् । उ॒भा हि वां॑ सु॒हवा॒ जोह॑वीमि॒ ता वाजं॑ स॒द्य उ॑श॒ते धेष्ठा॑ ॥
स्वर सहित पद पाठशुचि॑म् । नु । स्तोम॑म् । नव॑ऽजातम् । अ॒द्य । इन्द्रा॑ग्नी॒ इति॑ । वृ॒त्र॒ऽह॒ना॒ । जु॒षेथा॑म् । उ॒भा । हि । वा॒म् । सु॒ऽहवा॑ । जोह॑वीमि । ता । वाज॑म् । स॒द्यः । उ॒श॒ते । धेष्ठा॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
शुचिं नु स्तोमं नवजातमद्येन्द्राग्नी वृत्रहणा जुषेथाम् । उभा हि वां सुहवा जोहवीमि ता वाजं सद्य उशते धेष्ठा ॥
स्वर रहित पद पाठशुचिम् । नु । स्तोमम् । नवऽजातम् । अद्य । इन्द्राग्नी इति । वृत्रऽहना । जुषेथाम् । उभा । हि । वाम् । सुऽहवा । जोहवीमि । ता । वाजम् । सद्यः । उशते । धेष्ठा ॥ ७.९३.१
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 93; मन्त्र » 1
अष्टक » 5; अध्याय » 6; वर्ग » 15; मन्त्र » 1
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अष्टक » 5; अध्याय » 6; वर्ग » 15; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(इन्द्राग्नी) हे ज्ञानविज्ञानिनौ विद्वांसौ ! (वृत्रहणा) शत्रूणां हन्तारौ ! (अद्य) सम्प्रति भवन्तौ (नवजातम्) नूतनं (स्तोमम्) यज्ञं (जुषेथाम्) सेवेताम्, यदर्थं (उभा, हि, वाम्) द्वावपि युवां (सुहवा) सुखाहूतौ (जोहवीमि) भृशमाह्वयामि, अतः (ता) तौ भवन्तौ (शुचिम्) पवित्रमिमं यज्ञं (सद्यः) शीघ्रम् (उशते) इष्टमिच्छते यजमानाय (वाजम्) बलं (धेष्ठा) यच्छताम् ॥१॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(इन्द्राग्नी) हे ज्ञानी विज्ञानी विद्वानों ! आप अन्यायकारी (वृत्रहणा) शत्रुओं को हनन करनेवाले हैं, आप हमारे (नवजातम्) इस नवीन (स्तोमं) यज्ञ को (जुषेथां) सेवन करें, (हि) जिसलिये (उभा, हि, वां) तुम दोनों को (सुहवा) सुखपूर्वक बुलाने योग्य आपको (जोहवीमि) पुनः-पुनः मैं बुलाता हूँ, इसलिये (ता) आप दोनों (शुचिं) इस पवित्र यज्ञ को (सद्यः, उशते) कामनावाले यजमान के लिये शीघ्र ही (वाजं) बल के देनेवाला (घेष्ठा) धारण करायें ॥१॥
भावार्थ
परमात्मा उपदेश करते हैं कि हे विद्वानों ! आप यजमानों के यज्ञ को बल देनेवाला तथा कलाकौशल विद्याओं से शीघ्र ही फल का देनेवाला बनायें ॥१॥
विषय
इन्द्र-अग्नि माता-पितृवत् ऐश्वर्यवान् और ज्ञानीजनों के कर्त्तव्य ।
भावार्थ
जिस प्रकार (वृत्र-हणा ) विघ्ननाशक वा धन अन्नादि को प्राप्त करने वाले माता पिता ( नव-जातं शुचिं ) नये उत्पन्न उत्तम शुद्ध बालक को ( जुषेताम् ) प्रेम करते और ( श्रेष्ठा वाजं उशते दत्तः ) उसके पालक माता पिता बुभुक्षित को अन्न देते हैं उसी प्रकार हे ( इन्द्राग्नी ) इन्द्र ऐश्वर्यवन् और अग्निवत् तेजस्विन् अग्रणी नायको ! आप दोनों ( वृत्र-हणा ) अपने बढ़ते शत्रुओं का नाश करने वाले होकर ( शुचिम् ) शुद्ध पवित्र व्यवहार वाले ( नव-जातम् ) नये ही अपने अधीन प्राप्त, ( स्तोमं ) स्तुतियोग्य प्रजा के अधिकार ( अद्य ) आज के समान सदा ही ( जुषेताम् ) प्रेम और उत्साह से प्राप्त करें। (ता) वे दोनों ( धेष्ठा ) प्रजा तथा बलवान् सैन्य, सभादि के अधिकार को उत्तम रीति से धारण करने में समर्थ होकर ( सद्यः ) शीघ्र ही ( उशते ) कामना वाले जन को ( वाजं ) उसका अभिलषित धन, अन्न, बल, ज्ञान आदि प्रदान करें। ( उभाहि वां ) आप दोनों को ही मैं (सु हवा) सुख से, आदर पूजा सहित बुलाने योग्य सुगृहीतनामधेय ( जोहवीमि ) स्वीकार करता हूं, आप को आदरपूर्वक बुलाऊं, निमन्त्रित करूं । माता पिता दोनों ही इन्द्र और दोनों ही अग्नि हैं । वे सन्तान के बाधक कारणों को नाश करने वाले होने से ‘वृत्रहन्’ होकर नवजात शिशु को निर्दोष और स्तुत्य रूप से प्राप्त करते हैं ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठ ऋषिः ॥ इन्द्राग्नी देवते ।। छन्दः –१, ८ निचृत् त्रिष्टुप् । २,५ आर्षी त्रिष्टुप् । ३, ४, ६, ७ विराट् त्रिष्टुप् ॥ अष्टर्चं सूक्तम् ॥
विषय
माता-पिता के समान प्रजापालक राजा
पदार्थ
पदार्थ - जैसे (वृत्र-हणा) = विघ्ननाशन करनेवाले माता-पिता (नव-जातं शुचिं) = नये उत्पन्न उत्तम शुद्ध बालक को (जुषेताम्) = प्रेम करते और (धेष्ठा वाजं उशते दत्तः) = पालक माता-पिता बुभुक्षित को अन्न देते हैं वैसे ही हे (इन्द्राग्नी) = ऐश्वर्यवन् और तेजस्विन् अग्रणी नायको! आप दोनों (वृत्र-हणा) = बढ़ते शत्रुओं के नाशक होकर (शुचिम्) = पवित्र व्यवहारवाले (नवजातम्) = नये ही प्राप्त, (स्तोमं) = स्तुतियोग्य प्रजा के अधिकार (अद्य) = आज के समान सदा (जुषेताम्) = प्रेम और उत्साह से प्राप्त करें। (ता) = वे दोनों (धेष्ठा) = प्रजा, सैन्य, सभादि के अधिकार को उत्तम रीति से धारण करने में समर्थ होकर (सद्यः) = शीघ्र ही (उशते) = कामनावाले प्रजाजन को (वाजं) = अभिलषित धन, अन्न, बल, ज्ञान आदि दें। (उभाहि वां) = आप दोनों को ही मैं (सु हवा) = सुख से, आदर सहित बुलाने योग्य (जोहवीमि) = स्वीकार करता हूँ, आपको आदर से निमन्त्रित करूँ। माता-पिता दोनों ही इन्द्र और दोनों ही अग्नि हैं। वे सन्तान के बाधक कारणों का नाश करने से 'वृत्रहन्' हैं।
भावार्थ
भावार्थ- राष्ट्रनायक तथा सेनानायक दोनों तेजस्वी होकर प्रजा को ऐश्वर्य सम्पन्न बनाकर रक्षा करें। प्रजा के साथ प्रेमपूर्वक मधुर व्यवहार करें। उन्हें सुखी बनाने के लिए इच्छित धन, अन्न, बल व ज्ञान प्रदान करावें। और प्रजा का उत्तम रीति से पुत्रवत् पालन करें।
इंग्लिश (1)
Meaning
Indra and Agni, leaders of power and enlightenment, destroyers of darkness, ignorance, injustice and poverty, accept this song of purity newly created in your honour and come to our yajna session. I invoke you both, who, readily responsive to the call, instantly grant food, energy and success to the faithful devotee inspired for action.
मराठी (1)
भावार्थ
परमात्मा उपदेश करतो, की हे विद्वानांनो! तुम्ही यजमानाचा यज्ञ बल देणारा व कला कौशल्य इत्यादी विद्यांद्वारे शीघ्र फळ देणारा बनवा. ॥१॥
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