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ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 96 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 96/ मन्त्र 1
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - सरस्वती छन्दः - आर्चीत्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    बृ॒हदु॑ गायिषे॒ वचो॑ऽसु॒र्या॑ न॒दीना॑म् । सर॑स्वती॒मिन्म॑हया सुवृ॒क्तिभि॒: स्तोमै॑र्वसिष्ठ॒ रोद॑सी ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    बृ॒हत् । ऊँ॒ इति॑ । गा॒यि॒षे॒ । वचः॑ । अ॒सु॒र्या॑ । न॒दीना॑म् । सर॑स्वतीम् । इत् । म॒ह॒य॒ । सु॒ऽवृ॒क्तिऽभिः॑ । स्तोमैः॑ । व॒सि॒ष्ठ॒ । रोद॑सी॒ इति॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    बृहदु गायिषे वचोऽसुर्या नदीनाम् । सरस्वतीमिन्महया सुवृक्तिभि: स्तोमैर्वसिष्ठ रोदसी ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    बृहत् । ऊँ इति । गायिषे । वचः । असुर्या । नदीनाम् । सरस्वतीम् । इत् । महय । सुऽवृक्तिऽभिः । स्तोमैः । वसिष्ठ । रोदसी इति ॥ ७.९६.१

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 96; मन्त्र » 1
    अष्टक » 5; अध्याय » 6; वर्ग » 20; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथोक्तविद्यां नदीरूपेण वर्ण्यते।

    पदार्थः

    (नदीनाम्) नदीनां मध्ये याः फलपुष्पसम्पादिकाः तथा (असुर्य्या) बलवत्यः  ताः (वचः) वाणीः (वसिष्ठ) हे विद्वन् ! (गायिषे) स्तुहि (सुवृक्तिभिः) सुप्रयोगैः (रोदसी) द्युपृथ्वीलोकयोः (सरस्वतीम्) विद्याम् (इत्) एव (महय) वर्द्धय (स्तोमैः) यज्ञैश्च ॥१॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    अब उक्त विद्या को नदी का रूपक बोध कर वर्णन करते हैं।

    पदार्थ

    (नदीनां) नदियों में से जो प्रफुल्लित पुष्पित करनेवाली है और (असूर्य्या) बलवाली है, उस (वचः) वाणी को (वसिष्ठ) हे विद्वन् ! (गायिषे) तू गायन कर (बृहत्) और (रोदसी) द्यु और पृथ्वीलोक में (सरस्वतीं, इत्) सरस्वती विद्या की ही तुम लोग (महय) पूजा करो और वह पूजा (सुवृक्तिभिः) निर्दोष (स्तोमैः) यज्ञों से करो ॥१॥

    भावार्थ

    परमात्मा उपदेश करते हैं कि हे विद्वन् लोगों ! आपके लिये पूजायोग्य एकमात्र सरस्वती विद्या है, उसकी पूजा करनेवाला विद्वान् कदापि अवनति को प्राप्त नहीं होता, किन्तु सदैव अभ्युदय को प्राप्त होता है। तात्पर्य यह है कि सत्कर्तव्य एकमात्र परमात्मा का ज्ञान है, उसी का नाम (ब्रह्मविद्या) सरस्वती व ज्ञान है, क्योंकि विद्या, ज्ञान, सरस्वती ये तीनों पर्य्याय शब्द हैं। परमात्मा का ज्ञान तादात्म्यसम्बन्ध से परमात्मा में रहता है, इसलिये वह भी परमात्मा का रूप है, इसलिये यहाँ जड़ोपास्ति का दोष नहीं आता ॥१॥

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    विषय

    वेदवाणी सरस्वती का वर्णन ।

    भावार्थ

    हे ( वसिष्ठ ) उत्तम विद्वन् ! तू ( रोदसी ) भूमि और सूर्य दोनों में नायक और ( नदीनाम् असुर्या ) नदियों में अति बलवती नदी के समान समृद्ध प्रजाओं में सबसे बलशाली, प्रभु की ( वृहत् उ गायिषे ) बहुत बहुत स्तुति कर । और ( सुवृक्तिभिः ) स्तुति और ( स्तोमैः ) वेद के सूक्तों से और स्तुत्य यज्ञादि कर्मों में से ( सरस्वीम् इत् महय ) उस महाप्रवाह की, जो अनादि काल से सबको ज्ञान, शक्ति, प्राण सुख, ऐश्वर्य का प्रवाह संसार में बहा रहा है ( महय ) पूजा कर ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वसिष्ठ ऋषिः॥ १—३ सरस्वती। ४—६ सरस्वान् देवता॥ छन्द:—१ आर्ची भुरिग् बृहती। ३ निचृत् पंक्तिः। ४, ५ निचृद्गायत्री। ६ आर्षी गायत्री॥

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    विषय

    ईश्वर की स्तुति वेद के सूक्तों से करें

    पदार्थ

    पदार्थ- हे (वसिष्ठ) = विद्वन् ! तू (रोदसी) = भूमि और सूर्य दोनों में नायक और (नदीनाम् असुर्या) = नदियों में बलवती नदी के तुल्य समृद्ध प्रजाओं में बलशाली, प्रभु की (वृहत् उ गायिषे) = बहुत स्तुति कर । (सुवृक्तिभिः) = स्तुति, (स्तोमैः) = वेद-सूक्तों और यज्ञादि से (सरस्वतीम् इत् महय) = जो अनादि काल से ज्ञान, सुख, ऐश्वर्य का प्रवाह बहा रहा है उसे (महय) = पूज।

    भावार्थ

    भावार्थ- विद्वान् पुरुष ईश्वर की स्तुति व यज्ञादि कार्य अनादिकाल से चली आ रही वेदवाणी के सूक्तों से किया करे। इससे ज्ञान, सुख और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    O brilliant sage, sing and celebrate in lofty song Sarasvati, most powerful stream of heaven and earth among streams of life, glorify her in holy poems by homage and reverence in yajnas.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमात्मा उपदेश करतो की, हे विद्वान लोकांनो! तुम्ही पूजा करावी अशी एकमेव सरस्वती विद्या आहे. तिची पूजा करणाऱ्या विद्वानाची कधीही अवनती होत नाही, तर सदैव अभ्युदय होतो. तात्पर्य हे, की सत्कर्तव्य एकमात्र परमात्म्याचे ज्ञान होय. त्याचेच नाव ब्रह्मविद्या सरस्वती व ज्ञान आहे. कारण विद्या, ज्ञान, सरस्वती हे तीनही शब्द पर्याय आहेत. परमात्म्याचे ज्ञान तादाम्यसंबंधाने परमात्म्यातच राहते. त्यासाठी तेही परमात्म्याचे रूप आहे. त्यामुळे जडोपासनेचा दोष येत नाही. ॥१॥

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