ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 42/ मन्त्र 1
अस्त॑भ्ना॒द्द्यामसु॑रो वि॒श्ववे॑दा॒ अमि॑मीत वरि॒माणं॑ पृथि॒व्याः । आसी॑द॒द्विश्वा॒ भुव॑नानि स॒म्राड्विश्वेत्तानि॒ वरु॑णस्य व्र॒तानि॑ ॥
स्वर सहित पद पाठअस्त॑भ्नात् । द्याम् । असु॑रः । वि॒श्वऽवे॑दाः । अमि॑मीत । व॒रि॒माण॑म् । पृ॒थि॒व्याः । आ । अ॒सी॒द॒त् । विश्वा॑ । भुव॑नानि । स॒म्ऽराट् । विश्वा॑ । इत् । तानि॑ । वरु॑णस्य । व्र॒तानि॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
अस्तभ्नाद्द्यामसुरो विश्ववेदा अमिमीत वरिमाणं पृथिव्याः । आसीदद्विश्वा भुवनानि सम्राड्विश्वेत्तानि वरुणस्य व्रतानि ॥
स्वर रहित पद पाठअस्तभ्नात् । द्याम् । असुरः । विश्वऽवेदाः । अमिमीत । वरिमाणम् । पृथिव्याः । आ । असीदत् । विश्वा । भुवनानि । सम्ऽराट् । विश्वा । इत् । तानि । वरुणस्य । व्रतानि ॥ ८.४२.१
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 42; मन्त्र » 1
अष्टक » 6; अध्याय » 3; वर्ग » 28; मन्त्र » 1
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अष्टक » 6; अध्याय » 3; वर्ग » 28; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
इंग्लिश (1)
Meaning
Varuna, lord of light and energy, omniscient and omnipotent ruler of the universe, makes and sustains the heaven of light and the wide earth. The glorious lord and ruler rules all regions of the universe and they all observe the laws of Varuna, infinite they are, beyond description.
मराठी (1)
भावार्थ
परमेश्वराने हे सर्व लोक (गोल) बनविलेले आहेत. तोच त्यांचा आधार आहे. त्याचीच पूजा करा. ॥१॥
संस्कृत (1)
विषयः
N/A
पदार्थः
असुरः=असून् प्राणान् राति ददातीत्यसुरः । विश्ववेदाः=विश्वानि सर्वाणि वेदांसि धनानि ज्ञानानि वा यस्य स विश्ववेदाः । वरुणः द्याम् । अस्तभ्नात्=स्तम्भवत् धारयति । पुनः पृथिव्याः । वरिमाणं परिमाणम् । अमिमीत=विरचयति । पुनः विश्वा=विश्वानि=सर्वाणि भुवनानि सृष्ट्वा । आसीदत्=अधितिष्ठति । तथा तेषां सम्राडपि स एव । हे मनुष्याः ! वरुणस्य । तान्येतानि व्रतानि । विश्वा+इत्=विश्वान्येव । सर्वाणि तस्यैव कार्य्याणीति ज्ञात्वा तमेव गायत पूजयत ॥१ ॥
हिन्दी (3)
विषय
N/A
पदार्थ
(असुरः) सबमें प्राण देनेवाला (विश्ववेदाः) सर्व धन और सर्व ज्ञानमय वह वरुण-वाच्य जगदीश्वर (द्याम्) पृथिवी से ऊपर समस्त जगत् को (अस्तभ्नात्) स्तम्भ के समान पकड़े हुए विद्यमान है, पुनः (पृथिव्याः+वरिमाणम्) पृथिवी के परिमाण को (अमिमीत) जो बनाता है और जो (विश्वा+भुवनानि) सम्पूर्ण भुवनों को बनाकर (आसीदत्) उन पर अधिकार रखता है (सम्राड्) वही सबका महाराज है । हे मनुष्यों ! (वरुणस्य) वरणीय परमात्मा के (व्रतानि) कर्म (तानि) वे ये (विश्वा+इत्) सब ही हैं । कहाँ तक उसका वर्णन किया जाए, इसकी यह शक्ति जानकर इसी को गाओ और पूजो ॥१ ॥
विषय
वरुण परमेश्वर का वर्णन।
भावार्थ
( असुरः ) बलवान् ( विश्व-वेदाः ) समस्त ज्ञानों का भण्डार परमेश्वर ( द्याम् अस्तभ्नात् ) आकाशस्थ तेजोमय पिण्डों को थामे रहता है, वह ही ( पृथिव्याः परिमाणं ) पृथिवी के बड़े भारी परिमाणको (अमिमीत) मापता है, ( सम्राड् विश्वा भुवना ) सबका प्रकाशक परमेश्वर समस्त लोकों पर ( आसीदत् ) अध्यक्ष शासकवत् विराजता है। ( विश्वा इत् व्रतानि ) ये समस्त कार्य और नियम व्यवस्थाएं ( वरुणस्य इत् ) उस सर्वश्रेष्ठ स्वामी, सबसे वरण करने योग्य प्रभु परमेश्वर की ही हैं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
नाभाक: काण्वोऽर्चनाना वा। अथवा १ – ३ नाभाकः काण्वः। ४–६ नाभाकः काण्वोऽर्चनाना वा ऋषयः॥ १—३ वरुणः। ४—६ अश्विनौ देवते। छन्दः—१—३ त्रिष्टुप्। ४—६ अनुष्टुप्॥ षडृचं सूक्तम्॥
विषय
'धर्ता-निर्माता - अधिष्ठाता' प्रभु
पदार्थ
[१] (असुर:) = सर्वत्र प्राणशक्ति का संचार करनेवाला, (विश्ववेदाः) = सम्पूर्ण धनोंवाला प्रभु (द्याम्) = द्युलोक को (अस्तभ्नात्) = थामता है- आकाशस्थ सब लोक-लोकान्तरों के प्रभु स्वामी हैं। [२] वे वरुण प्रभु ही (पृथिव्याः) = इस विशाल अन्तरिक्ष के व पृथिवीलोक के (वरिमाणं) = विस्तार को (अमिमीत) = बनाते हैं। वे (सम्राट्) = सारे ब्रह्माण्ड के शासक प्रभु (विश्वा भुवनानि) = सब लोकों के (आसीदत्) = अधिष्ठाता हैं। (तानि) = वे लोक-लोकान्तरों के धारण-निर्माण व अधिष्ठातृत्व आदि (विश्वा इत्) = सब ही (व्रतानि) = कर्म (वरुणस्य) = उस पापनिवारक प्रभु के ही हैं।
भावार्थ
भावार्थ- द्युलोक को प्रभु थामते हैं, पृथिवी के विस्तार का निर्माण करते हैं और सब लोकों के अधिष्ठाता हैं। ये सब काम उस प्रभु के ही हैं।
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