ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 62/ मन्त्र 1
प्रो अ॑स्मा॒ उप॑स्तुतिं॒ भर॑ता॒ यज्जुजो॑षति । उ॒क्थैरिन्द्र॑स्य॒ माहि॑नं॒ वयो॑ वर्धन्ति सो॒मिनो॑ भ॒द्रा इन्द्र॑स्य रा॒तय॑: ॥
स्वर सहित पद पाठप्रो इति॑ । अ॒स्मै॒ । उप॑ऽस्तुति॑म् । भर॑त । यत् । जुजो॑षति । उ॒क्थैः । इन्द्र॑स्य । माहि॑नम् । वयः॑ । व॒र्ध॒न्ति॒ । सो॒मिनः॑ । भ॒द्राः । इन्द्र॑स्य । रा॒तयः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
प्रो अस्मा उपस्तुतिं भरता यज्जुजोषति । उक्थैरिन्द्रस्य माहिनं वयो वर्धन्ति सोमिनो भद्रा इन्द्रस्य रातय: ॥
स्वर रहित पद पाठप्रो इति । अस्मै । उपऽस्तुतिम् । भरत । यत् । जुजोषति । उक्थैः । इन्द्रस्य । माहिनम् । वयः । वर्धन्ति । सोमिनः । भद्राः । इन्द्रस्य । रातयः ॥ ८.६२.१
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 62; मन्त्र » 1
अष्टक » 6; अध्याय » 4; वर्ग » 40; मन्त्र » 1
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अष्टक » 6; अध्याय » 4; वर्ग » 40; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
इंग्लिश (1)
Meaning
O celebrants, sing aloud and send up your prayers to Indra who listens and loves them. The soma yajis with songs of praise exalt the great glory and magnificence of Indra. Great and good are the gifts of Indra.
मराठी (1)
भावार्थ
ईश्वर मंगलमय आहे. त्याचे सर्व कार्य मंगलमयच आहे. विद्वान वर्गच त्याचा परम महिमा दर्शवीत आहेत. त्यासाठी हे माणसांनो! त्याच्या आज्ञेत सदैव राहा ॥१०॥
टिप्पणी
वि.-‘भद्रां’, ‘इन्द्रस्य’, ‘रातय:’ या पदाची आवृत्ती संपूर्ण सूक्तात आहे.
संस्कृत (1)
विषयः
पुनरपि परमात्मनः स्तुतिमारभते ।
पदार्थः
हे मनुष्याः ! अस्मै=परमात्मवाचिने इन्द्राय । उपस्तुतिम् । प्रो भरत=प्रकर्षेण कुरुत । यद्=यश्चेन्द्रस्तां श्रुत्वा । जुजोषति=प्रसीदति । हे जन्तवः ! सोमिनः= सम्पूर्णजगदुत्पादकस्य इन्द्रस्य । माहिनं+वयः= महत्त्वप्रतिपादकं सामर्थ्यम् । अन्ये विद्वांसः । वर्धन्ति=वर्धयन्ति । यत इन्द्रस्य । रातयः=दानानि । भद्राः=मङ्गलमय्यः सन्ति ॥१ ॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर भी परमात्मा की स्तुति कहते हैं ।
पदार्थ
हे मनुष्यों ! (अस्मै) इस परमात्म-वाची इन्द्र के लिये (उपस्तुतिम्) उत्तमोत्तम स्तुति (प्रो+भरत) गान कीजिये, क्योंकि (यत्) जो इन्द्र भक्तजनों की प्रार्थना और स्तुति सुनकर (जुजोषति) अति प्रसन्न होता है । हे मनुष्यों ! (सोमिनः) सम्पूर्ण जगदुत्पादक (इन्द्रस्य) इन्द्रवाच्य ईश्वर का (माहिनम्) महत्त्वसूचक (वयः) सामर्थ्य (वर्धन्ति) सब विद्वान् बढ़ा रहे हैं अर्थात् दिखला रहे हैं, क्योंकि (इन्द्रस्य+रातयः) उस इन्द्र के दान (भद्राः) मङ्गलविधायक हैं ॥१ ॥
भावार्थ
ईश्वर मङ्गलमय है, उसके सब कार्य ही मङ्गलविधायक हैं । विद्वद्वर्ग भी उसकी परम महिमा को दिखला रहे हैं । अतः हे मनुष्यों ! उसकी आज्ञा में सदा निवास करो ॥१ ॥
टिप्पणी
भद्रा, इन्द्रस्य, रातयः इतने पदों की आवृत्ति सम्पूर्ण सूक्त में है ।
विषय
ईश्वर की स्तुति। प्रभु के मङ्गलकारी दान।
भावार्थ
( यत् जुजोषति ) जो प्रेमपूर्वक स्वीकार करता है (अस्मै ) उसकी ( उप स्तुतिं प्र भरत ) उत्तम स्तुति करो। ( सोमिनः ) वीर्यं पालन करने वाले ब्रह्मचारी लोग ही ( उक्थैः ) उत्तम वचनों द्वारा (इन्द्रस्य) ऐश्वर्यवान्, तत्वदर्शी स्वामी के ( माहिनं वयः वर्धन्ति ) बड़े भारी बल को बढ़ा देते हैं। ( इन्द्रस्य रातयः भद्राः ) उस परमेश्वर के दिये सब दान सुखकारी और कल्याणमय होते हैं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
प्रगाथः काण्व ऋषिः॥ इन्द्रो देवता॥ छन्दः—१, ३, ६, १०, ११ निचृत् पंक्ति:। २, ५ विराट् पंक्तिः। ४, १२ पंक्तिः। ७ निचृद् बृहती। ८, ९ बृहती॥ द्वादशर्चं सूक्तम्॥
विषय
माहिनं वयः
पदार्थ
[१] (अस्मै) = इस प्रभु के लिए (उपस्तुतिं) = उपासनापूर्वक की जानेवाली स्तुति को (उ) = निश्चय से (प्रभरतः) = प्रकर्षेण सम्पादित करो। (यत्) = जिसे (जुजोषति) = प्रभु प्रीतिपूर्वक ग्रहण करते हैं। जो स्तुति हमें प्रभु का प्रिय बनाती है। [२] (सोमिनः) = सोम की रक्षण करनेवाले पुरुष (इन्द्रस्य उक्थैः) = प्रभु के स्तोत्रों के द्वारा (माहिनं) = प्रभुपूजा से युक्त (वयः) = शक्ति को (वर्धन्ति) = बढाते हैं। (इन्द्रस्य) = उस परमैश्वर्यशाली प्रभु के (रातयः) = दान (भद्राः) = कल्याणकर हैं।
भावार्थ
भावार्थ- प्रभु का स्तवन हमें प्रभु का प्रिय बनाता है। प्रभुस्तवन से सोमरक्षण द्वारा शक्ति का वर्धन होता है। प्रभु के दान कल्याणकर हैं।
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