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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 67 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 67/ मन्त्र 1
    ऋषिः - मत्स्यः साम्मदो मान्यो वा मैत्रावरुणिर्बहवो वा मत्स्या जालनध्दाः देवता - आदित्याः छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    त्यान्नु क्ष॒त्रियाँ॒ अव॑ आदि॒त्यान्या॑चिषामहे । सु॒मृ॒ळी॒काँ अ॒भिष्ट॑ये ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    त्यान् । नु । क्ष॒त्रिया॑न् । अवः॑ । आ॒दि॒त्यान् । या॒चि॒षा॒म॒हे॒ । सु॒ऽमृ॒ळी॒कान् । अ॒भिष्ट॑ये ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    त्यान्नु क्षत्रियाँ अव आदित्यान्याचिषामहे । सुमृळीकाँ अभिष्टये ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    त्यान् । नु । क्षत्रियान् । अवः । आदित्यान् । याचिषामहे । सुऽमृळीकान् । अभिष्टये ॥ ८.६७.१

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 67; मन्त्र » 1
    अष्टक » 6; अध्याय » 4; वर्ग » 51; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    इंग्लिश (1)

    Meaning

    For the sake of protection and to achieve our cherished objects, we call upon the Kshatriyas, warriors of the nation, bright as children of light and firm as children of Infinity, providers of peace, happiness and security.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात रक्षक व रक्ष्य (रक्षण करण्यायोग्य) यांच्या कर्तव्याचे वर्णन आहे. सर्व प्रकारे रक्षक सुखकारक व्हावा व रक्ष्याने त्यांच्याकडून रक्षण करून घ्यावे. त्यासाठी परस्पर प्रेम व कर-वेतन इत्यादीची सुव्यवस्था असली पाहिजे. ॥१॥

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    N/A

    पदार्थः

    अभिष्टये=अभिमतफलप्राप्तये । वयं प्रजाजनाः । समृळीकान्=सुखप्रदान् । आदित्यान्=सूर्य्यवत् प्रकाशमानान् । त्यान्+नु=तान् खलु । क्षत्रियान्=बलिष्ठान् न्यायपरायणान् । अवः=रक्षणम् । याचिषामहे=याचामहे ॥१ ॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    N/A

    पदार्थ

    (अभिष्टये) अभिगत फलों की प्राप्ति के लिये हम प्रजागण (तान्+नु+क्षत्रियान्) उन सुप्रसिद्ध न्यायपरायण बलिष्ठ वीर पुरुषों के निकट (अवः) रक्षा की (याचिषामहे) याचना करते हैं, जो (आदित्यान्) सूर्य्य के समान तेजस्वी प्रतापी और अज्ञानान्ध निवारक हैं और (सुमृळीकान्) जो प्रजाओं आश्रितों और असमर्थों को सुख पहुँचानेवाले हैं ॥१ ॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में रक्षकों और रक्ष्यों के कर्त्तव्य का वर्णन करते हैं । सर्व प्रकार से रक्षक सुखप्रद हों और रक्ष्य उनसे सदा अपनी रक्षा करावें, इसके लिये परस्पर प्रेम और कर वेतन आदि की सुव्यवस्था होनी चाहिये ॥१ ॥

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    विषय

    आदित्य सदृश तेजस्वी, धनवान् बलशाली लोगों के कर्त्तव्य।

    भावार्थ

    हम (तान्) उन (क्षत्रियान्) धनवान् और बलशाली (सुमृडीकान् ) उत्तम सुखप्रद, (आदित्यान्) किरणों वा बारह मासों के समान तेजस्वी दान, कर आदि लेने वाले, विद्वानों और क्षत्रियों को ( अभिष्टये ) अपने अभीष्ट सुख को प्राप्त करने के लिये ( अवः याचिषामहे ) विनय पूर्वक धन, ज्ञानादि की याचना करें।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    मत्स्यः सांमदो मान्यो वा मैत्रावरुणिर्बहवो वा मत्स्या जालनद्धा ऋषयः॥ आदित्या देवताः। छन्दः—१—३, ५, ७, ९, १३—१५, २१ निचृद् गायत्री। ४, १० विराड् गायत्री। ६, ८, ११, १२, १६—२० गायत्री॥

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    विषय

    आदित्यों द्वारा रक्षण

    पदार्थ

    [१] अपने जीवन में ऊँचे-से-ऊँचे ज्ञान का आदान करनेवाले 'आदित्य' कहलाते हैं। ये आदित्य क्षतों से त्राण करनेवाले होते हुए 'क्षत्रिय' कहे जाते हैं। (नु) = अब (त्यान्) = उन (आदित्यान्) = ज्ञान का आदान करनेवाले (क्षत्रियान्) = बलसम्पन्न पुरुषों से हम (अव याचिषामहे) = रक्षण की याचना करते हैं। ये आदित्य क्षत्रिय सब क्षतों से हमें बचानेवाले हों। [२] (सुमृडीकान्) = उत्तम सुख को प्राप्त करनेवाले इन आदित्यों को (अभिष्टये) = इष्ट प्राप्ति के लिए हम प्रार्थना करते हैं।

    भावार्थ

    भावार्थ- आदित्य विद्वानों का सम्पर्क हमें रक्षण व सुख प्राप्त कराता है।

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