ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 10/ मन्त्र 1
ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - निचृद्गायत्री
स्वरः - षड्जः
प्र स्वा॒नासो॒ रथा॑ इ॒वार्व॑न्तो॒ न श्र॑व॒स्यव॑: । सोमा॑सो रा॒ये अ॑क्रमुः ॥
स्वर सहित पद पाठप्र । स्वा॒नासः॑ । रथाः॑ऽइव । अर्व॑न्तः । न । श्र॒व॒स्यवः॑ । सोमा॑सः । रा॒ये । अ॒क्र॒मुः॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
प्र स्वानासो रथा इवार्वन्तो न श्रवस्यव: । सोमासो राये अक्रमुः ॥
स्वर रहित पद पाठप्र । स्वानासः । रथाःऽइव । अर्वन्तः । न । श्रवस्यवः । सोमासः । राये । अक्रमुः ॥ ९.१०.१
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 10; मन्त्र » 1
अष्टक » 6; अध्याय » 7; वर्ग » 34; मन्त्र » 1
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अष्टक » 6; अध्याय » 7; वर्ग » 34; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथ पूर्वोक्तः परमात्मा यज्ञत्वेन वर्ण्यते।
पदार्थः
(सोमासः) चराचरजगदुत्पादकः स परमात्मा (राये) ऐश्वर्याय (अक्रमुः) शश्वदुद्यतोऽस्ति (रथाः, इव) शीघ्रतरगामिविद्युदादिवत् (प्रस्वानासः) यः प्रसिद्धः (अर्वन्तः) गतिशीला राजानः (न) इव (श्रवस्यवः) ऐश्वर्यं दातुं सदोद्यतः अस्ति ॥१॥
हिन्दी (3)
विषय
अब उक्त परमात्मा को यज्ञरूप से वर्णन करते हैं।
पदार्थ
(सोमासः) चराचर संसार का उत्पादक उक्त परमात्मा (राये) ऐश्वर्य के लिये (अक्रमुः) सदा उद्यत है (रथाः, इव) अति शीघ्र गति करनेवाले विद्युदादि के समान (प्रस्वानासः) जो प्रसिद्ध है और जो (अर्वन्तः, न) गतिशील राजाओं के समान (श्रवस्यवः) ऐश्वर्य देने को सदा उद्यत है ॥१॥
भावार्थ
जिस प्रकार बिजली की जागृतिशील ध्वनि से सब पुरुष जाग्रत हो जाते हैं, इस प्रकार परमात्मा के शब्द से सब लोग उद्बुद्ध हो जाते हैं, अर्थात् परमात्मा नाना प्रकार के शब्दों से पुरुषों को उद्बोधन करता है और जिस प्रकार न्यायशील राजा अपनी प्रजा को ऐश्वर्य प्रदान करता है, इसी प्रकार वह सत्कर्मी पुरुषों को सदैव ऐश्वर्य प्रदान करता है ॥१॥
विषय
रथों की तरह या घोड़ों की तरह
पदार्थ
[१] (सोमासः) = शरीर में सुरक्षित हुए हुए सोम (प्र स्वानासः) = प्रकृष्ट शब्दोंवाले (रथाः इव) = रथों के समान होते हैं, 'रथ' यात्रा की पूर्ति का साधन होता है। ये सोम भी यात्रा पूर्ति का प्रमुख साधन बनते हैं। गतिमय रथ में ध्वनि होती है, इन सोमों के सुरक्षित होने पर मनुष्य प्रभु के सूक्तों का उच्चारण करता है। [२] ये सोम (अर्वन्तः न) = घोड़ों के समान (श्रवस्यवः) = यश की कामनावाले होते हैं। घोड़े बाह्य शत्रुओं को विजित करने में सहायक होते हैं शत्रु विजय से वे हमें यशस्वी बनाते हैं। सुरक्षित सोम अन्तः शत्रुओं को पराजित करके हमें यशस्वी बनाता है। ये सुरक्षित (सोमासः) = सोम (राये) = हमारे ऐश्वर्य के लिये (अक्रमुः) = गतिवाले होते हैं। इनके द्वारा हमारे ऐश्वर्य का वर्धन ही वर्धन होता है ।
भावार्थ
भावार्थ- हम सोम का रक्षण करें। ये हमें जीवनयात्रा की पूर्ति में रथ का काम देंगे, युद्ध में विजय के लिये ये घोड़ों के समान होंगे तथा हमारे ऐश्वर्य के वर्धन का साधन बनेंगे।
विषय
पवमान सोम। स्नातकों और नवाभिषिक्त शासकों को उपदेश।
भावार्थ
(रथाः इव) वेगवान् रथों और (अर्वन्तः न) अश्वों के समान (स्वानासः) अधिक स्वन अर्थात् ध्वनि करते हुए (श्रवस्यवः) ज्ञान श्रवण के उत्सुक (सोमासः) विद्यार्थी और (श्रवस्यवः सोमासः) यश के इच्छुक पदाभिषिक्त जन (राये प्र अक्रमुः) ऐश्वर्य प्राप्त करने के लिये कदम बढ़ावें। इसी प्रकार विद्यार्थी जन स्नातक हो जावें, तब वे (राये) ज्ञान-प्रदान और धनोपार्जन के लिये अगला कदम उठावें, स्वयं विद्या-निष्णांत होकर अन्यों को ज्ञान प्रदान करें।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
असितः काश्यपो देवलो वा ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्दः- १, २, ६, ८ निचृद् गायत्री। ३, ५, ७, ९ गायत्री। ४ भुरिग्गायत्री॥ नवर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
The seekers of soma in search of food for body, mind and soul rush on like resounding charioteers and warriors of horse, and go forward for the achievement of life’s wealth.
मराठी (1)
भावार्थ
ज्या प्रकारे विद्युतच्या गर्जनेने सर्व माणसे जागृत होतात. या प्रकारे परमेश्वराच्या शब्दाने (वेद) सर्व लोक उद्बुद्ध होतात. अर्थात तो नाना प्रकारच्या शब्दांनी माणसांना उद्बोधन करतो व ज्या प्रकारे न्यायी राजा आपल्या प्रजेला ऐश्वर्य प्रदान करतो त्याच प्रकारे तो सत्कर्मी लोकांना सदैव ऐश्वर्य प्रदान करतो. ॥१॥
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