ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 101/ मन्त्र 1
ऋषिः - अन्धीगुः श्यावाश्विः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - निचृदनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
पु॒रोजि॑ती वो॒ अन्ध॑सः सु॒ताय॑ मादयि॒त्नवे॑ । अप॒ श्वानं॑ श्नथिष्टन॒ सखा॑यो दीर्घजि॒ह्व्य॑म् ॥
स्वर सहित पद पाठपु॒रःऽजि॑ती । वः॒ । अन्ध॑सः । सु॒ताय॑ । मा॒द॒यि॒त्नवे॑ । अप॑ । श्वान॑म् । श्न॒थि॒ष्ट॒न॒ । सखा॑यः । दी॒र्घ॒ऽजि॒ह्व्य॑म् ॥
स्वर रहित मन्त्र
पुरोजिती वो अन्धसः सुताय मादयित्नवे । अप श्वानं श्नथिष्टन सखायो दीर्घजिह्व्यम् ॥
स्वर रहित पद पाठपुरःऽजिती । वः । अन्धसः । सुताय । मादयित्नवे । अप । श्वानम् । श्नथिष्टन । सखायः । दीर्घऽजिह्व्यम् ॥ ९.१०१.१
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 101; मन्त्र » 1
अष्टक » 7; अध्याय » 5; वर्ग » 1; मन्त्र » 1
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अष्टक » 7; अध्याय » 5; वर्ग » 1; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथ परमात्मनो गुणगुणिभावेन उपासनमुपदिश्यते।
पदार्थः
(सखायः) हे याज्ञिकाः ! (पुरोजिती) सर्वस्य जेता (अन्धसः) सर्वप्रियः (वः सुताय मादयित्नवे) युष्माकं संस्कृत आह्लादको यः परमात्मा तत्स्वरूपज्ञाने यः (श्वानम्) विघ्नकारी तं (अप श्नथिष्टन) निवारयत (दीर्घजिह्व्यम्) वेदमयविशालवाग्वतः परमात्मन उपासनां कुरुत यूयम् ॥१॥
हिन्दी (3)
विषय
अब परमात्मा के गुणों द्वारा उसकी उपासना कथन करते हैं।
पदार्थ
(सखायः) हे याज्ञिकों ! (वः) आप लोग (पुरोजिती) जो सबके विजेता हैं, (अन्धसः) सर्वप्रिय (सुताय) संस्कृत (मादयित्नवे) आह्लादक परमात्मा के स्वरूपज्ञान में (श्वानम्) जो विघ्नकारी लोग हैं, उनको (अपश्नथिष्टन) दूर करें। आप (दीर्घजिह्व्यम्) वेदरूप विशाल वाणीवाले परमात्मा की उपासना करो “जिह्वेति वाङ्नामसु पठितम्” नि. २। खं.। २३ ॥१॥
भावार्थ
परमात्मा शब्दब्रह्म का एकमात्र कारण है, इसलिये मुख्यतः करके उसी को बृहस्पति वा वाचस्पति कहा जा सकता है, इसी अभिप्राय से परमात्मा के लिये बहुधा कवि शब्द आया है, इस तात्पर्य से यहाँ परमात्मा को दीर्घजिह्व्य कहा है ॥१॥
विषय
पवमान सोम। आत्मा की उन्नति के लिये त्याज्य लोभी पुरुष का त्याग और तृष्णालु चित्त का दमन।
भावार्थ
हे (सखायः) मित्रजनो ! (वः) आप लोग अपने में से (पुरः-जीती) शत्रु के नगरों, गढ़ों को जीतने वाले (अन्धसः) प्राण को धारण करने वाले आत्मा के तुल्य वीर पुरुष के (मादयित्नवे) सब को प्रसन्न करने वाले (सुताय) अभिषेक के लिये, (दीर्घजिह्वयम्) लम्बी लम्बी बातें करने वाले (श्वानम्) कुत्ते के समान केवल पेट भरने वाले लोभी जन को (अप श्नथिष्टन) दूर करो। (२) इसी प्रकार पुर-देह पर विजय करने वाले आत्मा के हर्षप्रद (सुताय) परम रस आत्मानन्द को प्राप्त करने के लिये लम्बी जीभ वाले कुत्ते के तुल्य लोभपर, तृष्णालु चित्त का दमन करो।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः–१-३ अन्धीगुः श्यावाश्विः। ४—६ ययातिर्नाहुषः। ७-९ नहुषो मानवः। १०-१२ मनुः सांवरणः। १३–१६ प्रजापतिः। पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:- १, ६, ७, ९, ११—१४ निचृदनुष्टुप्। ४, ५, ८, १५, १६ अनुष्टुप्। १० पादनिचृदनुष्टुप्। २ निचृद् गायत्री। ३ विराड् गायत्री॥ षोडशर्चं सूक्तम्॥
विषय
दीर्घजिह्वयम् श्वा अपश्रथन
पदार्थ
हे (सखायः) = मित्रो! (वः) = तुम्हारे लिये (पुर: जिती) = असुर पुरियों का विजय करनेवाले (अन्धसः) = उत्पन्न रस के लिये (दीर्घजिह्वयं) = इस दीर्घ जिह्वा वाले (श्वानम्) = स्वयं लोभ रूप कुत्ते को (अपश्रथिष्टन) = दूर हिंसित करो, स्वाद का लोभ ही यहाँ 'दीर्घजिह्वयं श्वानं' इस शब्द से कहा गया है । स्वाद के वशीभूत हो जाने पर सोम के रक्षण का सम्भव नहीं रहता। यदि स्वाद को जीतकर हम सोम के रक्षण के लिये यत्नशील होंगे तो यह रक्षित सोम हमारे लिये आसुर भावों का पराजय करनेवाला होगा। इन आसुरभावों के विनाश से हमारा जीवन उल्लासमय होगा ।
भावार्थ
भावार्थ- स्वादेन्द्रिय को जीते बिना सोम के रक्षण का सम्भव नहीं होता। सुरक्षित सोम आसुरभावों का विनाशक होता है ।
इंग्लिश (1)
Meaning
O friends, for your attainment of the purified and exhilarating Soma bliss of existence, eliminate vociferous disturbances of the mind and concentrate on the deep resounding voice of divinity.
मराठी (1)
भावार्थ
परमेश्वर शब्दब्रह्माचे एकमेव कारण आहे. त्यासाठी मुख्यत्वे त्यालाच बृहस्पती किंवा वाचस्पती म्हटले जाऊ शकते. याच अभिप्रायाने परमात्म्यासाठी बहुतेक कवी शब्द आलेला आहे. या तात्पर्याने येथे परमात्म्याला दीर्घजिह्व्य म्हटलेले आहे. ॥१॥
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