ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 102/ मन्त्र 1
क्रा॒णा शिशु॑र्म॒हीनां॑ हि॒न्वन्नृ॒तस्य॒ दीधि॑तिम् । विश्वा॒ परि॑ प्रि॒या भु॑व॒दध॑ द्वि॒ता ॥
स्वर सहित पद पाठक्रा॒णा । शिशुः॑ । म॒हीना॑म् । हि॒न्वन् । ऋ॒तस्य॑ । दीधि॑तिम् । विश्वा॑ । परि॑ । प्रि॒या । भु॒व॒त् । अध॑ । द्वि॒ता ॥
स्वर रहित मन्त्र
क्राणा शिशुर्महीनां हिन्वन्नृतस्य दीधितिम् । विश्वा परि प्रिया भुवदध द्विता ॥
स्वर रहित पद पाठक्राणा । शिशुः । महीनाम् । हिन्वन् । ऋतस्य । दीधितिम् । विश्वा । परि । प्रिया । भुवत् । अध । द्विता ॥ ९.१०२.१
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 102; मन्त्र » 1
अष्टक » 7; अध्याय » 5; वर्ग » 4; मन्त्र » 1
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अष्टक » 7; अध्याय » 5; वर्ग » 4; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथ परमात्मनो गुणगुणिभावेन उपासनमुपदिश्यते। (अथ प्रकृतेर्जीवस्य च द्वैतं वर्ण्यते)
पदार्थः
(शिशुः) प्रशस्यः स परमात्मा (महीनाम्) महतः पृथिव्यादिलोकान् (क्राणा) रचयन् (ऋतस्य) सत्यतायाः (दीधितिम्) प्रकाशं (हिन्वन्) प्रेरयति अथ च (विश्वा परि) सर्वजनेषु (प्रिया) प्रियत्वं (भुवत्) प्रकटयति (अध) अथ (द्विता) द्वैतभावेन जीवेन प्रकृत्या च लोकं रक्षति ॥१॥
हिन्दी (3)
विषय
अब परमात्मा के गुणों द्वारा उसकी उपासना कथन करते हैं। अब प्रकृति और जीवरूप से द्वैत का वर्णन करते हैं।
पदार्थ
(शिशुः) अति प्रशंसनीय परमात्मा (महीनाम्) बड़े से बड़े पृथिव्यादि लोकों को (क्राणा) रचता हुआ (ऋतस्य) सच्चाई के (दीधितिम्) प्रकाश को (हिन्वन्) प्रेरित करता है और वह (विश्वा, परि) सब लोगों के ऊपर (प्रिया) प्रियभाव (भुवत्) प्रकट करता है (अध) और (द्विता) द्वैतभाव से प्रकृति और जीव द्वारा इस संसार की रक्षा करता है ॥१॥
भावार्थ
इस मन्त्र में द्वैतवाद का वर्णन स्पष्टरीति से किया गया है ॥१॥
विषय
पवमान सोम। जगत् के शासक प्रभु की आज्ञावाणी वेद।
भावार्थ
(क्राणा) जगत् को रचने वाला प्रभु (महीनां शिशुः) महान् प्रकृति के परमाणुओं, उसकी विकृतियों वा महती शक्तियों में (शिशुः) व्यापक, उनका शासक है। वह (ऋतस्य) सत्य ज्ञान के (दीधितिं) प्रकाशक और धारक वेदमय शब्द की (हिन्वन्) प्रेरणा करता हुआ (विश्वा प्रिया) समस्त प्रिय पदार्थों को (परि भुवत्) व्यापता और (अध द्विता अभवत्) इह और पर दोनों लोकों में विद्यमान है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
त्रित ऋषिः। पवमानः सोमो देवता ॥ छन्दः–१–४, ८ निचृदुष्णिक्। ५-७ उष्णिक्। अष्टर्चं सूक्तम्॥
विषय
महीनां शिशुः
पदार्थ
(क्राणा) = शरीर में सुरक्षित सोम यज्ञों को करनेवाला होता है । सोमरक्षक पुरुष यज्ञिय वृत्ति वाला बनता है। यह (महीनां) = उपासकों की बुद्धि को (शिशुः) = तीव्र करनेवाला होता है [शो तनूकरणे] । (ऋतस्य) = सत्य वेदज्ञान के (दीधितिम्) = प्रकाश को (हिन्वन्) = अपने धारक के हृदय में प्रेरित करता है। इस प्रकार वृत्ति को यज्ञिय बनाकर, बुद्धि को तीव्र करके तथा सत्य ज्ञान की किरणों को प्रकाशित करके यह सोम (विश्वा प्रिया) = सब प्रिय वस्तुओं का (परिभुवत्) = व्यापन करनेवाला होता है (अध) = और अब (द्विता) = शरीर व मस्तिष्क दोनों का विस्तार करनेवाला होता है। यह सोम शरीर में शक्ति को व मस्तिष्क में दीप्ति को स्थापित करता है।
भावार्थ
भावार्थ-सोम हमारी वृत्ति को यज्ञिय बनाता है, बुद्धि को तीव्र करता है, ज्ञान के प्रकाश को प्राप्त कराता है, सब प्रिय वस्तुओं का व्यापन करता हुआ शरीर को सबल व मस्तिष्क को ज्योतिर्मय करता है ।
इंग्लिश (1)
Meaning
Maker of stars and planets, inspiring the light and law of the dynamics of existence, dear adorable giver of fulfilment, Soma rules over both spirit and nature, heaven and earth.
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात द्वैतवादाचे वर्णन स्पष्ट रीतीने केलेले आहे. ॥१॥
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