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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 108 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 108/ मन्त्र 1
    ऋषिः - गौरिवीतिः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - ककुबुष्णिक् स्वरः - ऋषभः

    पव॑स्व॒ मधु॑मत्तम॒ इन्द्रा॑य सोम क्रतु॒वित्त॑मो॒ मद॑: । महि॑ द्यु॒क्षत॑मो॒ मद॑: ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    पव॑स्व । मधु॑मत्ऽतमः । इन्द्रा॑य । सो॒म॒ । क्र॒तु॒वित्ऽत॑मः । मदः॑ । महि॑ । द्यु॒क्षऽत॑मः । मदः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    पवस्व मधुमत्तम इन्द्राय सोम क्रतुवित्तमो मद: । महि द्युक्षतमो मद: ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    पवस्व । मधुमत्ऽतमः । इन्द्राय । सोम । क्रतुवित्ऽतमः । मदः । महि । द्युक्षऽतमः । मदः ॥ ९.१०८.१

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 108; मन्त्र » 1
    अष्टक » 7; अध्याय » 5; वर्ग » 17; मन्त्र » 1
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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (सोम) हे सर्वोत्पादक परमात्मा ! भवान् (मधुमत्तमः) आनन्दस्वरूपः (क्रतुवित्तमः) सर्वकर्मवेत्ता च (द्युक्षतमः) दीप्तिमान् (महि, मदः) आनन्दहेतुः (मदः) हर्षस्वरूपः (इन्द्राय) कर्मयोगिनं भवान् (पवस्व) पुनातु ॥१॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (सोम) हे सर्वोत्पादक परमात्मन् ! आप (मधुमत्तमः) आनन्दस्वरूप और (क्रतुवित्तमः) सब कर्मों के वेत्ता हैं, (द्युक्षतमः) दीप्तिवाले हैं, (महि, मदः) अत्यन्त आनन्द के हेतु (मदः) हर्षस्वरूप आप (इन्द्राय) कर्मयोगी को (पवस्व) पवित्र करें ॥१॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में परमात्मा से शुभ कर्म्मों की ओर लगने की प्रार्थना की गई है कि हे शुभकर्मों में प्रेरक परमात्मन् ! आप हमारे सब कर्मों को भली-भाँति जानते हुए भी अपनी कृपा से हमें शुभ कर्मों की ओर प्रेरित करें, जिस से कि हम कर्मयोगी बनकर आपकी समीपता का लाभ कर सकें ॥१॥

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    विषय

    हे (सोम) = वीर्य ! तू (इन्द्राय) = जितेन्द्रिय पुरुष के लिये (पवस्व) = प्राप्त हो । तू उसके लिये (मधुमत्तमः) = अतिशयेन माधुर्य को देनेवाला है। क्(रतुवित्तमः) = ' प्रज्ञान शक्ति व यज्ञों' को प्राप्त करानेवाला है। (मदः) = उल्लासजनक है। तू (महि) = महान् व महनीय है । (द्युक्षतमः) = ज्योति में निवास करानेवाला है। (मदः) = हर्ष को प्राप्त करानेवाला है ।

    पदार्थ

    भावार्थ - जितेन्द्रियता से सुरक्षित सोम 'माधुर्य-प्रज्ञान शक्ति व यज्ञशीलता' को प्राप्त कराता है। ज्ञान में निवास कराता हुआ आनन्द का यह जनक है।

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    विषय

    सोम पवमान।

    भावार्थ

    हे (सोम) सोम ! सब को सन्मार्ग में प्रेरणा देने हारे ! हे ऐश्वर्यवन्, हे स्वयं आत्मन् ! तू (मधुमत्-तमः) अतिमधुर रस से युक्त है। तू (क्रतुवित्तमः) कर्मों और ज्ञानों को जानने वालों में श्रेष्ठ है। तू (मदः) स्तुत्य है और तू (द्युक्ष-तमः) अति तेजोमय और (मदः) आनन्दस्वरूप है तू (इन्द्राय) इस जीव के लिये (अति पवस्व) अनेक सुख प्रदान कर।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः– १, २ गौरिवीतिः। ३, १४-१६ शक्तिः। ४, ५ उरुः। ६, ७ ऋजिष्वाः। ८, ९ ऊर्द्धसद्मा। १०, ११ कृतयशाः। १२, १३ ऋणञ्चयः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्दः- १, ९, ११ उष्णिक् ककुप्। ३ पादनिचृदुष्णिक् । ५, ७, १५ निचृदुष्णिक्। २ निचृद्वहती। ४, ६, १०, १२ स्वराड् बृहती॥ ८, १६ पंक्तिः। १३ गायत्री ॥ १४ निचृत्पंक्तिः॥ द्वाविंशत्यृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    O Soma, sweetest honey spirit of light, action and joy, radiate purifying for Indra, the soul. You are the wisest spirit of the knowledge of holy action, greatest and most enlightened spirit of joy.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात शुभ कर्माकडे वळविण्याची परमेश्वराला प्रार्थना केलेली आहे. हे शुभ कर्माचा प्रेरक अशा ईश्वरा! तू आमच्या सर्व कर्मांना चांगल्या प्रकारे जाणून तुझ्या कृपेने तू आम्हाला शुभ कर्मात प्रेरित कर. त्यामुळे आम्ही कर्मयोगी बनून तुझ्या समीपतेचा लाभ घ्यावा. ॥१॥

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