ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 113/ मन्त्र 1
श॒र्य॒णाव॑ति॒ सोम॒मिन्द्र॑: पिबतु वृत्र॒हा । बलं॒ दधा॑न आ॒त्मनि॑ करि॒ष्यन्वी॒र्यं॑ म॒हदिन्द्रा॑येन्दो॒ परि॑ स्रव ॥
स्वर सहित पद पाठश॒र्य॒णाऽव॑ति । सोम॑म् । इन्द्रः॑ । पि॒ब॒तु॒ । वृ॒त्र॒ऽहा । बल॑म् । दधा॑नः । आ॒त्मनि॑ । क॒रि॒ष्यन् । वी॒र्य॑म् । म॒हत् । इन्द्रा॑य । इ॒न्दो॒ इति॑ । परि॑ । स्र॒व॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
शर्यणावति सोममिन्द्र: पिबतु वृत्रहा । बलं दधान आत्मनि करिष्यन्वीर्यं महदिन्द्रायेन्दो परि स्रव ॥
स्वर रहित पद पाठशर्यणाऽवति । सोमम् । इन्द्रः । पिबतु । वृत्रऽहा । बलम् । दधानः । आत्मनि । करिष्यन् । वीर्यम् । महत् । इन्द्राय । इन्दो इति । परि । स्रव ॥ ९.११३.१
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 113; मन्त्र » 1
अष्टक » 7; अध्याय » 5; वर्ग » 26; मन्त्र » 1
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अष्टक » 7; अध्याय » 5; वर्ग » 26; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथ प्रसङ्गसङ्गत्या राजधर्मो निरूप्यते।
पदार्थः
(शर्यणावति) कर्मयोगिनि (सोमं) ईश्वरानन्दं (इन्द्रः) परमैश्वर्यं प्राप्स्यन् राजा (पिबतु) पिबेत् स राजा (वृत्रहा) शत्रुरूपमेघान् नाशयति (बलं, दधानः) बलं धारयन् (आत्मनि) स्वस्मिन् (महत्, वीर्यं) अतिबलं (करिष्यन्) उत्पादयन् राज्यार्हो भवति (इन्द्राय) ईदृशे राज्ञे (इन्दो) हे प्रकाशस्वरूप परमात्मन् ! भवान् (परि, स्रव) अभिषेकहेतुर्भवतु ॥१॥
हिन्दी (3)
विषय
अब प्रसङ्गसंगति से राजधर्म का निरूपण करते हैं।
पदार्थ
(शर्यणावति) कर्मयोगी में (सोमं) ईश्वरानन्दरूप (इन्द्रः) “इन्दतीतीन्द्रः”=परमैश्वर्य्य को प्राप्त होनेवाला राजा (पिबतु) पान करे, वह राजा (वृत्रहा) शत्रुरूप बादलों के नाश करनेवाला होता है, (बलं, दधानः) बल को धारण करता हुआ और (आत्मनि) अपने आत्मा में (महत्, वीर्यं) बड़े बल को (करिष्यन्) उत्पन्न करता हुआ राज्यपद के योग्य होता है, (इन्द्राय) ऐसे बलवीर्य्यसम्पन्न राजा के लिये (इन्दो) हे प्रकाशस्वरूप परमात्मन् ! आप (परि, स्रव) राज्याभिषेक का निमित्त बनें ॥१॥
भावार्थ
इस मन्त्र का भाव यह है कि जो राजा कर्मयोगी तथा ज्ञानयोगियों के सदुपदेश से ब्रह्मानन्दपान करता है, वह राजा बनने योग्य होता है। हे परमात्मन् ! ऐसे राजा को राज्याभिषेक से अभिषिक्त करें ॥१॥
विषय
बलं दधानः आत्मनि
पदार्थ
[शर्यणा - हिंसा] (शर्यणावति) = इस जीवन में, जिसमें कि निरन्तर रोगों व काम-क्रोध आदि शत्रुओं का हिंसन चल रहा है, (इन्द्रः) = यह जितेन्द्रिय पुरुष (सोमं पिबतु) = सोम का पान करे। सोम का पान करता हुआ यह (वृत्रहा) = इस ज्ञान पर आवरणभूत काम आदि शत्रुओं का संहार करनेवाला होगा। (आत्मनि) = अपने में (बलं दधानः) = बल को धारण करता हुआ यह (महत् वीर्यं करिष्यन्) = महान् पराक्रम के कार्यों को करनेवाला होगा । सो, हे (इन्दो) = सोम ! तू (इन्द्राय) = इस जितेन्द्रिय पुरुष के लिये (परिस्रव) = परिस्रुत हो । यह जितेन्द्रिय पुरुष तुझे प्राप्त करके इस जीवन संग्राम में शत्रुओं की शर्यणा [हिंसा] कर सके ।
भावार्थ
भावार्थ- जीवन संग्राम में सोम ही हमें विजयी बनाता है। इसका रक्षण हमें बल देता है और हम महान् पराक्रम के कार्यों को कर पाते हैं।
विषय
पवमान सोम। शस्त्रबल पर राजा का राज्य की रक्षा का कर्त्तव्य।
भावार्थ
(आत्मनि) अपने में (महत् वीर्यं करिष्यन्) बड़ा भारी बल सम्पादन करना चाहता हुआ और (महत् बलं दधानः) बड़ा भारी बल धारण करता हुआ, (वृत्र-हा) विघ्न रूप शत्रुओं को नाश करने वाला, (इन्द्रः) तेजस्वी राजा और आत्मा, (शर्यणावति) शत्रु-हिंसक सेना से युक्त बल-सैन्य के आश्रय पर (सोमम् पिबतु) ऐश्वर्य का उपभोग और शासक पद की रक्षा करे, और प्रजा का पालन करे।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
कश्यप ऋषिः। पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:- १, २, ७ विराट् पंक्तिः । ३ भुरिक् पंक्तिः। ४ पंक्तिः। ५, ६, ८-११ निचृत पंक्तिः॥ एकादशर्चं सूक्तम्।
इंग्लिश (1)
Meaning
In the order of power and prosperity, let Indra, ruler soul of the order, dispelling darkness and destroying evil, wielding the power and creating super strength and lustre in the self, enjoy, protect and promote the honour and glory of the order to the heights of excellence. O Spirit of cosmic beauty, glory and grace, flow and radiate in the service of the glory of divinity higher and higher.
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्राचा भाव हा आहे की जो राजा कर्मयोगी व ज्ञानयोगींच्या सदुपदेशाने ब्रह्मानंदाचे पान करतो तो राजा बनण्यायोग्य असतो. हे परमात्मा! अशा राजाला राज्याभिषेकाने अभिषिक्त कर. ॥१॥
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