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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 18 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 18/ मन्त्र 1
    ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा देवता - पवमानः सोमः छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    परि॑ सुवा॒नो गि॑रि॒ष्ठाः प॒वित्रे॒ सोमो॑ अक्षाः । मदे॑षु सर्व॒धा अ॑सि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    परि॑ । सु॒वा॒नः । गि॒रि॒ऽस्थाः । प॒वित्रे॑ । सोमः॑ । अ॒क्षा॒रिति॑ । मदे॑षु । स॒र्व॒ऽधाः । अ॒सि॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    परि सुवानो गिरिष्ठाः पवित्रे सोमो अक्षाः । मदेषु सर्वधा असि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    परि । सुवानः । गिरिऽस्थाः । पवित्रे । सोमः । अक्षारिति । मदेषु । सर्वऽधाः । असि ॥ ९.१८.१

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 18; मन्त्र » 1
    अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 8; मन्त्र » 1
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ विभूतिमत्सु परमात्मनो महत्त्वं कथ्यते।

    पदार्थः

    स भवान् (परिसुवानः) सर्वोत्पादकः (गिरिष्ठाः) विद्युदादिपदार्थेषु तिष्ठति च (पवित्रे) पवित्रपदार्थे च विराजते (सोमः) सौम्यस्वभाववांश्चास्ति (अक्षाः) सर्वत्रगः (मदेषु) सर्वेषु हर्षयुक्तवस्तुषु (सर्वधाः) सर्वविधरुचिधारकः (असि) अस्ति ॥१॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    अब विभूतिवाली वस्तुओं में परमात्मा का महत्त्व कथन करते हैं।

    पदार्थ

    वह आप (परिसुवानः) ‘परि सर्वे सूत इति परिसुवानः’ सर्वोत्पादक है (गिरिष्ठाः) ‘गृणाति शब्दं करोतीति गिरिः’ आप विद्युदादि पदार्थों में स्थित हैं (पवित्रे) पवित्र पदार्थों में स्थित हैं (सोमः) सौम्यस्वभाव हैं (अक्षाः) ‘अक्षति व्याप्नोति सर्वमित्यक्षाः’ और सर्वव्यापक हैं (मदेषु) हर्षयुक्त वस्तुओं में (सर्वधाः) सब प्रकार की शोभा के धारण करानेवाले (असि) हैं ॥१॥

    भावार्थ

    परमात्मा विद्युदादि सब शक्तियों में विराजमान है, क्योंकि वह सर्वव्यापक है और जो-२ विभूतिवाली वस्तु हैं, उनमें सब प्रकार की शोभा के धारण करानेवाला परमात्मा ही है, कोई अन्य नहीं। तात्पर्य यह है कि यद्यपि व्यापकरूप से परमात्मा सर्वत्र परिपूर्ण है, तथापि विभूतिवाली वस्तुओं में उसकी अभिव्यक्ति विशेषरूप से पायी जाती है, इसी अभिप्राय से कहा है कि ‘मदेषु सर्वधा असि’ ॥१॥

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    विषय

    गिरिष्ठा सोम

    पदार्थ

    [१] (सोमः) = सोम [वीर्यशक्ति] (सुवान:) = उत्पन्न किया जाता हुआ (गिरिष्ठाः) = वेदवाणी में स्थित होता है । अर्थात् स्वाध्याय के होने पर यह ज्ञानाग्नि का ईंधन बनता है, ज्ञानाग्नि को दीप्त करता है और इस प्रकार ज्ञान की वाणियों को प्राप्त करानेवाला होता है। यह सोम (पवित्रे) = पवित्र हृदय में (परि अक्षाः परितः) = क्षरित होता है। हृदय के पवित्र होने पर यह सोम शरीर में ही व्याप्त होता है । [२] हे सोम ! (मदेषु) = तेरे रक्षण से उत्पन्न उल्लासों के होने पर तू (सर्वधाः) = सब का धारण करनेवाला (असि) = होता है। इस सोम से शरीर नीरोग बनता है, इन्द्रियाँ सशक्त, मन निर्मल व बुद्धि तीव्र होती है। इस प्रकार यह सोम 'सर्वधा' है।

    भावार्थ

    भावार्थ - स्वाध्याय में प्रवृत्त रहने पर सोम शरीर में ही व्याप्त हुआ रहता है। यह जीवन को हर्षमय बनाता हुआ सबका धारण करता है।

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    विषय

    पवमान सोम। सोम परमेश्वर का वर्णन ।

    भावार्थ

    हे परमेश्वर ! तू (सोमः) समस्त जगत् का उत्पादक, शासक, सञ्चालक, सर्वरसमय, सर्वैश्वर्यवान् है। तू (सुवानः) जगत् को उत्पन्न करता हुआ (गिरिष्ठाः) सब की वाणियों पर, सब की स्तुतियों में विराजमान रहता और (पवित्रे) पवित्र हृदय में (परि अक्षाः) आनन्द रूप से प्रवाहित होता है। (मदेषु) स्तुतिकर्त्ता जनों में तू (सर्वधाः असि) सब पदार्थों का दाता और सब का धारक, पालक-पोषक है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    असितः काश्यपो देवलो वा ऋषिः। पवमानः सोमो देवता॥ छन्दः– १, ४ निचृद् गायत्री। २ ककुम्मती गायत्री। ३, ५, ६ गायत्री। ७ विराड् गायत्री॥ सप्तर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    O lord, you are Soma, peace, power and bliss, all creative, fertilising and inspiring, all present in thunder of the clouds, roar of the winds and rumble of the mountains, in purest of the pure. You are the sole sustainer of all in bliss divine.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमात्मा विद्युत इत्यादी सर्व शक्तींमध्ये विराजमान आहे. कारण तो सर्वव्यापक आहे व जी जी वस्तू विभूतीयुक्त आहे त्यात सर्व प्रकारची शोभा धारण करणारा परमात्माच आहे. दुसरा कोणी नाही. तात्पर्य हे की जरी परमात्मा व्यापक रूपाने सर्वत्र परिपूर्ण आहे, तरीही विभूतीयुक्त वस्तूंमध्ये त्याची अभिव्यक्ती विशेषरूपाने आढळते. याच अभिप्रायाने म्हटले आहे की ‘मदेषु सर्वधा असि’ ॥१॥

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