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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 2 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 2/ मन्त्र 1
    ऋषिः - मेधातिथिः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    पव॑स्व देव॒वीरति॑ प॒वित्रं॑ सोम॒ रंह्या॑ । इन्द्र॑मिन्दो॒ वृषा वि॑श ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    पव॑स्व । दे॒व॒ऽवीः । अति॑ । प॒वित्र॑म् । सो॒म॒ । रंह्या॑ । इन्द्र॑म् । इ॒न्दो॒ इति॑ । वृषा॑ । आ । वि॒श॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    पवस्व देववीरति पवित्रं सोम रंह्या । इन्द्रमिन्दो वृषा विश ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    पवस्व । देवऽवीः । अति । पवित्रम् । सोम । रंह्या । इन्द्रम् । इन्दो इति । वृषा । आ । विश ॥ ९.२.१

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 2; मन्त्र » 1
    अष्टक » 6; अध्याय » 7; वर्ग » 18; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (सोम) हे सौम्यस्वभावयुक्त ! (देववीः) दिव्यगुणयुक्त परमात्मन् ! त्वम् (पवस्व) अस्मान् पवित्रान् कुरु किञ्च (इन्दो) हे ऐश्वर्य्ययुक्त परमात्मन् ! भवान् (इन्द्रम्) ऐश्वर्य्यं प्रापयतु तथा (वृषा) हे आनन्दवर्षुक ! त्वम् (रंह्या) वेगेन (विश) अस्मद्धृदयं विश (पवित्रम्) पवित्रान् कुरु तथा (अति) अवश्यं रक्ष ॥१॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (सोम) हे सौम्यस्वभाव ! और  (देववीः) दिव्य गुणयुक्त परमात्मन् ! आप  (पवस्व) हमें पवित्र करें और  (इन्दो) हे ऐश्वर्य्ययुक्त ! आप  (रंह्या) शीघ्र ही  (विश) हमारे हृदय में प्रवेश करें और  (पवित्रं) पवित्र तथा  (अति) अवश्य रक्षा करें ॥१॥

    भावार्थ

    परमात्मा की कृपा से ही पवित्रता प्राप्त होती है और परमात्मा की कृपा से ही पुरुष सब प्रकार के ऐश्वर्य्य से सम्पन होता है। जिस पुरुष के मन में परमात्मदेव का आविर्भाव होता है, वह सौम्य स्वभावयुक्त होकर कल्याण को प्राप्त होता है ॥१॥

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    विषय

    'देववी' सोम

    पदार्थ

    [१] हे (सोम) = वीर्यशक्ते ! तू (देववी:) = दिव्य गुणों की कामनावाली होती हुई (रंह्या) = बड़े वेग से, शीघ्रता से (पवित्रम्) = इस मेधातिथि के पवित्र हृदय को (अतिपवस्व) = अतिशयेन पवित्र करनेवाली हो । सोम के रक्षण से हृदय पवित्र होता है, दिव्य गुणों का वर्धन होता है । [२] हे (इन्दो) = हमारे जीवन को शक्तिशाली बनानेवाले सोम ! तू (वृषा) = सब सुखों का सेचन करनेवाला होता हुआ (इन्द्रम्) = जितेन्द्रिय पुरुष के अन्दर (आविश) = समन्तात् प्रवेश करनेवाला हो । जितेन्द्रिय बनकर हम वासनाओं को विनष्ट करते हैं। इस वासना-विनाश से सोम का रक्षण होता है। रक्षित सोम जहाँ हमें शक्तिशाली बनाता है, वहाँ हमारे सब सुखों का कारण बनता है ।

    भावार्थ

    भावार्थ- सोम के रक्षण से [क] दिव्य गुणों का वर्धन होता है, [ख] शक्ति प्राप्त होती है, [ग] नीरोगता आदि के द्वारा जीवन सुखी बनता है ।

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    विषय

    सोम पवमान।

    भावार्थ

    हे (इन्दो) इस प्रकार से विनीत होकर गुरु की परिचर्या करने वाले ! हे (सोम) विद्यार्थिन् ! ब्रह्मचारिन् ! सोम्य ! ज्ञानोपासक ! तू (देव-वीः) ज्ञान दाता को प्राप्त होने वाला होकर (पवित्रं) पवित्र करने वाले (इन्द्रम्) तत्वदर्शी, वाणी के नियमों को खोल कर बताने वाले गुरु को (रंह्या) वेग से, अनालसी होकर (अति पवस्व) अपने को खूब पवित्र कर। और तू (वृषा) बलवान् होकर (इन्द्रम् आविश) उस आचार्य को प्राप्त हो। (२) इसी प्रकार ऐश्वर्यवान् राजा देव, विद्वानों को प्राप्त कर पवित्र इन्द्र-पद को प्राप्त करे और बलवान् होकर ऐश्वर्ययुक्त राष्ट्र पद पर विराजे।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    मेधातिथिऋषिः। पवमानः सोमो देवता ॥ छन्द:- १, ४, ६ निचृद् गायत्री। २, ३, ५, ७―९ गायत्री। १० विराड् गायत्री॥ दशर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    O Soma, spirit of divinity, flow quick, purify our mind and senses, and fulfil our prayers for piety. Spirit of peace and spiritual joy in exuberance, bring us the glory of life and let it sanctify our heart and soul.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमेश्वराच्या कृपेनेच पवित्रता प्राप्त होते व त्याच्याच कृपेने पुरुष सर्व दृष्टीने ऐश्वर्यसंपन्न होतो. ज्या पुरुषाच्या मनात परमात्मदेवाचा आविर्भाव होतो. तो सौम्य स्वभावयुक्त होतो व त्याचे कल्याण होते. ॥१॥

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