ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 20/ मन्त्र 1
ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - निचृद्गायत्री
स्वरः - षड्जः
प्र क॒विर्दे॒ववी॑त॒येऽव्यो॒ वारे॑भिरर्षति । सा॒ह्वान्विश्वा॑ अ॒भि स्पृध॑: ॥
स्वर सहित पद पाठप्र । क॒विः । दे॒वऽवी॑तये । अव्यः॑ । वारे॑भिः । अ॒र्ष॒ति॒ । स॒ह्वान् । विश्वाः॑ । अ॒भि । स्पृधः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
प्र कविर्देववीतयेऽव्यो वारेभिरर्षति । साह्वान्विश्वा अभि स्पृध: ॥
स्वर रहित पद पाठप्र । कविः । देवऽवीतये । अव्यः । वारेभिः । अर्षति । सह्वान् । विश्वाः । अभि । स्पृधः ॥ ९.२०.१
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 20; मन्त्र » 1
अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 10; मन्त्र » 1
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अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 10; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अस्मिन् सूक्ते वेदवित्सु बलप्रदानं कथ्यते।
पदार्थः
स परमात्मा (कविः) मेधाव्यस्ति (अव्याः) सर्वस्य रक्षकश्चास्ति (देववीतये) विदुषां तृप्तये (अर्षति) ज्ञानं ददाति (साह्वान्) सहिष्णुरस्ति (विश्वाः) स्पृधः। कृत्स्नान् दुष्टान् सङ्ग्रामे (अभि) तिरस्करोति ॥१॥
हिन्दी (3)
विषय
इस सूक्त में वेदवेत्ताओं में बलप्रदान का कथन करते हैं।
पदार्थ
वह परमात्मा (कविः) मेधावी है और (अव्याः) सबका रक्षक है (देववीतये) विद्वानों की तृप्ति के लिये (अर्षति) ज्ञान को देता है (साह्वान्) सहनशील है (विश्वाः स्पृधः) सम्पूर्ण दुष्टों को संग्रामों में (अभि) तिरस्कृत करता है ॥१॥
भावार्थ
परमात्मा विद्वानों को ज्ञानप्रदान से और न्यायकारी सैनिकों को बलप्रदान से तृप्त करता है ॥१॥
विषय
अव्यः कविः
पदार्थ
[१] यह सोम ('कविः') = कवि है, क्रान्तप्रज्ञ है, हमारी बुद्धि को सूक्ष्म बनानेवाला है। यह (देववीतये) = दिव्य गुणों की प्राप्ति के लिये होता है । सोम हमारी बुद्धि को सूक्ष्म बनाकर, हमारे ज्ञान को बढ़ाता है तथा ज्ञानवृद्धि के द्वारा दिव्य गुणों का वर्धन करता है। [२] (अव्यः) = रक्षकों में उत्तम यह सोम वारेभिः = सब रोगों के निवारण के साथ (प्र अर्षति) = प्रकर्षेण प्राप्त होता है। यह (विश्वा:) = सब (स्पृधः) = शत्रुओं को (अभि साह्वान्) = अभिभूत करनेवाला व कुचलनेवाला होता हैं ।
भावार्थ
भावार्थ - रक्षित हुआ हुआ सोम हमें क्रान्तप्रज्ञ बनाता है, सो 'कवि' है। यह रोगों से हमें बचाता है तो 'अव्य' है ।
विषय
पवमान सोम। वीर पुरुष को उत्तम पद प्राप्ति।
भावार्थ
(कविः) क्रान्तदर्शी, दूर दृष्टि वाला विद्वान् (देव-वीतये) ‘देव’ तेजस्वी सूर्यवत् कान्ति प्राप्त करने के लिये (अव्यः) रक्षक होकर (विश्वाः स्पृधः अभि साह्वान्) समस्त स्पर्धालु सेनाओं को पराजित करने हारा होकर (वारेभिः) दुष्टों के वारक सैन्यों सहित (प्र अर्षति) उत्तम पद को पाता है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
असितः काश्यपो देवलो वा ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:- १, ४—७ निचृद् गायत्री। २, ३ गायत्री॥ सप्तर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Soma, creative poet and universal visionary, all protective, withstanding all rivalry and opposition, moves on with protection, advancement and choice gifts for the creative souls for their divine fulfilment.
मराठी (1)
भावार्थ
परमात्मा विद्वानांना ज्ञान प्रज्ञानाने तृप्त करतो व सैनिकांना बल प्रदान करून तृप्त करतो. ॥१॥
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