ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 22/ मन्त्र 1
ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
ए॒ते सोमा॑स आ॒शवो॒ रथा॑ इव॒ प्र वा॒जिन॑: । सर्गा॑: सृ॒ष्टा अ॑हेषत ॥
स्वर सहित पद पाठए॒ते । सोमा॑सः । आ॒शवः॑ । रथाः॑ऽइव । प्र । वा॒जिनः॑ । सर्गाः॑ । सृ॒ष्टाः । अ॒हे॒ष॒त॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
एते सोमास आशवो रथा इव प्र वाजिन: । सर्गा: सृष्टा अहेषत ॥
स्वर रहित पद पाठएते । सोमासः । आशवः । रथाःऽइव । प्र । वाजिनः । सर्गाः । सृष्टाः । अहेषत ॥ ९.२२.१
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 22; मन्त्र » 1
अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 12; मन्त्र » 1
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अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 12; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथ परमात्मनो जगतः कर्तृत्वं वर्ण्यते।
पदार्थः
(एते सोमासः) अयं परमात्मा (रथाः इव) विद्युदिव (आशवः) शीघ्रगाम्यस्ति (प्रवाजिनः) अत्यन्तबलाश्रयश्च (सर्गाः सृष्टाः अहेषत) स एव सृष्टिं शब्दायमानामुदपादयत् ॥१॥
हिन्दी (3)
विषय
अब परमात्मा की सृष्टिरचना का वर्णन करते हैं।
पदार्थ
(एते सोमासः) यह परमात्मा (रथाः इव) विद्युत् के समान (आशवः) शीघ्रगामी है और (प्रवाजिनः) अत्यन्त बलवाला है (सर्गाः सृष्टाः अहेषत) उसने सृष्टियों को श्ब्दायमान रचा है ॥१॥
भावार्थ
परमात्मा में अनन्त शक्तियें पायी जाती हैं। उसकी शक्तियें विद्युत् के समान क्रियाप्रधान है। उसने कोटानुकोटि ब्रह्माण्डों को रचा है, जो शब्द स्पर्श रूप रस गन्ध इन पाँच तन्मात्रों के कार्य हैं और इनकी ऐसी अचिन्त्य रचना है, जिसका अनुशीलन मनुष्य मन से भी भली-भाँति नहीं कर सकता ॥१॥
विषय
प्रवाजिनः रथाः
पदार्थ
[१] (एते) = ये (सोमास:) = सोमकण (आशवः) = शरीर में व्याप्त होनेवाले हैं [अशू व्याप्तौ] तथा (प्रवाजिनः) = प्रकृष्ट घोड़ों से युक्त (रथाः इव) = रथों के समान हैं। जैसे ये रथ अवश्य हमें लक्ष्य- स्थान पर पहुँचाते हैं, इसी प्रकार सुरक्षित सोम हमें लक्ष्य स्थान पर पहुँचानेवाले है । सोम के रक्षण से शरीर - रथ उत्तम बनता है और उसमें उत्तम इन्द्रियाश्व जुते होते हैं। सोम की शक्ति ही इन सब इन्द्रियाश्वों को शक्तिशाली बनाती है । [२] शरीर में ये सोम (सृष्टाः) = उत्पन्न हुए हुए (सर्गाः) = अश्वों के समान हैं [ सर्ग = A horse ] ये जीवनयात्रा की पूर्ति का साधन बनते हैं और (अहेषत) = स्तुति के शब्दों का उच्चारण करते हैं। जैसे घोड़े हिनहिनाते हैं, इसी प्रकार सोम की शक्ति से शक्ति - सम्पन्न इन्द्रियाश्व प्रभु के गुणों का गान करते हैं ।
भावार्थ
भावार्थ- सोम इन्द्रियाश्वों को शक्तिशाली बनाता है, तथा वे प्रभु का गुणगान करते हैं ।
विषय
पवमान सोम। वीरों, विद्यार्थियों, विद्वानों का रथों के तुल्य उत्साहपूर्वक आगे बढ़ना।
भावार्थ
(एते) ये (सोमासः) उत्पन्न होने वाले जीव गण और कार्य में नियुक्त वीर जन, शिष्य गण और विद्वान् पुरुप (रथाः इव) रथों के समान (आशवः) शीघ्र गति से जाने वाले, क्षिप्रकारी और (वाजिनः) देह में प्राणों के समान बलवान्, ज्ञानवान् होकर (सृष्टाः) छोड़े जाकर (सर्गाः) जल धाराओं के समान (प्र अहेषत) उत्तम ध्वनि करते वा खूब वेग से जाते हैं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
असितः काश्यपो देवलो वा ऋषिः। पवमानः सोमो देवता ॥ छन्द:- १, २ गायत्री। ३ विराड् गायत्री। ४-७ निचृद गायत्री॥ सप्तर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
These soma streams of nature and humanity fast as chariots on course for victory roar like floods let free.
मराठी (1)
भावार्थ
परमात्म्यात अनंत शक्ती आढळून येतात. त्याच्या शक्ती विद्युतप्रमाणे क्रियाप्रधान असतात. त्याने कोटी कोटी ब्रह्मांड रचलेले आहे. जे शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध या पाच तन्मात्रांचे कार्य आहे व अशी अचिंत्य (समजण्याच्या बाहेर) रचना आहे. ज्याचे अनुशीलन, मनुष्य मनानेही योग्य प्रकारे करू शकत नाही. ॥१॥
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