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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 31 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 31/ मन्त्र 2
    ऋषिः - गोतमोः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - यवमध्यागायत्री स्वरः - षड्जः

    दि॒वस्पृ॑थि॒व्या अधि॒ भवे॑न्दो द्युम्न॒वर्ध॑नः । भवा॒ वाजा॑नां॒ पति॑: ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    दि॒वः । पृ॒थि॒व्याः । अधि॑ । भव॑ । इ॒न्दो॒ इति॑ । द्यु॒म्न॒ऽवर्ध॑नः । भव॑ । वाजा॑नाम् । पतिः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    दिवस्पृथिव्या अधि भवेन्दो द्युम्नवर्धनः । भवा वाजानां पति: ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    दिवः । पृथिव्याः । अधि । भव । इन्दो इति । द्युम्नऽवर्धनः । भव । वाजानाम् । पतिः ॥ ९.३१.२

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 31; मन्त्र » 2
    अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 21; मन्त्र » 2
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    उक्तविधैर्वीरैः परमात्मा एवं प्रार्थ्यते।

    पदार्थः

    (इन्दो) हे परमैश्वर्य्ययुक्त परमात्मन् ! भवान् (वाजानाम्) सर्वविधैश्वर्याणां (पतिः) स्वामी अस्ति (दिवस्पृथिव्याः अधि) द्यावापृथिव्योर्मध्ये (द्युम्नवर्धनः) ऐश्वर्य्यस्य वर्धयिता (भव) भवेत् ॥२॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    उक्त वीर परमात्मा से इस प्रकार प्रार्थना करते हैं।

    पदार्थ

    (इन्दो) हे परमैश्वर्य्ययुक्त परमात्मन् ! आप (वाजानाम्) सब प्रकार के ऐश्वर्यों के (पतिः) स्वामी हैं (दिवस्पृथिव्याः अधि) द्युलोक और पृथिवीलोक के बीच में (द्युम्नवर्धनः) ऐश्वर्य्य के बढ़ानेवाले (भव) हों ॥२॥

    भावार्थ

    परमात्मा इस प्रकार उपदेश करता है कि हे शूरवीरों ! तुम लोग अपने परिश्रम के अनन्तर उस पराशक्ति से इस प्रकार की प्रार्थना करो कि हमारा ऐश्वर्य्य सर्वत्र फैले और हम द्युलोक और पृथिवीलोक के बीच में शान्ति को फैलायें ॥ तात्पर्य यह है कि मनुष्य कैसा ही ऐश्वर्यशाली हो अथवा तेजस्वी और ब्रह्मवर्चस्वी हो, पर फिर भी उसे पराशक्ति की सहायता लेनी पड़ती है, जिसने इस संसार को अपने नियमो में बाँध रखा है ॥२॥

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    विषय

    'द्युम्नवर्धन' सोम

    पदार्थ

    [१] हे (इन्दो) = सोम ! तू (दिवः) = मस्तिष्क रूप द्युलोक के तथा (पृथिव्याः) = शरीर रूप पृथिवी के (अधि) = आधिक्येन (द्युम्नवर्धनः) = द्योतमान धन का बढ़ानेवाला (भव) = हो । मस्तिष्क में तू ज्ञान को बढ़ा, शरीर में शक्ति को । इस प्रकार मस्तिष्क भी ज्योतिर्मय बनता है और शरीर तेजस्वी । [२] हे सोम ! तू (वाजानां पतिः) = शक्तियों का रक्षक (भवा) = हो । सुरक्षित सोम से ही सब अंग-प्रत्यंगों की शक्ति बढ़ती है ।

    भावार्थ

    भावार्थ- हे सोम ! तू सुरक्षित होकर सब शक्तियों का रक्षण करनेवाला हो ।

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    विषय

    उत्तम शासकवत् आत्मा के शासन का वर्णन।

    भावार्थ

    हे (इन्दो) ऐश्वर्यवन् ! तू (दिवः पृथिव्याः) भूमि और आकाश पर (अधि भव) शासक हो। तू (द्युम्न-वर्धनः) ऐश्वर्य का बढ़ाने वाला (भव) हो और (वाजानां पतिः भव) ऐश्वर्यो, ज्ञानों, बलों का पालक हो।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    गोतम ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:—१ ककुम्मती गायत्री। २ यवमध्या गायत्री। ३, ५ गायत्री। ४, ६ निचृद् गायत्री॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Supremely excellent soma spirit of the universe, be the promoter and exalter of our wealth, power and enlightenment on earth and in heaven and be the protector and promoter of the food, energy and excellence of our human community.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमेश्वर असा उपदेश करतो की हे शूर वीरांनो! तुम्ही परिश्रमानंतर त्या पराशक्तीची प्रार्थना करा की आमचे ऐश्वर्य सर्वत्र पसरावे व या द्युलोक व पृथ्वीलोकात शांतता प्रस्थापित व्हावी.

    टिप्पणी

    तात्पर्य हे की माणूस कितीही ऐश्वर्यसंपन्न असेल किंवा तेजस्वी व ब्रह्मवर्चस्वी असेल तरीही ज्याने या जगाला नियमात बांधून ठेवलेले आहे त्या पराशक्तीचे साह्य घ्यावे लागते. ॥२॥

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