ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 31/ मन्त्र 3
तुभ्यं॒ वाता॑ अभि॒प्रिय॒स्तुभ्य॑मर्षन्ति॒ सिन्ध॑वः । सोम॒ वर्ध॑न्ति ते॒ मह॑: ॥
स्वर सहित पद पाठतुभ्य॑म् । वाताः॑ । अ॒भि॒ऽप्रियः॑ । तुभ्य॑म् । अ॒र्ष॒न्ति॒ । सिन्ध॑वः । सोम॑ । वर्ध॑न्ति । ते॒ । महः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
तुभ्यं वाता अभिप्रियस्तुभ्यमर्षन्ति सिन्धवः । सोम वर्धन्ति ते मह: ॥
स्वर रहित पद पाठतुभ्यम् । वाताः । अभिऽप्रियः । तुभ्यम् । अर्षन्ति । सिन्धवः । सोम । वर्धन्ति । ते । महः ॥ ९.३१.३
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 31; मन्त्र » 3
अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 21; मन्त्र » 3
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अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 21; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(सोम) हे परमात्मन् ! (तुभ्यम्) तव (वाताः) वीर्येण सर्वव्यापनसमर्थाः शूरवीराः (अभिप्रियः) प्रेमास्पदानि भवन्ति किञ्च (तुभ्यम्) तव नियमेन (सिन्धवः) सिन्ध्वादिनद्यः (अर्षन्ति) वहन्ति (ते) तव (महः) यशः (वर्धन्ति) वर्धयन्ति ॥३॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(सोम) हे परमात्मन् ! (तुभ्यम्) तुमको (वाताः) शूरवीर “वान्ति वीरधर्मेण सर्वत्र गच्छन्ति इति वाताः शूरवीराः=जो वीर धर्म से सर्वत्र फैल जायें, उनका नाम यहाँ वाताः है” (अभिप्रियः) वे प्यारे हैं और (तुभ्यम्) तुम्हारे नियम से (सिन्धवः) सिन्धु आदि नदियाँ (अर्षन्ति) बहती हैं, (ते) तुम्हारे (महः) यश को (वर्धन्ति) बढ़ाती हैं ॥३॥
भावार्थ
परमात्मा के नियम से शूरवीर उत्पन्न होकर उसके यश को बढ़ाते हैं और परमात्मा के नियम से ही सिन्धु आदि महानद स्यन्दमान होकर सम्पूर्ण धरातल को सिञ्चित करते हैं ॥३॥
विषय
'प्राणायाम व स्वाध्याय' से सोमरक्षण
पदार्थ
[१] हे (सोम) = वीर्यशक्ते! (तुभ्यम्) = तेरे लिये (वाता:) = प्राण (अभिप्रियः) = अभिप्रीणित करनेवाले होते हैं । प्राणायाम के द्वारा शरीर में इन सोमकणों की ऊध्वर्गति होती है। इसी प्रकार (तुभ्यम्) = तेरे लिये (सिन्धवः) = ज्ञान के समुद्र अर्षन्ति गतिवाले होते हैं। जितना जितना हम स्वाध्याय की वृत्तिवाले बनते हैं, उतना उतना ही हम सोमरक्षण के योग्य बनते हैं। स्वाध्याय से हम व्यसनों से बचे रहते हैं। यह व्यसनों से रक्षण हमारे लिये सोमरक्षण का साधन बन जाता है। सुरक्षित सोम इस ज्ञानाग्नि का ईंधन बनकर उसे दीप्त करता है। एवं प्राणायाम व स्वाध्याय से सोम का रक्षण होता है । [२] (सोम) = हे सोम ! ये प्राणायाम और स्वाध्याय (ते महः) = तेरे तेज को (वर्धन्ति) = बढ़ाते हैं। शरीर में सुरक्षित सोम हमें तेजस्वी बनाता है।
भावार्थ
भावार्थ - प्राणायाम व स्वाध्याय के द्वारा सोम का रक्षण करके हम तेजस्वी बनें।
विषय
उत्तम शासकवत् आत्मा के शासन का वर्णन।
भावार्थ
हे (सोम) ओषधि वर्ग के समान सब को सुख देने हारे ! (वाताः) वायुगणवत् बलशाली, जीवनप्रद् पदार्थं (तुभ्यं अभि-प्रियः) तुझे पूर्ण तृप्ति पुष्टि करने वाले हों और (सिन्धवः) वेग से जाने वाले नदों के समान वेगवान् अश्वादि एवं प्राणगण और देहगत नाड़ियें (तुभ्यम् अर्षन्ति) तेरे लिये गति करते हैं। हे (सोम) ऐश्वर्यवन् वे (ते महः वर्धन्ति) तेरे तेज को बढ़ाते हैं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
गोतम ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:—१ ककुम्मती गायत्री। २ यवमध्या गायत्री। ३, ५ गायत्री। ४, ६ निचृद् गायत्री॥
इंग्लिश (1)
Meaning
O Soma, lord of supreme felicity, the dearest most pleasant winds blow for you, the rolling seas flow for you, and they all exalt your glory.
मराठी (1)
भावार्थ
परमेश्वराच्या व्यवस्थेनुसार शूरवीर उत्पन्न होऊन त्याचे यश वाढवितात व परमेश्वराच्या नियमानेच सिंधु इत्यादी महानद प्रवाहित होऊन संपूर्ण धरातल सिंचित करतात. ॥३॥
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