ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 33/ मन्त्र 1
प्र सोमा॑सो विप॒श्चितो॒ऽपां न य॑न्त्यू॒र्मय॑: । वना॑नि महि॒षा इ॑व ॥
स्वर सहित पद पाठप्र । सोमा॑सः । वि॒पः॒ऽचितः॑ । अ॒पाम् । न । य॒न्ति॒ । ऊ॒र्मयः॑ । वना॑नि । म॒हि॒षाःऽइ॑व ॥
स्वर रहित मन्त्र
प्र सोमासो विपश्चितोऽपां न यन्त्यूर्मय: । वनानि महिषा इव ॥
स्वर रहित पद पाठप्र । सोमासः । विपःऽचितः । अपाम् । न । यन्ति । ऊर्मयः । वनानि । महिषाःऽइव ॥ ९.३३.१
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 33; मन्त्र » 1
अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 23; मन्त्र » 1
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अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 23; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अधुना ईश्वरप्राप्तये ज्ञानकर्मोपासनापराणि त्रीणि वचांसि निरूप्यन्ते।
पदार्थः
(अपाम् ऊर्मयः न) यथा वीचयः प्रकृत्या चन्द्रं प्रति समुच्छलन्ति (वनानि महिषाः इव) यथा च महात्मानः प्रकृत्या सत्कर्माश्रयन्ते तथा (सोमासः विपश्चितः प्रयन्ति) सौम्याः विद्वांसो ज्ञानकर्मोपासनाबोधिका वेदवाचः समाश्रयन्ति ॥१॥
हिन्दी (3)
विषय
अब ईश्वरप्राप्ति के लिये ज्ञान-कर्म-उपासना विषयक तीन वाणीयें कही जाती हैं।
पदार्थ
(अपाम् ऊर्मयः न) जैसे समुद्र की लहरें स्वभाव ही से चन्द्रमा की और उछलती हैं और (वनानि महिषाः इव) जैसे महात्मा लोग स्वभाव ही से भजन की ओर जाते हैं, इसी प्रकार (सोमासः विपश्चितः प्रयन्ति) सौम्य स्वभाववाले विद्वान् ज्ञान-कर्म-उपासनाबोधक वेदवाणी की ओर लगते हैं ॥१॥
भावार्थ
वेदरूपी वाणी में इस प्रकार आकर्षण शक्ति है, जैसे कि पूर्णिमा के चन्द्रमा में आकर्षण शक्ति होती है। अर्थात् पूर्णिमा को चन्द्रमा के आह्लादक धर्म की ओर सब लोग प्रवाहित होते हैं, इसी प्रकार ओजस्विनी वेदवाक् अपनी ओर विमल दृष्टिवाले लोगों को खींचती है ॥१॥
विषय
विपश्चित सोम
पदार्थ
[१] (विपश्चितः) = हमारे जीवनों में ज्ञानों का वर्धन करनेवाले (सोमासः) = सोमकण (प्रयन्ति) = हमें प्रकर्षेण प्राप्त होते हैं। इस प्रकार हमें प्राप्त होते हैं, (न) = जैसे कि (अपां ऊर्मयः) = प्रजाओं को 'भूख- प्यास, शोक-मोह व जरा-मत्यु' रूप छह ऊर्मियाँ प्राप्त होती हैं। सामान्य मनुष्य को भूख- व्यास अवश्य लगती ही है। इसी प्रकार हमें सोमकण अवश्य प्राप्त हों। [२] सोमकण हमें इस प्रकार प्राप्त हों (इव) = जैसे कि (महिषाः) = [मह पूजायाम्] पूजा की वृत्तिवाले लोग (वनानि) = वनों को, एकान्त देशों को प्राप्त होते हैं। उपासक एकान्त देश को प्राप्त करके प्रभु के उपासन में प्रवृत्त होता है। हमें भी सोम प्राप्त होकर इसी प्रकार उपासना की वृत्तिवाला बनायें ।
भावार्थ
भावार्थ- सोमकणों को शरीर में सुरक्षित रखकर हम अपने ज्ञानों का वर्धन करनेवाले बनें ।
विषय
पवमान सोम। जंगल के महिषों वा जलतरंगों के समान, शासकों का कर्त्तव्य। पक्षान्तर में—प्राणों के बीच जीव की स्थिति।
भावार्थ
(महिषाः इव वनानि) अरने भैंसे जिस प्रकार वनों में प्रवेश करते और (अपां ऊर्मयः न) जलों के तरंग जिस प्रकार (अपां यन्ति) गम्भीर जलों के बीच गमन करते हैं। उसी प्रकार (विपश्चितः) विद्वान् (सोमासः) शासक जन (अपां) आप्त प्रजाओं के बीच (प्र यन्ति) आगे बढ़ते हैं। (२) अध्यात्म में—(सोमासः) जीव गण प्राणों के बीच जीवन यापन करते हैं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
त्रित ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता ॥ छन्द:- १ ककुम्मती गायत्री। २, ४, ५ गायत्री। ३, ६ निचृद् गायत्री॥ षडृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Just as waves of water rise to the moon and great men strive for things of beauty and goodness, so do inspired learned sages, lovers of dynamic peace and goodness, move forward to realise the supreme power and Spirit of the Vedic hymns.
मराठी (1)
भावार्थ
वेदरूपी वाणीत या प्रकारची आकर्षणशक्ती आहे. जशी पौर्णिमेच्या चंद्रात आकर्षण शक्ती असते. अर्थात पौर्णिमेच्या चंद्राच्या आल्हादक धर्माकडे सर्व लोक प्रवाहित होतात. याच प्रकारे ओजस्विनी वेदवाक् आपल्याकडे पवित्र दृष्टीच्या लोकांना आकर्षित करते. ॥१॥
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