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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 34 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 34/ मन्त्र 1
    ऋषिः - त्रितः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    प्र सु॑वा॒नो धार॑या॒ तनेन्दु॑र्हिन्वा॒नो अ॑र्षति । रु॒जद्दृ॒ळ्हा व्योज॑सा ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्र । सु॒वा॒नः । धार॑या । तना॑ । इन्दुः॑ । हि॒न्वा॒नः । अ॒र्ष॒ति॒ । रु॒जत् । दृ॒ळ्हा । वि । ओज॑सा ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्र सुवानो धारया तनेन्दुर्हिन्वानो अर्षति । रुजद्दृळ्हा व्योजसा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    प्र । सुवानः । धारया । तना । इन्दुः । हिन्वानः । अर्षति । रुजत् । दृळ्हा । वि । ओजसा ॥ ९.३४.१

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 34; मन्त्र » 1
    अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 24; मन्त्र » 1
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ परमात्मनोऽद्भुतसत्ता वर्ण्यते।

    पदार्थः

    (इन्दुः) परमैश्वर्यवान् स परमात्मा (दृळ्हा विरुजत्) अज्ञानानि नाशयन् (धारया प्रसुवानः) स्वाधिकरणसत्तया सर्वमुत्पादयन् (हिन्वानः) सर्वं प्रेरयन् (तना अर्षति) एतद्विस्तृतं ब्रह्माण्डं व्याप्नोति ॥१॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    अब परमात्मा की अद्भुत सत्ता वर्णन की जाती है।

    पदार्थ

    (इन्दुः) परमैश्वर्यवाला परमात्मा (ओजसा) अपने पराक्रम से (दृळ्हा विरुजत्) अज्ञानों का नाश करता हुआ (धारया प्रसुवानः) अपनी अधिकरणरूप सत्ता से सबको उत्पन्न करता हुआ (हिन्वानः) सबकी प्रेरणा करता हुआ (तना अर्षति) इस विस्तृत ब्रह्माण्ड में व्याप्त हो रहा है ॥१॥

    भावार्थ

    परमात्मा की ऐसी अद्भुत सत्ता है कि वह निरवयव होकर भी सम्पूर्ण सावयव पदार्थों का अधिष्ठान है। उसी के आधार पर यह चराचर जगत् स्थिर है और वह सर्वप्रेरक होकर कर्मरूपी चक्र द्वारा सबको प्रेरणा करता है ॥१॥

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    विषय

    धारया तना

    पदार्थ

    [१] (सुवानः) = शरीर में उत्पन्न किया जाता हुआ (इन्दुः) = हमें शक्तिशाली बनानेवाला सोम (धारया) = धारणशक्ति के हेतु से तथा (तना) = शक्तियों के विस्तार के हेतु से (हिन्वानः) = शरीर के अन्दर प्रेरित किया जाता हुआ (प्र अर्षति) = प्रकर्षेण प्राप्त होता है। शरीर में धारण किया हुआ यह सोम हमारा धारण करता है, हमारी शक्तियों का विस्तार करता है। [२] यह सोम (ओजसा) = ओजस्विता के द्वारा (दृढा) = दृढ़ भी शत्रु पुरियों को काम-क्रोध-लोभ की नगरियों को (विरुजत्) = विशेषेण भग्न कर देता है । सोमरक्षण से काम-क्रोध-लोभ का विनाश करके ही यह 'त्रित' बनता है, तीनों को तैरनेवाला ।

    भावार्थ

    भावार्थ- सोम [क] हमारा धारण करता है, [ख] यह हमारी शक्तियों का विस्तार करता है, [ग] काम-क्रोध-लोभ का विनाश करता है ।

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    विषय

    पवमान सोम। वीर आक्रामक नेता के कर्त्तव्य। उसी प्रकार देह-बन्धन नाशक योगी को उत्तम पद प्राप्ति का वर्णन।

    भावार्थ

    (इन्दुः) तेजस्वी, शत्रु पर द्रुत वेग से आक्रमण करने वाला वीर जन (ओजसा) बल-पराक्रम से (दृढ़ा) दृढ़ दुर्गों को (रुजत्) तोड़ता फोड़ता हुआ, जिस प्रकार (धारया सुवानः) वाणी द्वारा सैन्य को सञ्चालित करता हुआ (तना प्र अर्षति) नाना धनों को प्राप्त होता है उसी प्रकार (धारया सुवानः) धारा, एक रस रूप ज्ञान-धारा से परिष्कृत होकर बल से देहबन्धनों को तोड़ता हुआ योगी (तना हिन्वानः) व्यापक बलों को बढ़ाता हुआ उत्तम पद को प्राप्त होता है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    त्रित ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता ॥ छन्दः- १, २, ४ निचृद गायत्री। ३, ५, ६ गायत्री॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Creating, inspiring and impelling life onward all round with streams of divine energy and ambition, Soma, blissful creativity of the lord omnipotent, goes on, breaking down strongholds of negativity, evil and darkness all round with its might and lustre.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमात्म्याची अशी अद्भुत सत्ता आहे की तो निरवयव असूनही संपूर्ण सावयव पदार्थांचे अधिष्ठान आहे. त्याच्याच आधारावर हे चराचर जगत् स्थिर आहे व तो सर्व प्रेरक बनून कर्मरूपी चक्राद्वारे सर्वांना प्रेरणा करतो. ॥१॥

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