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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 40 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 40/ मन्त्र 1
    ऋषिः - बृहन्मतिः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    पु॒ना॒नो अ॑क्रमीद॒भि विश्वा॒ मृधो॒ विच॑र्षणिः । शु॒म्भन्ति॒ विप्रं॑ धी॒तिभि॑: ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    पु॒ना॒नः । अ॒क्र॒मी॒त् । अ॒भि । विश्वाः॑ । मृधः॑ । विऽच॑र्षणिः । शु॒म्भन्ति॑ । विप्र॑म् । धी॒तिऽभिः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    पुनानो अक्रमीदभि विश्वा मृधो विचर्षणिः । शुम्भन्ति विप्रं धीतिभि: ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    पुनानः । अक्रमीत् । अभि । विश्वाः । मृधः । विऽचर्षणिः । शुम्भन्ति । विप्रम् । धीतिऽभिः ॥ ९.४०.१

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 40; मन्त्र » 1
    अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 30; मन्त्र » 1
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ ईश्वरस्य सकाशात् शीलं प्रार्थ्यते।

    पदार्थः

    (विचर्षणिः) यः सर्वद्रष्टा परमात्मा (पुनानः) सत्कर्मिणः पवित्रयन् (विश्वा मृधः अभ्यक्रमीत्) अखिलान् दुराचारान् नाशयति (विप्रं धीतिभिः) तं परमात्मानं विद्वांसः वेदवाग्भिः (शुम्भन्ति स्तुत्वा) विभूषयन्ति ॥१॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    अब ईश्वर के पास से अच्छे स्वभाव की प्रार्थना करते हैं।

    पदार्थ

    (विचर्षणिः) सर्वद्रष्टा परमात्मा (पुनानः) सत्कर्मियों को पवित्र करता हुआ (विश्वा मृधः अभ्यक्रमीत्) अखिल दुराचारियों का नाश करता है (विप्रं धीतिभिः) उस परमात्मा को विद्वान् लोग वेदवाणियों से (शुम्भन्ति स्तुत्वा) स्तुति करके विभूषित करते हैं ॥१॥

    भावार्थ

    परमात्मा सत्कर्मी पुरुषों को शुभ स्वभाव प्रदान करता है। तात्पर्य यह है कि सत्कर्मियों को उनके शुभकर्म्मानुसार शुभ फल देता है और दुष्कर्मियों को दुष्कर्मानुसार अशुभ फल देता है ॥१॥

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    विषय

    सब शत्रुओं का विनाश

    पदार्थ

    [१] (पुनानः) = हमें पवित्र करता हुआ यह सोम (विश्वाः मृधः अभि) = सब शत्रुओं के प्रति (अक्रभीत्) = आक्रमण करनेवाला होता है। काम-क्रोध-लोभ आदि पर आक्रमण करके यह उन्हें विनष्ट करता है, रोगकृमियों को भी यह आक्रान्त करता है। यह सोम (विचर्षणिः) = हमारा विशेषरूप से देखनेवाला, ध्यान करनेवाला है। [२] (विप्रा:) = अपना विशेषरूप से पूरण करनेवाले ज्ञानी लोग (धीतिभिः) = स्तुतियों व उत्तम कर्मों के द्वारा (शुम्भन्ति) = सोम को शरीर में ही सुशोभित करते हैं। सोमरक्षण में स्तुति साधन बनती है। कर्मों में लगे रहने से ही हम वासनाओं से बचते हैं और सोम को रक्षित कर पाते हैं ।

    भावार्थ

    भावार्थ–सोम हमारे रोग व वासना रूप शत्रुओं पर आक्रमण करता है। इसका रक्षण स्तुति व कर्म में लगे रहने से होता है।

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    विषय

    पवमान सोम।

    भावार्थ

    (विचर्षणिः) ज्ञानों, लोकों का द्रष्टा (पुनानः) पवित्र करता हुआ वह (विश्वाः मृधः) सब हिंसाकारी, वाधक वृत्तियों का (अभि अक्रमीत्) आगे बढ़कर मुकाबला, साम्मुख्य करता है उसी (विप्रं) कर्मनिष्ठ विद्वान् ज्ञानी पुरुष को (धीतिभिः शुम्भन्ति) उत्तम स्तुतियों और कर्मों द्वारा सुशोभित करते हैं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    बृहन्मतिर्ऋषिः। पवमानः सोमो देवता॥ छन्दः- १, २ गायत्री। ३-६ निचृद् गायत्री॥ षडृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Soma, spirit of universal purity and purification, all watching, faces and overcomes all adversaries of the carnal world. Sages celebrate and glorify the vibrant all prevailing spirit with songs of adoration.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमात्मा सत्कर्मी पुरुषांना शुभस्वभाव प्रदान करतो. सत्कर्मी लोकांना त्यांच्या शुभकर्मानुसार शुभ फल देतो व दुष्कर्म करणाऱ्यांना दुष्कर्मानुसार अशुभ फल देतो ॥१॥

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