ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 41/ मन्त्र 1
प्र ये गावो॒ न भूर्ण॑यस्त्वे॒षा अ॒यासो॒ अक्र॑मुः । घ्नन्त॑: कृ॒ष्णामप॒ त्वच॑म् ॥
स्वर सहित पद पाठप्र । ये । गावः॑ । न । भूर्ण॑यः । त्वे॒षाः । अ॒यासः॑ । अक्र॑मुः । घ्नन्तः॑ । कृ॒ष्णाम् । अप॑ । त्वच॑म् ॥
स्वर रहित मन्त्र
प्र ये गावो न भूर्णयस्त्वेषा अयासो अक्रमुः । घ्नन्त: कृष्णामप त्वचम् ॥
स्वर रहित पद पाठप्र । ये । गावः । न । भूर्णयः । त्वेषाः । अयासः । अक्रमुः । घ्नन्तः । कृष्णाम् । अप । त्वचम् ॥ ९.४१.१
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 41; मन्त्र » 1
अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 31; मन्त्र » 1
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अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 31; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथ परमात्मनो रचनामहत्त्वं वर्ण्यते।
पदार्थः
(ये गावः न) पृथिव्यादिलोकसदृशा ये लोकाः (भूर्णयः) शीघ्रगामिनः (त्वेषाः) दीप्तिमन्तः (अयासः) वेगवन्तः (कृष्णाम् त्वचम्) नीरन्ध्रान्धकारं (अपघ्नन्तः प्राक्रमुः) नाशयन्तः प्रक्राम्यन्ति ॥१॥
हिन्दी (3)
विषय
अब परमात्मा की रचना का महत्त्व वर्णन करते हैं।
पदार्थ
(ये गावः न) पृथिव्यादि लोकों के समान जो लोक (भूर्णयः) शीघ्र गतिशील हैं (त्वेषाः) जो दीप्तिमान् और (अयासः) वेगवाले (कृष्णाम् त्वचम्) महा गूढ़ अन्धकार को (अपघ्नन्तः प्राक्रमुः) नष्ट करते हुये प्रक्रमण करते हैं ॥१॥
भावार्थ
परमात्मा सब लोक-लोकान्तरों को उत्पन्न करता है, उसी की सत्ता से सब पृथिव्यादिलोक गति कर रहे हैं ॥१॥
विषय
दीप्त गतिशील निर्मल
पदार्थ
[१] (ये) = जो सोम (गावः न) = [अर्थं गमयन्ति] जैसे पदार्थों का ज्ञान देनेवाले हैं, उसी प्रकार (भूर्णयः) = हमारा भरण करनेवाले हैं। सोम ज्ञानाग्नि का ईंधन बनकर बुद्धि को सूक्ष्म बनाता है। इस सूक्ष्म बुद्धि के द्वारा हम तत्त्वज्ञान को प्राप्त करते हैं। इस प्रकार ये सोम हमारे लिये 'गावः' अर्थों के गमक होते हैं। शरीर में शक्ति का संचार करते हुए ये हमारा भरण करते हैं । [२] (त्वेषाः) = ये सोम ज्ञानदीप्त हैं, हमारे ज्ञान को दीप्त करते हैं। (अयासः) = ये सोम गमनशील हैं। ज्ञानेन्द्रियों के दृष्टिकोण से ये 'त्वेष' हैं, कर्मेन्द्रियों के दृष्टिकोण से 'अयासः ' हैं। ऐसे ये सोम (प्र अक्रमुः) = शरीर में गतिवाले होते हैं । [३] ये सोम (कृष्णां त्वचम्) = हृदय पर आये हुए वासना के मलिन आवरण को (अपघ्नन्तः) = दूर विनष्ट करनेवाले हैं। मस्तिष्क को ये सोम दीप्त बनाते हैं, शरीर को गतिशील तथा हृदय को वासना के मलिन आवरण से रहित ।
भावार्थ
भावार्थ- सुरक्षित सोम हमें 'दीप्त गतिशील व निर्मल' बनाते हैं।
विषय
पवमान सोम। विद्वान् परिव्राजकों के कर्त्तव्य। अज्ञान दूरकर ज्ञान का प्रचार करें।
भावार्थ
(ये) जो (गावः) देह में इन्द्रिय, सूर्य में किरणों के समान (भूर्णयः) क्षिप्रगामी, जनों को पालने वाले, (त्वेषाः) कान्तिमान्, तीक्ष्ण और (कृष्णाम् त्वचम् अप घ्नन्तः) काली त्वचा के समान आवरण रूप घोर अज्ञान-अन्धकार को दूर करते हुए (अयासः) गमनशील, परिव्राजक वा (अयासः) अनर्थक होकर (प्र अक्रमुः) आगे बढ़ें वा कार्य प्रारम्भ करें।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
मेध्यातिथिर्ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:- १, ३, ४, ५ गायत्री। २ ककुम्मती गायत्री। ६ निचृद् गायत्री॥ षडृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
We adore the ceaseless radiations of divinity which, like restless rays of the sun, blazing with lustrous glory, move and shower on the earth and dispel the dark cover of the night.
मराठी (1)
भावार्थ
परमात्मा सर्व लोक लोकांतरांना उत्पन्न करतो. त्याच्या सत्तेने सर्व पृथ्वी इत्यादी लोक गती करत आहेत. ॥१॥
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