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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 43 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 43/ मन्त्र 1
    ऋषिः - मेध्यातिथिः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    यो अत्य॑ इव मृ॒ज्यते॒ गोभि॒र्मदा॑य हर्य॒तः । तं गी॒र्भिर्वा॑सयामसि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यः । अत्यः॑ऽइव । मृ॒ज्यते॑ । गोभिः॑ । मदा॑य । ह॒र्य॒तः । तम् । गीः॒ऽभिः । वा॒स॒या॒म॒सि॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यो अत्य इव मृज्यते गोभिर्मदाय हर्यतः । तं गीर्भिर्वासयामसि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यः । अत्यःऽइव । मृज्यते । गोभिः । मदाय । हर्यतः । तम् । गीःऽभिः । वासयामसि ॥ ९.४३.१

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 43; मन्त्र » 1
    अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 33; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ परमात्मनो दातृत्वं वर्ण्यते।

    पदार्थः

    (हर्यतः यः) अतिकमनीयो यः परमात्मा (अत्यः इव) विद्युदिव दुर्ग्राह्यः (गोभिः मदाय मृज्यते) यश्च ब्रह्मानन्दप्राप्तय इन्द्रियैः साक्षात्क्रियते (तम्) तं परमात्मानं (गीर्भिः) स्तुतिभिः (वासयामसि) हृदयाधिष्ठितं कुर्मः ॥१॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    अब परमात्मा का दातृत्व वर्णन करते हैं।

    पदार्थ

    (हर्यतः यः) सर्वोपरि कमनीय जो परमात्मा (अत्यः इव) विद्युत् के समान दुर्ग्राह्य है (गोभिः मदाय मृज्यते) और जो परमात्मा ब्रह्मानन्दप्राप्ति के लिये इन्द्रियों द्वारा प्रत्यक्ष किया जाता है (तम्) उस परमात्मा को (गीर्भिः) अपनी स्तुतियों द्वारा (वासयामसि) हृदयाधिष्ठित करते हैं ॥१॥

    भावार्थ

    जो लोग परमात्मा की प्रार्थना उपासना और स्तुति करते हैं, वे अवश्यमेव परमात्मा के स्वरूप को अनुभव करते हैं ॥१॥

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    विषय

    गोभिः गीर्भिः

    पदार्थ

    [१] (यः) = जो सोम (अत्यः इव) = सततगामी अश्व के समान है, अर्थात् यह हमें शक्ति सम्पन्न बनाकर खूब ही गतिमय करता है। यह सोम (गोभिः) = ज्ञान की वाणियों से (मृज्यते) = शुद्ध किया जाता है। यदि हम स्वाध्याय में लगते हैं तो वासनाओं से आक्रान्त न होने से यह सोम शुद्ध बना रहता है। यह (मदाय) = आनन्द व उल्लास के लिये होता है। (हर्यतः) = गतिशील व कान्त होता है । हमें गतिशील बनाता है, चाहने योग्य होता है । [२] (तम्) = उस सोम को (गीर्भिः) = स्तुति-वाणियों के द्वारा वासयामसि अपने अन्दर धारण करते हैं। प्रभु-स्तवन करते हैं और प्रभु-स्तवन द्वारा सोम का रक्षण कर पाते हैं। यह प्रभु स्मरण हमें वासनाओं से बचाता है, और इस प्रकार सोम को हमारे में बसाता है ।

    भावार्थ

    भावार्थ - स्वाध्याय [गोभिः व स्तुति [गीर्भिः]] सोमरक्षण के साधन हैं।

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    विषय

    पवमान सोम।

    भावार्थ

    (अत्यः इव गोभिः) जिस प्रकार अश्व उत्तम २ गतियों से सुशोभित होता है उसी प्रकार (यः) जो प्रभु (मदाय) अति आनन्द सुख के लिये (हर्यतः) कान्तिमान् होकर (गोभिः) वाणियों द्वारा (मृज्यते) परिष्कृत होता है (तं) उस को हम (गीर्भिः) वाणियों द्वारा (वासयामसि) अलंकृत करें, उसे अपने हृदय में बसावें।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    मेध्यातिथिर्ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्दः- १, २, ४, ५ गायत्री । ३, ६ निचृद् गायत्री॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    The Soma which is radiant and pure like virgin energy of nature and most blissful in experience is realised for spiritual joy through the senses, mind and intelligence.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जे लोक परमेश्वराची प्रार्थना, उपासना व स्तुती करतात ते अवश्य परमेश्वराच्या स्वरूपाचा अनुभव घेतात. ॥१॥

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