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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 44 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 44/ मन्त्र 1
    ऋषिः - अयास्यः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    प्र ण॑ इन्दो म॒हे तन॑ ऊ॒र्मिं न बिभ्र॑दर्षसि । अ॒भि दे॒वाँ अ॒यास्य॑: ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्र । नः॒ । इ॒न्दो॒ इति॑ । म॒हे । तने॑ । ऊ॒र्मिम् । न । बिभ्र॑त् । अ॒र्ष॒सि॒ । अ॒भि । दे॒वान् । अ॒यास्यः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्र ण इन्दो महे तन ऊर्मिं न बिभ्रदर्षसि । अभि देवाँ अयास्य: ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    प्र । नः । इन्दो इति । महे । तने । ऊर्मिम् । न । बिभ्रत् । अर्षसि । अभि । देवान् । अयास्यः ॥ ९.४४.१

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 44; मन्त्र » 1
    अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 1; मन्त्र » 1
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ परमात्मनः मेधाविबुद्धिविषयत्वं वर्ण्यते।

    पदार्थः

    (इन्दो) हे परमात्मन् ! (ऊर्मिम् बिभ्रत्) भवान् आनन्दतरङ्गान् धारयन् (महे तने) महता ऐश्वर्याय (नः न प्रार्षसि) अस्मान् द्रुतं प्राप्नोति (अभिदेवान्) कर्मयोगिनः (अयास्यः) विना प्रयत्नं सङ्गच्छति ॥१॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    अब परमात्मा मेधावी लोगों की बुद्धि का विषय है, यह वर्णन करते हैं।

    पदार्थ

    (इन्दो) हे परमात्मन् ! (ऊर्मिम् बिभ्रत्) आप आनन्द तरङ्गों को धारण करते हुए (महे तने) बड़े ऐश्वर्य के लिये (नः न प्रार्षसि) हमको शीघ्र ही प्राप्त होते हैं और (अभिदेवान्) कर्मयोगियों को (अयास्यः) विना प्रयत्न प्राप्त होते हैं ॥१॥

    भावार्थ

    जो पुरुष अनुष्ठानशील नहीं अर्थात् उद्योगी बनकर कर्म्मयोग में तत्पर नहीं है, वह पुरुष कदाचित् भी परमात्मा को नहीं पा सकता, इसलिये उद्योगी बनकर कर्म्म में तत्पर होना प्रत्येक मनुष्य का कर्तव्य होना चाहिये ॥१॥

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    विषय

    'अयास्य' का देवों की ओर जाना

    पदार्थ

    [१] हे (इन्दो) = शक्ति को देनेवाले सोम ! तू (नः) = हमारे (महे तने) = महान् शक्तियों के विस्तार के लिये होता है। तू (ऊर्मिं न) = [ light, speed] प्रकाश व गति के समान (बिभ्रत्) = हमारा धारण करता हुआ (प्र अर्षसि) = हमें प्रकर्षेण प्राप्त होता है । सोमरक्षण से ही मस्तिष्क में प्रकाश तथा शरीर में स्फूर्ति व गति उत्पन्न होती है। [२] प्रकाश तथा स्फूर्ति व गति से सम्पन्न यह (अयास्यः) = अनथक श्रमशील व्यक्ति (देवान् अभि) = दिव्य गुणों की ओर चलता है। दिव्य गुणों की ओर चलते-चलते ही तो यह उस 'देव' प्रभु तक पहुँचेगा । =

    भावार्थ

    भावार्थ- सुरक्षित सोम प्रकाश व गति को प्राप्त कराके हमारा धारण करता है। यह हमें दिव्यगुणों की ओर ले चलता हुआ 'देव' प्रभु का प्राप्त करानेवाला है।

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    विषय

    पवमान सोम।

    भावार्थ

    हे (इन्दो) ऐश्वर्यवन् ! तू (अयास्यः) मुख्य प्राण रूप होर (महे तने) बड़े भारी ऐश्वर्य को प्राप्त करने के लिये (ऊर्मिं न) तरंग के समान उत्साह को धारण करता हुआ, (नः देवान् अभि अर्षसि) तुझे चाहने वाले हमें तू प्राप्त हो।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    यास्य ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्दः-१ निचृद् गायत्री। २-६ गायत्री॥ षडृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    O Soma, vibrant and fast, bearing waves of light and energy of divinity, you radiate to the noble and brilliant divine souls for our great advancement and achievement all round in life.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जो पुरुष अनुष्ठानशील नाही अर्थात उद्योगी बनून कर्मयोगात तत्पर नाही तो पुरुष कधीही परमेश्वराला प्राप्त करू शकत नाही. त्यासाठी उद्योगी बनून कर्मात तत्पर होणे प्रत्येक माणसाचे कर्तव्य असले पाहिजे. ॥१॥

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