ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 48/ मन्त्र 1
तं त्वा॑ नृ॒म्णानि॒ बिभ्र॑तं स॒धस्थे॑षु म॒हो दि॒वः । चारुं॑ सुकृ॒त्यये॑महे ॥
स्वर सहित पद पाठतम् । त्वा॒ । नृ॒म्णानि॑ । विभ्र॑तम् । स॒धऽस्थे॑षु । म॒हः । दि॒वः । चारु॑म् । सु॒ऽकृ॒त्यया॑ । ई॒म॒हे॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
तं त्वा नृम्णानि बिभ्रतं सधस्थेषु महो दिवः । चारुं सुकृत्ययेमहे ॥
स्वर रहित पद पाठतम् । त्वा । नृम्णानि । विभ्रतम् । सधऽस्थेषु । महः । दिवः । चारुम् । सुऽकृत्यया । ईमहे ॥ ९.४८.१
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 48; मन्त्र » 1
अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 5; मन्त्र » 1
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अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 5; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथ जगत्कर्तुः गुणकर्मस्वभावा उच्यन्ते।
पदार्थः
(नृम्णानि बिभ्रतम्) बहुरत्नधारणकर्त्तारं (दिवो महः) द्युलोकप्रकाशकं (सुकृत्यया चारुम्) मनोहरकृत्यैः शोभायमानं (तं त्वा) पूर्वोक्तं भवन्तं (सधस्थेषु) यज्ञस्थलेषु (ईमहे) स्तुमः ॥१॥
हिन्दी (3)
विषय
अब परमात्मा के गुण, कर्म और स्वभाव कहे जाते हैं।
पदार्थ
(नृम्णानि बिभ्रतम्) अनेक रत्नों को धारण करनेवाले (दिवो महः) द्युलोक के प्रकाशक (सुकृत्यया चारुम्) सुन्दर कर्मों से शोभायमान (तं त्वा) पूर्वोक्त आपकी (सधस्थेषु) यज्ञस्थलों में (ईमहे) स्तुति करते हैं ॥१॥
भावार्थ
सम्पूर्ण ऐश्वर्यों का धारण करनेवाला एकमात्र परमात्मा ही है ॥१॥
विषय
'शक्ति का धारक' सोम
पदार्थ
[१] हे सोम ! (नृम्णानि बिभ्रतम्) = [strength, wealth] शक्तियों व तेज आदि ऐश्वर्यों को धारण करते हुए (चारुम्) = सुन्दर जीवन को सुन्दर बनानेवाले, (तं त्वा) = उस तुझ को (सुकृत्यया)- = शोभन कर्मों के द्वारा (ईमहे) = [ wish, desire ] चाहते हैं । सोम के रक्षण से हमारी प्रवृत्ति शुभ कर्मों की ओर ही होती है। [२] (महः दिवः) = महान् ज्ञान के (सधस्थेषु) = मिलकर ठहरने के स्थानों के निमित्त हम इस सोम की कामना करते हैं। सोम के रक्षण से हम चित्तवृत्ति का निरोध करके हृदय में प्रभु का दर्शन करते हैं। यह हृदय 'सधस्थ' होता है, यहाँ हम परमात्मा के साथ स्थित हो रहे होते हैं। इस स्थिति में ही हमें महान् ज्ञान की प्राप्ति होती है। इसलिए 'महः दिवः सधस्थेषु' इन शब्दों का प्रयोग हुआ है ।
भावार्थ
भावार्थ- सोमरक्षण से उत्कृष्ट ज्ञान प्राप्त होता है। इसके रक्षण से हम उत्तम कर्मों में प्रेरित होते हैं। यह हमारे लिये शक्ति व धनों को धारण करता है।
विषय
पवमान सोम। सूर्य के तुल्य सर्वोपरि शासक से प्रजा का धनों के निमित्त प्रार्थना करना। विजेता शासक से याचना।
भावार्थ
(तं) उस (त्वा) तुझ को (महः दिवः सधस्थेषु) बड़े भारी नाना स्थानों में सूर्य के समान विशाल (दिवः) तेजस्वी, मूर्धन्य राजसभा के (सधस्थेषु) एकत्र स्थिति योग्य अधिवेशनों में (नृम्णानि) धनों वा नेता जनों से मनन करने योग्य कार्यों को (विभ्रतं) धारण करने वाले (चारुम् त्वा) कल्याणकारी तुझ को हम (सुकृत्यया) उत्तम कृत्यों द्वारा (नृम्णानि ईमहे) नाना धनों का याचना, प्रार्थना करते हैं।
टिप्पणी
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ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
कविर्भार्गव ऋषिः। पवमानः सोमो देवता॥ छन्दः- १, ५ गायत्री। २-४ निचृद् गायत्री॥ पञ्चर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
O Soma, Spirit of peace, purity and power, with holy acts of homage in the halls of yajna, we invoke, adore and worship you, lord of beauty and bliss, and exalt you in action, harbinger of the jewels of wealth, honour and excellence from the lofty regions of the light of heaven.
मराठी (1)
भावार्थ
संपूर्ण ऐश्वर्याचा धारणकर्ता एकमात्र परमात्माच आहे. ॥१॥
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