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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 61 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 61/ मन्त्र 1
    ऋषिः - अवत्सारः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    अ॒या वी॒ती परि॑ स्रव॒ यस्त॑ इन्दो॒ मदे॒ष्वा । अ॒वाह॑न्नव॒तीर्नव॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒या । वी॒ती । परि॑ । स्र॒व॒ । यः । ते॒ । इ॒न्दो॒ इति॑ । मदे॑षु । आ । अ॒व॒ऽअह॑न् । न॒व॒तीः । नव॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अया वीती परि स्रव यस्त इन्दो मदेष्वा । अवाहन्नवतीर्नव ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अया । वीती । परि । स्रव । यः । ते । इन्दो इति । मदेषु । आ । अवऽअहन् । नवतीः । नव ॥ ९.६१.१

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 61; मन्त्र » 1
    अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 18; मन्त्र » 1
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथेश्वरेण क्षात्रधर्म उपदिश्यते।

    पदार्थः

    (इन्दो) हे सेनाधीश ! (यः) यो वैरी (ते) तव (मदेषु) सर्वसुखकारकप्रजारक्षणेषु (आ) विघ्नं करोतु तं (अया वीती परिस्रव) स्वकीयाभिः क्रियाभिरभिभूतं कुरु। अथ च (अवाहन् नवतीः नव) नवनवतिविधदुर्गाणां विध्वंसनं कुरु ॥१॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    अब ईश्वर क्षात्रधर्म का उपदेश करते हैं।

    पदार्थ

    (इन्दो) हे सेनापते ! (यः) जो शत्रु (ते) तुम्हारे (मदेषु) सर्वसुखकारक प्रजापालन में (आ) विघ्न करे, उसको (अया वीती परिस्रव) अपनी क्रियाओं से अभिभूत करो और (अवाहन् नवतीः नव) निन्यानवे प्रकार के दुर्गों का भी ध्वंसन करो ॥१॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में क्षात्रधर्म्म का वर्णन है और परमात्मा से इस विषय का बल माँगा गया है कि हम सब प्रकार से शत्रुओं का नाश करके संसार में न्याय का प्रचार करें ॥१॥

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    विषय

    निन्यानवे असुर- पुरियों का विध्वंस

    पदार्थ

    [१] हे (इन्दो) = हमें शक्तिशाली बनानेवाले सोम ! तू (अया वीती) = [वी प्रजनने] इन शक्तियों के विकास के साथ परिस्त्रव शरीर में चारों ओर (परिस्त्रव) = परिस्रुत हो, गतिवाला हो कि (ते मदेषु) = तेरे से उत्पन्न उल्लासों में निवास करनेवाला (यः) = जो यह इन्द्र है वह (नव नवती:) = निन्यानवे असुरों की पुरियों को (आ अवाहन्) = समन्तात् सुदूर विनष्ट करनेवाला हो। [२] हमारे जीवनों में शतशः आसुरभाव जागते रहते हैं। कई बार हम इनके ही अधिष्ठान बन जाते हैं। जिस समय हम सोम की महिमा को समझ लेते हैं, उस समय हम सोमरक्षण करते हुए, इन आसुरभावों को विनष्ट करनेवाले बनते हैं ।

    भावार्थ

    भावार्थ - हम शरीर में सोम को रक्षित करें और सब आसुरभावों को मार भगायें।

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    विषय

    पवमान सोम। राजा के कर्त्तव्य।

    भावार्थ

    हे (इन्दो) ऐश्वर्यवन् ! तू (अया वीती) इस नीति से, (परि स्त्रव) आगे बढ़, कार्य कर कि (ते यः) तेरा जो कोई भी (मदेषु) संग्रामों में (नवतीः नव अवाहन) ९०ᳵ ९ अथवा ९० + ९ = ८१० वा ९९ शत्रु-नगरों को नाश कर सके। (२) अध्यात्म रस ऐसा बहे कि उसके आनन्द में जीव के ९९ वा ८१० नाडिगत वासना-बन्धन छिन्न हो जाय।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अमहीयुर्ऋषिः। पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:- १, ४, ५, ८, १०, १२, १५, १८, २२–२४, २९, ३० निचृद् गायत्री। २, ३, ६, ७, ९, १३, १४, १६, १७, २०, २१, २६–२८ गायत्री। ११, १९ विराड् गायत्री। २५ ककुम्मती गायत्री॥ त्रिंशदृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    O Soma, joyous ruler and protector of life, let this creative peace, presence, power and policy of yours prevail and advance, promoting those who join the happy advance, and repelling, dispelling, even destroying ninety-and-nine strongholds of darkness which obstruct the progress.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात क्षात्रधर्माचे वर्णन आहे व परमेश्वराला याविषयी बल मागितलेले आहे की आम्ही सर्व प्रकारे शत्रूंचा नाश करून जगात न्यायाचा प्रचार करावा. ॥१॥

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