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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 71 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 71/ मन्त्र 1
    ऋषिः - ऋषभो वैश्वामित्रः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - विराड्जगती स्वरः - निषादः

    आ दक्षि॑णा सृज्यते शु॒ष्म्या॒३॒॑सदं॒ वेति॑ द्रु॒हो र॒क्षस॑: पाति॒ जागृ॑विः । हरि॑रोप॒शं कृ॑णुते॒ नभ॒स्पय॑ उप॒स्तिरे॑ च॒म्वो॒३॒॑र्ब्रह्म॑ नि॒र्णिजे॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ । दक्षि॑णा । सृ॒ज्य॒ते॒ । शु॒ष्मी । आ॒ऽसद॑म् । वेति॑ । द्रु॒हः । र॒क्षसः॑ । पा॒ति॒ । जागृ॑विः । हरिः॑ । ओ॒प॒शम् । कृ॒णु॒ते॒ । नभः॑ । पयः॑ । उ॒प॒ऽस्तिरे॑ । च॒म्वोः॑ । ब्रह्म॑ । निः॒ऽनिजे॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आ दक्षिणा सृज्यते शुष्म्या३सदं वेति द्रुहो रक्षस: पाति जागृविः । हरिरोपशं कृणुते नभस्पय उपस्तिरे चम्वो३र्ब्रह्म निर्णिजे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आ । दक्षिणा । सृज्यते । शुष्मी । आऽसदम् । वेति । द्रुहः । रक्षसः । पाति । जागृविः । हरिः । ओपशम् । कृणुते । नभः । पयः । उपऽस्तिरे । चम्वोः । ब्रह्म । निःऽनिजे ॥ ९.७१.१

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 71; मन्त्र » 1
    अष्टक » 7; अध्याय » 2; वर्ग » 25; मन्त्र » 1
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ परमात्मनो द्युभ्वादीनामधिकरणत्वं निरूप्यते।

    पदार्थः

    (सोमः) परमात्मा (शुष्मी) बलवान् (आसदम्) सर्वत्र व्याप्तोऽस्ति। उपासकाः (दक्षिणा) उपासनारूपां दक्षिणां (सृज्यते) परमात्मानं समर्पयति। (जागृविः) जागरणशीलः परमात्मा (द्रुहः रक्षसः) द्रोहकारिराक्षसान्निहत्य सज्जनान् (पाति) रक्षति। अथ च (चम्वोः) द्यावाभूमी (निर्णिजे) पुष्णाति। (हरिः) पापहारकः (ब्रह्म) परमात्मा (नभः) अन्तरिक्षलोकं (पयः) परमाणुपुञ्जेन (उपस्तिरे) आच्छादयति। तथा (ओपशम्) सर्वावकाशदमन्तरिक्षलोकं (कृणुते) स परमात्मैव करोति ॥१॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    अब परमात्मा को द्युभ्वादि-लोकों का अधिकरणरूप से निरूपण करते हैं।

    पदार्थ

    (सोमः) परमात्मा (शुष्मी) बलवाला (आसदं) सर्वत्र व्याप्त है। उपासक लोग (दक्षिणा) उपासनारूप दक्षिणा को (सृज्यते) परमात्मा को समर्पित करते हैं। (जागृविः) जागरणशील परमेश्वर (द्रुहः रक्षसः) द्रोह करनेवाले राक्षसों को मारकर सज्जनों की (पाति) रक्षा करता है और (चम्वोः) द्युलोक तथा पृथिवीलोक को (निर्णिजे) पोषण करता है। (हरिः) पापों का हरण करनेवाला (ब्रह्म) परमात्मा (नभः) अन्तरिक्षलोक को (पयः) परमाणुसमूह से (उपस्तिरे) आच्छादित करता है। तथा (ओपशं) वही परमात्मा अन्तरिक्षलोक को (कृणुते) सबको अवकाश देनेवाला करता है ॥१॥

    भावार्थ

    परमात्मा ने इस ब्रह्माण्ड को द्रवीभूत अथवा यों कहो कि वाष्परूप परमाणुओं से आच्छादित किया हुआ है, उसी सर्वोपरि उपास्य देव की उपासक लोग अपनी उपासनारूप दक्षिणा से उपासना करें ॥१॥

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    विषय

    पवमान सोम। दान दक्षिण आदि की व्यवस्था। उससे उत्तम शासकों की उत्पत्ति।

    भावार्थ

    (दक्षिणा आ सृज्यते) उत्साह को उत्पन्न करने वाली प्रबल शक्ति वा दान, वेतनादि की व्यवस्था सर्वत्र बनाई जानी उचित है। क्योंकि उसी द्वारा (शुष्मी) बलवान् राजा शासक भी (आसदम् वेति) राज्य सिंहासन वा राजसभा को वा प्रतिष्ठा को प्राप्त करता और उसकी रक्षा करता है। वह (जागृविः हरिः) सदा जागने वाला, अप्रमादी, दुष्टों का संहार करने वाला शासक (द्रुहः रक्षसः पाति) द्रोहकारी राक्षसों, विघ्नकारी पुरुषों से राष्ट्र को बचाता है। वह (नभः) उत्तम प्रबन्ध को सूर्य-प्रकाश के तुल्य (ओपशं) व्यापक (कृणुते) कर देता है। (चम्वोः) सेना और प्रजा दोनों के (ब्रह्म पयः) बड़े भारी बल वीर्य को (निः-निजे) राष्ट्र का शोधन करने के लिये (उपस्तिरे) विस्तृत करता है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषभो वैश्वामित्र ऋषिः। पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:- १, ४, ७ विराड् जगती। २ जगती। ३, ५, ८ निचृज्जगती। ६ पादनिचृज्जगती। ९ विराट् त्रिष्टुप्॥ नवर्चं सूक्तम्॥

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    विषय

    द्रोह व रोग का विनाशक सोम

    पदार्थ

    [१] (शुष्मी) = शत्रुशोधक बलवाला यह सोम (आसदं वेति) = अपने आधारभूत इस शरीर में गतिवाला होता है। यह सोम शरीर में ही व्याप्त होता है। इसकी व्याप्ति से (दक्षिणा आसृज्यते) = दक्षिणे सरलोदारौ सरलता व उदारता उत्पन्न होती है । सोमरक्षक पुरुष सरल वृत्ति का व उदार होता है । यह सोम (द्रुहः) = मन में उत्पन्न होनेवाली द्रोह की वृत्तियों से तथा (रक्षसः) = शरीर में उत्पन्न होनेवाले रोगकृमियों से (पाति) = हमारा रक्षण करता है। इस रक्षण कार्य में यह सदा (जागृवि:) = जागरणशील [ alert ] है । [२] (हरिः) = यह सब द्रोहों व रोगों का हरण करनेवाला सोम (नभस्पयः) = द्युलोक के जल को, मस्तिष्क रूप द्युलोक के ज्ञानरूप जल को, (ओपशम्) = शिरोभूषण कृणुते करता है। हमारे मस्तिष्क को ज्ञान से सुभूषित करता है । (चम्वो:) = द्यावापृथिवी के, मस्तिष्क व शरीर के, निर्णिजे शोधन के लिये ब्रह्म-ज्ञान को उपस्तिरे उपस्तीर्ण करता है, बिछाता है। ज्ञान के द्वारा हमारे मस्तिष्क व शरीर का शोधन करनेवाला यह सोम ही है।

    भावार्थ

    सुरक्षित सोम मन से द्रोह को दूर करता है, शरीर से रोगों को। यह ज्ञान के द्वारा हमारा शोधन करनेवाला है।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    The gift is given liberally, the mighty, Soma, comes to the hall and presides, the wakeful protects against the evil and the jealous, and the omnipotent Soma, lord of peace and plenty, creates water vapours as a pillar and cover between the green earth and heaven of light and reveals the Vedas to sanctify and glorify existence.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमात्म्याने या ब्रह्मांडाला द्रवीभूत किंवा बाष्परूप परमाणूने आच्छादित केलेले आहे, त्याच सर्वात मोठ्या उपास्य देवाची उपासकांनी आपल्या उपासनारूपी दक्षिणेने उपासना करावी. ॥१॥

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